मध्यप्रदेश के 3 जिले सीहोर, सतना एवं राजगढ़ के 20-20 गाँव शीघ्र ही क्लाइमेट स्मॉर्ट विलेज में बदल जायेंगे। ऐसा केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एनएएफसीसी कोष की परियोजना की बदौलत होगा। कोष में क्लाइमेट स्मॉर्ट विलेज देश की पहली पूरी तरह केन्द्रीय अनुदान आधारित परियोजना है।
क्लाइमेट स्मॉर्ट विलेज मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचने, जोखिम को कम करने, मिट्टी एवं जल के संरक्षण, फसल की सूखा सहनशील किस्मों की खेती, कृषि वानिकी द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने तथा मौसम पूर्वानुमान आधारित कृषि की नवीन पद्धतियों की परियोजना है। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार भविष्य में तापमान बढ़ने से वर्षा तो अधिक होगी, लेकिन वर्षा के दिन घटेंगे। इससे वर्षा की आक्रमता बढ़ेगी और अति-वृष्टि, ओला, पाला, शीत-लहर जैसी स्थिति बनेगी। वर्षा असंतुलन के चलते कहीं बाढ़, कहीं सूखे की स्थिति होगी। ऐसे में यह परियोजना किसानों के लिये वरदान बनेगी।
परियोजना में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील तीन जिलों राजगढ़ (राजगढ़), सीहोर (बुदनी) और सतना (मैहर) के 60 गाँव को लिया गया है। पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) द्वारा संबंधित गाँव के सरपंच, सचिव, जनपद अध्यक्ष, कार्यपालन अधिकारी की राज्य-स्तरीय कार्यशाला भोपाल में आयोजित कर इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया गया है।
सीहोर जिले में मछुवाई, हिंग्नासीर, बीसाखेड़ी, डोबी, सातरमऊ, मुरारी, होड़ा, चाँदलाकलां, खाबड़ा, जनवासा, इसरपुर, बिनेका, बोरना, गादर, जैत, खोहा, अमनापुरा, नारायणपुर, अन्खेड़ी और चिखली गाँव क्लाइमेट स्मार्ट विलेज बनेंगे। सतना जिले में परसवाड़ा, डुंडी, अमुआ, नकतरा, दर्शनपुर, हरदुआ, सानी, गढ़वा, घुनवारा, पिपराकलां, घुरैयाकलां, मतवारा, पकरिया, कुसेड़ी, पथरहटा, इटहरा, महेदर, गुग्ड़ी, सभागंज और धतूरा का चयन किया गया है। इसी तरह राजगढ़ जिले के गाँव कोटरा, मोतीपुरा, जैतपुरा खाती, जगन्यापुरा, ज्वालापुरा, गवाकापुरा, जोगीपुरा, छमारी, देवझिरी, टूतीपुरा, धोबीपुरा, पालड़ी, फतहपुर, भाटपुरा, बेडाकापुरा, हीरापुरा, मन्यापुरा, फूलखेड़ी, मालीपुरा और मनोहरपुरा क्लाइमेट स्मार्ट विलेज बनेंगे।
तीन साला इस परियोजना के लिये केन्द्र द्वारा 24 करोड़ 87 लाख रुपये स्वीकृत किये गये हैं। परियोजना का मूल्यांकन नाबार्ड का क्षेत्रीय कार्यालय करेगा। किसानों के मार्गदर्शन के लिये कृषि, जल-संसाधन, मौसम विभाग आदि को भी इससे जोड़ा जा रहा है।
परियोजना की गतिविधियाँ
बीज एवं फसल प्रबंधन : सूखा सहनशील चारा एवं फसलों की खेती, कृषि के साथ वानिकी और चारा बैंक बनाकर संग्रहण एवं वितरण।
जल प्रबंधन : जल संग्रहण के लिये खेतों में लाइन्ड (पॉलीथिन की परत लगाकर) तालाबों का निर्माण, धान की कम पानी के उपयोग वाली तकनीक से खेती।
ऊर्जा प्रबंधन : कम ऊर्जा खपत वाले उपाय जैसे एलईडी लाइट, गोबर गैस संयंत्र, सोलर पम्प प्रयोग को प्रोत्साहित करना, फसल अवशेषों को जलाने के विरुद्ध किसानों को जागरूक करना और विकल्पों को अपनाना, कम ऊर्जा खपत वाले सिंचाई पम्प के प्रयोग को बढ़ावा देना।
मृदा पोषक तत्व प्रबंधन : मिट्टी की कम जुताई, समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन, लीफ कलर चार्ट, मिट्टी में सही समय, सही स्थान एवं खेत में खड़ी फसल के रंग के अनुसार पोषक तत्व की पूर्ति करना, फसल कटाई के बाद अवशेषों को खेत में जलाने और मिट्टी में मिलाने से रोकना।
मौसम पूर्वानुमान आधारित खेती : मौसम वेधशाला के माध्यम से छोटे स्तर पर (क्लस्टर) मौसम पूर्वानुमान पर आधारित कृषि कार्य।
जलवायु परिवर्तन पर प्रशिक्षण एवं क्षमता विकास : विद्यार्थियों, किसानों, महिलाओं, श्रमिकों आदि को कार्यशाला एवं भ्रमण के माध्यम से प्रशिक्षित किया जायेगा।
केन्द्र एवं राज्य शासन द्वारा प्रायोजित समग्र विकास की अन्य योजनाओं के साथ एकीकरण।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिये सही खाद, बीज, ऊर्जा प्रबंधन की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। अधिक गर्मी, असंतुलित वर्षा, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से उत्पादकता और विभिन्न प्रजातियों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। फसलों में नई बीमारियाँ आ रही हैं और कीटाणुओं पर वर्तमान कीटनाशकों का प्रयोग कम प्रभावशील होता जा रहा है। पृथ्वी की सतह का एक डिग्री तापमान बढ़ने से फसल उत्पादन में 10 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। देश में बढ़ती आबादी के मद्देनजर वर्ष 2030 तक दोगुने खाद्यान्न उत्पादन की जरूरत होगी। ऐसे में यह 60 क्लाइमेट स्मॉर्ट विलेज पूरे प्रदेश के लिये मॉडल बनेंगे।