स्वीट फॉलः शिलांग में ही स्थित स्वीट फॉल इस शहर का सबसे खूबसूरत वॉटरफॉल माना जाता है. लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि ये वॉटरफॉल हॉन्टेड है. मेघालय में सबसे ज्यादा खुदकुशी और मौत की घटनाएं इसी वॉटरफॉल में हुई हैं. ऐसा कहा जाता है कि अगर आप विषम संख्या के लोगों के साथ इस वॉटरफॉल को देखने जाएंगे तो सम संख्या में ही वहां से लौटकर आएंगे.
यूं तो देश के उत्तर-पूर्व के सभी 7 राज्य अपने-आप में बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन प्रकृति प्रेमियों के लिए मेघालय घूमना शानदार विकल्प हो सकता है. शिलांग और चेरापूंजी जाने के लिए आपको गुवाहाटी तक ट्रेन या फ्लाइट से जाना होगा, क्योंकि शिलांग और चेरापूंजी तक ना ट्रेन जाती है और ना ही फ्लाइट. गुवाहाटी से शिलांग के लिए लगातार साधन उपलब्ध रहते हैं इसलिए आसानी से वहां पहुंचा जा सकता है. इन तीनों शहरों में सैर-सपाटे के लिए तमाम जगह हैं, लेकिन हम आपको ऐसी 10 जगहों के बारे में बताएंगे जिनकी खूबसूरती आप कभी भूल नहीं पाएंगे…
नॉहकलिकई (Nohkalikai) फॉलः चेरापूंजी से करीब 7 किमी दूर स्थित नॉहकलिकई फॉल भारत का 5वां सबसे ऊंचा वॉटर फॉल है. इस वॉटरफॉल के पीछे एक कहानी है. कहते हैं कि का लिकई नाम की एक महिला थी, जिसने अपने पहले पति की मौत के बाद दूसरी शादी की. पहले पति से उसकी एक बेटी थी. का लिकई अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी और दूसरे पति को यह पसंद नहीं था. एक दिन लिकई किसी काम से बाहर गई थी और दूसरे पति ने उसकी बेटी की हत्या कर उसके टुकड़े को भोजन में डालकर पका दिया. लिकई लौटी तो उसे घर में बेटी की उंगली मिली, जिससे पूरा मामला खुला. बताया जाता है कि इसके बाद लिकई ने इसी वॉटरफॉल से कूदकर जान दे दी, जिसके बाद वॉटरफॉल का नाम नॉहकलिकई फॉल पड़ गया. खासी भाषा में नॉह का मतलब कूदना होता है.
एलिफेंटा फॉलः यह शिलांग शहर से करीब 12 किमी दूर है. इस वॉटरफॉल की खूूबसूरती भी देखते ही बनती है. इसके नाम के पीछे एक रोचक कहानी है. इस वॉटरफॉल का असली नाम का शैद लई पटेंग खोशी (Ka kshaid lai pateng khohsiew) यानी कि तीन हिस्से वाला वॉटरफॉल है. बाद में अंग्रेजों ने इसका नाम बदल कर एलिफेंटाफॉल रख दिया, क्योंकि इस फॉल के पास एक पत्थर था, जो हाथी जैसा दिखता था. हालांकि 1897 में आए भूकंप में वो पत्थर नष्ट हो गया, लेकिन वॉटरफॉल का नाम बदला नहीं गया.
कामाख्या देवी मंदिरः असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित मां कामाख्या देवी का मंदिर निलाचल पहाड़ियों पर है. कामाख्या देवी का मंदिर 51 शक्ति पीठों में शुमार है. पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है.
जयंती माता का मंदिरः जयंती शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है. पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाए. ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं. देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. मेघालय तीन पहाड़ों (गारो, खासी और जयंतिया) पर बसा हुआ है. जयंतिया पहाड़ी पर ही ‘जयंती शक्तिपीठ’ है, जहां सती के ‘वाम जांघ’ का निपात हुआ था. यह शक्तिपीठ शिलांग से 53 किलोमीटर दूर जयंतिया पर्वत के बाउर भाग ग्राम में स्थित है. यहां की सती ‘जयंती’ और शिव ‘क्रमदीश्वर’ हैं.
