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माँ चिंतपूर्णी देवी मंदिर….

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माँ चिंतपूर्णी देवी जी का मंदिर भारत का प्राचीन मंदिर है जो कि ऊना गंवा, ऊना जिले, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। चिंतपूर्णी का मंदिर छिन्नमस्ता के नाम से भी जाना जाता है। चिंतपूर्णी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्य की सीमा पर स्थित है।

माँ चिंतपूर्णी देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है तथा मुख्य 7 में से एक है। माँ चिंतपूर्णी देवी के दर्शनों के लिए भक्त पूरे भारत से आते है। नव राात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।

ऐसा माना जाता है कि चिंतपूर्णी मंदिर की स्थापना पंडित माई दास जो एक सारस्वत ब्राह्मण थे, ने कि थी। आज भी उनके वंशज चिंतपूर्णी में रहते है और मंदिर में पूजा व प्रार्थना करते है।

देवी की उत्पत्ति की कथा

दूर्गा सप्‍तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था जिसमें असुरो की विजय हुई। असुरो का राजा महिसासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरन करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों द्वारा काफी अत्याचार किया गया। देवताओं ने इस विषय पर आपस में विचार किया और इस कष्‍ट के निवारण के लिए वह भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने को कहा। तब‍ देवताओं ने उनसे पूछा कि वो कौन देवी हैं जो हमारे कष्टो का निवारण करेंगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ-न-कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा, समुंद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। इसके बाद सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी की विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

पौराणिक कथा

चिंतपूर्णी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ती कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिर थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी। वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयीं। जहां शिव का काफी अपमान किया गया। इसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयी। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्‍ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्‍ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया। जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि चिंतपूर्णी मे माता सती के चरण गिरे थे। इन्‍हें छिनमष्तिका देवी भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी देवी मंदिर के चारो और भगवान शंकर के मंदिर है।

 

चिंतपूर्णी में मनाये जाने वाले पर्व

चिंतपूर्णी मंदिर में शरदीय और गृष्‍मऋतु नवरात्रि काफी धूमधाम से मनाये जाते हैं। नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि की प्रत्येक रात्रि को यहां पर जागरण का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दिनो मे यहां पर आने वाने श्रद्धालुओं कि संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है।

मंदिर और देवी दर्शन

चिंतपूर्णी गांव जिला ऊना हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चिंतपूर्णी मंदिर सोला सिग्ही श्रेणी की पहाड़ी पर स्थित है। भरवाई गांव जो होशियारपुर-धर्मशिला रोड पर स्थित है वहा से चिंतपूर्णी 3 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यह रोड राज्य मार्ग से जुड़ा हुआ है। पर्यटक अपने निजी वाहनो से चिंतपूर्णी बस स्टैण्ड तक जा सकते हैं। बस स्टैण्ड चिंतपूर्णी मंदिर से 1.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। चढाई का आधा रास्ता सीधा है और उसके बाद का रास्ता सीढीदार है।

गर्मी के समय में मंदिर के खुलने का समय सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक है और सर्दियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक का है। दोपहर 12 बजे से 12.30 तक भोग लगाया जाता है और 7.30 से 8.30 तक सांय आरती होती है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का हलवा, लड्डू बर्फी, खीर, बतासा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चूनरी माता को भेट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढाई के रास्ते में काफी सारी दूकाने है जहां से ही श्रद्धालु माता को चढाने का समान खरीदते हैं। दर्शनो से पहले प्रत्येक पर्यटक को हाथ साफ करने पड़ते हैं और उन्हें अपने सर पर रूमाल या कपड़ा ढकना पड़ता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर प्रवेश करते ही सीधे हाथ पर आपको एक पत्थर दिखाई देगा। यह पत्थर माईदास का है। यही वह स्थान है जहां पर माता ने भक्त माईदास को दर्शन दिये थे। भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिण्डी है। जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरंतर भजन कीर्तन करते रहते हैं। इन भजनो को सुनकर मंदिर में आने वाले भक्तो को दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है और कुछ पलो के लिए वह सब कुछ भूल कर अपने को देवी को समर्पित कर देते हैं। मंदिर के साथ ही में वट का वृक्ष है जहां पर श्रद्धालु कच्ची मोली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। आगे पश्चिम की और बढने पर बड़ का वृक्ष है जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पर सोने की परत चढी हुई है। इस मुख्य द्वार का प्रयोग नवरात्रि के समय में किया जाता है। यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधर पर्वत श्रेणी को देख सकते हैं। मंदिर की सीढियों से उतरते वक्त उत्तर दिशा में पानी का तालाब है। पंड़ित माईदास की समाधि भी तालाब के पश्चिम दिशा की ओर है। पंड़ित माईदास द्वारा ही माता के इस पावन धाम की खोज की गई थी।