शिलांग पीकः समुद्र तल से करीब 1900 मीटर ऊंची शिलांग पीक शिलांग की सबसे ऊंची चोटी है. यहां से आप पूरे शहर का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं. यह शहर का एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसी पर्वत के कारण इस शहर का नाम शिलांग पड़ा. यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि उनके देवता लीशिलांग इस पर्वत पर रहते हैं. यहां से वह पूरे शहर पर नजर रखते हैं और लोगों को हर तरह की मुसीबतों से बचाते हैं. शिलांग पीक के शानदार व्यूप्वाइंट के अलावा यहां इंडिया एयर फोर्स का रडार भी स्थापित है. यहां का व्यूप्वांट इंडियन एयर फोर्स के परिसर में ही स्थित है.
नारतियांग मोनोलिथः नारतियांग बाजार के साथ भी एक कहानी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि यू मार फलिंगकी रालियांग बाजार से नारतियांग बाजार तक एक विशाल पत्थर की पट्टी को ढो कर लाया था. आज आप नारतियांग बाजार में मोनोलिथ का विशाल समूह देख सकते हैं. यहां की खास बात है कि पत्थर के साथ यहां बहुत से हरे पेड़ भी हैं. यहां घूमना अपने आप में बिल्कुल अलग अनुभव होता है. जयंतिया हिल्स पर मौजूद नारतियांग मोनोलिथ तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप शिलांग से कैब बुक करके यहां पहुंचे और आराम से तीन चार घंटे घूमकर इस खास जगह का लुत्फ उठाएं.
पुलिस बाजारः अब अगर शिलांग घूमने गए ही हैं तो शॉपिंग करने के लिए पुलिस बाजार भी जरूर होकर आएं. पुलिस बाजार शिलांग का मेन मार्केट है. लकड़ी के सामान और सर्दी के कपड़ों की शॉपिंग यहां अच्छी हो सकती है. साथ ही खाने-पीने के लिए भी आपको यहां अच्छे विकल्प मिल जाएंगे.
वार्डस झीलः शहर के बीचोबीच स्थित वार्डस झील शिलांग की एक और चर्चित जगह है. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान विलियम वार्ड असम के मुख्य आयुक्त हुआ करते थे. उसी समय इस झील का निर्माण किया गया, जिससे इसका नाम वार्डस झील पड़ा. घोड़े की नाल के आकार का यह झील कभी राजभवन का हिस्सा हुआ करती थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस झील का निर्माण एक खासी कैदी द्वारा किया गया था, जिन्होंने काम के लिए जेल से बाहर निकालने का अनुरोध किया था. ऐसा कहा जाता है कि उनके शुरुआती काम ने प्रशासन को इस झील के निर्माण के लिए प्रेरित किया. स्थानीय लोग इस झील को ‘नन पोलोक’ या ‘पोलोक झील’ के नाम से भी पुकारते हैं. यहां आप बोटिंग कर सकते हैं. साथ ही झील में मौजूद मछलियों को दाने डालने का भी मजा ले सकते हैं.
चेरापूंजी में घूमने के लिए सेवन सिस्टर्स, मौसमाई केव, इको पार्क जैसी खूबसूरत स्थान हैं. इन जगहों पर जाते समय सड़क किनारे छोटी-छोटी दुकानें होती हैं. स्थानीय लोग लकड़ी के छोटे-छोटे सामान, खाने के लिए मैगी, चिप्स, नमकीन के अलावा कोल्डड्रिंक बेचते नजर आते हैं. इन दुकानों पर आपको चाय भी मिल सकती है. आप जब भी चेरापूंजी जाएं इन नुक्कड़ों पर जरूर रुकें और खुले आसमान के नीचे कुछ खाने-पीने का आनंद उठाएं.