मौसम

फरवरी के मध्य से अप्रैल के मध्य तक मौसम सुहाना रहता है। अप्रैल के मध्य से गर्मियां शुरू हो जाती है। गर्मियों के समय में दिन का मौसम काफी गर्म हो जाता है। रात्रि के समय का मौसम हल्का ठंड़ा होता है। जून से सितंबर तक यहां पर बारिश होती है। अक्टूबर से नवंबर के समय में दिन तो गर्म रहता है जबकि सुबह और रात ठंडी होती है। दिसंबर से जनवरी के माह में यहां पर काफी ठंड होती है और यहां का तापमान माईनस 5 डिग्री तक पहुंच जाता है। चिंतपूर्णी जाने का उपयुक्त समय फरवरी से अप्रैल तक का है। इन दिनो यहां का मौसम सुहाना होता है।

विश्रामालय

विशेष पर्व जैसे नवरात्रि, सावन मास, सक्रांति, पूर्णिमा, अष्टमी में यहां पर काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस कारण इस समय में यात्रियों को थोड़ी बहुत समस्‍या का सामना करना पड़ता है। पर इसके अलावा यहां पर रहने के लिए काफी संख्या में होटल और धर्मशालाए है जोकि यात्रियो की प्रत्येक समस्‍या का समाधान करते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर हिमाचल टूरिज्म विभाग का यात्री निवास है जिसके अंदर सभी सुविधाए उपलब्ध है।

आवागमन

निकटतम महानगर चंडीगढ़ है जो कि राज्यो से सड़क मार्ग, रेल मार्ग व वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़ तक पहुंने के बाद सड़क मार्ग द्वारा चिंतपूर्णी तक असानी से पहुंचा जा सकता है।

वायु मार्ग: चिंतपूर्णी तक जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डे चंडीगढ़ और अमृतसर हैं। यहाँ से सड़क मार्ग से चिंतपूर्णी तक आसानी जा सकते हैं।

रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन हिमाचल का ऊना है। तत्पश्चात् चंडीगढ़ सभी राज्यो से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता आदि सभी शहरो से यह रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। दिल्ली से चंडीगढ़ तक के लिए काफी सारी ट्रेन सुविधा उपलब्ध है। दिल्ली से ऊना के लिए भी एक सीधी जन शताब्दी ट्रेन चलती है।

सड़क मार्ग: चिंतपूर्णी तक जाने के काफी सारे मार्ग हैं। यदि आप दिल्ली से चिंतपूर्णी आते हैं। तो आपको दिल्ली से चंडीगढ़, रोपड़, नंगल, ऊना, मुबारकपुर, भरवानी होते हुए चिंतपूर्णी आना होगा। आप सड़क मार्ग तय करके 5 घंटे मे चंडीगढ़ से चिंतपूर्णी पहुंच सकते हैं। हिमाचल प्रदेश ट्राँसपोर्ट विभाग द्वारा भी यहां तक के लिए बस सुविधा मुहैया कराई गई है। जालंधर से भी यहाँ तक के लिए एक सीधा रास्ता है।

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