मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल आज खत्म हो जाएगा, इस कड़ी में देर शाम वह देश के नाम अपना आखिरी संबोधन देंगे। जिसके बाद वह राष्ट्रपति भवन से विधिवत रूप से रुखसत हो जाएंगे। राष्ट्रपति भवन से प्रणब दा का जाना मौजूदा भारतीय राजनीति में खासा मायने रखता है, राष्ट्रपति के रूप में अपने पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने जितनी लोकप्रियता हासिल की उतनी तो शायद वो अपने लंबे राजनीतिक कॅरियर में भी हासिल नहीं कर पाए। यही कारण है कि आज वह राष्ट्रपति भवन से जा रहे हैं तो आम जनता से लेकर राजनीतिक दल तक उन्हें भावभिनी विदाई दे रहे हैं। उस दौर में जहां तमाम संवैधानिक संस्थाएं अधिकारों को लेकर एक दूसरे के साथ तनातनी के दौर से गुजर रही हैं वैसे में प्रणब ने राष्ट्रपति भवन और संसद के बीच के रिशमों को जो नई ऊचाईयां दीं वो काबिले तारीफ है। आइए डालते हैं उनके पांच साल के कार्यकाल की पांच बड़ी बातों की जिसके लिए याद किए जाएंगे प्रणब दा।
राष्ट्रपति के तौर पर बेदाग रहा कॅरियर, विवादों से हमेशा रहे दूर
यूं तो प्रणब मुखर्जी का पूरा राजनीतिक कॅरियर ही बेदाग रहा है, उन्होंने तमाम विवादों से खुद को दूर रखा लेकिन फिर भी विवादों के कुछ छीटें उनके दामन पर लगते रहे। चाहे वो प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर पहले नरसिम्हा राव बाद में मनमोहन सिंह से तनातनी का मुद्दा रहा हो या इंदिरा गांधी की कांग्रेस छोड़ने का। कई बार वह राजनीतिक भंवर में फंसते रहे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब ने खुद को पूरी तरह निर्विवाद कर लिया। पांच साल के कार्यकाल में उनके पद और राष्ट्रपति भवन की ओर कोई उंगली नहीं उठी, न उन पर किसी तरह के पक्षपात के आरोप लगे न सरकार से असहयोग के।
आतंक के प्रति हमेशा सख्त रुख रखा, रद की कई मर्सी पिटिशन
राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी की सबसे ज्यादा चर्चा हुई आतंक के प्रति सख्त और स्पष्ट नीति रखने की, जिसमें उन्होंने कोई मुरव्वत नहीं रखी। अपने कार्यकाल के शुरूआती दिनों में ही प्रणब ने संसद हमले के आरोपी अफजल गुरू और मुंबई हमलों के गुनहगार अजमल कसाब की दया याचिका खारिज कर दी। जिसके बाद दोनों आतंकियों को फांसी दे दी गई। कुछ दिन पहले ही याकूब मेमन की दया याचिका भी उन्होंने रद की जिसके बाद उसे फांसी चढ़ा दिया गया। इसके अलावा उन्होंने बलात्कार और हत्या जैसी जघन्य वारदातों को अंजाम देने वाले दुर्दांत अपराधियों की 28 दया याचिकाएं भी रद कर दी। पांच साल के कार्यकाल में प्रणब ने मात्र 4 लोगों को ही क्षमादान दिया।
साल 2014 में मोदी सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार के साथ राष्ट्रपति प्रणब के रिश्तों को लेकर शंकाएं जाहिर की गई थी, लेकिन प्रणब ने उन सब आशंकाओं को निर्मूल साबित किया। मोदी सरकार के साथ तीन साल के कार्यकाल में प्रणब ने हमेशा निष्पक्ष रवैया बनाए रखा। यही कारण रहा कि देश में बढ़ती असहिष्णुता और भीड़ के न्याय करने की खबरों पर उन्होंने सरकार को उसकी जिम्मेदारी याद भी दिलाई। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखने की खुलकर वकालत भी की तो नोटबंदी जैसे बड़े मुद्दों पर विपक्ष की तमाम आलोचनाओं को दरकिनार कर सरकार का समर्थन भी किया। कई मुद्दों पर जब केंद्र सरकार संसद में घिरती नजर आई तो प्रणब ने उसका समर्थन कर उसे राहत दी। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री मोदी भी प्रणब दा की कार्यशैली के मुरीद रहे।
अपने कार्यकाल के दौरान प्रणब दा नैतिक मूल्यों के बड़े पक्षधर रहे। उन्होंने राष्ट्रपति पद जैसी बड़ी जिम्मेदारी के बावजूद भी उसके आडंबरों से खुद को हमेशा दूर रखा। यहां तक की राष्ट्रपति के संबोधन के लिए अंग्रेजी राज से चली आ रही ‘महामहिम’ की प्रथा को भी उन्होंने खत्म करवा दिया। उन्होंने पुराने प्रोटोकॉल को खत्म करते हुए नए प्रोटोकॉल को मंजूरी दी जिसमें ‘राष्ट्रपति महोदय’ जैसे शब्दों को बढ़ावा दिया गया। उन्होंने ‘हिज एक्सीलेंसी’ शब्द के उपयोग पर भी रोक लगाई जो अक्सर राष्ट्रपति भवन से बाहर उनके लिए उपयोग किया जाता था। इसके अलावा उन्होंने सरकारी समारोह सहित कई बड़े कार्यक्रमों को राष्ट्रपति भवन में ही कराने पर जोर दिया जिससे बाहर होने वाले खर्चों से बचा जा सके।
प्रणब मुखर्जी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन को भी कई तोहफे दिए और कई नई परंपराएं शुरू कराई। राष्ट्रपति भवन में बने स्कूल में तो एक बार उन्होंने खुद बच्चों को पढ़ाया। युवाओं को कला के प्रति आकर्षित करने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति भवन में कई प्रतियोगिताएं भी कराईं। इसके लिए राष्ट्रपति भवन में लेखकों और कलाकारों के लिए बकायदा तीन महीने का एक कार्यक्रम भी चलाया। इसके अलावा दशकों पुराने राष्ट्रपति भवन की दीवारों पर भी उन्होंने कई शानदार पेटिंग्स लगाने को बढ़ावा दिया। राष्ट्रपति भवन में ही एक अंडरग्राउंड म्यूजियम का निर्माण कराया गया। इसे देश का सबसे अत्याधुनिक म्यूजियम कहा जा रहा है, जो कुल 1.30 लाख स्क्वायर फीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है। तीन फ्लोर में फैले इस म्यूजियम की लागत 80 करोड़ के करीब आई। प्रणब मुखर्जी ने इस म्यूजियम की रूपरेखा 2012 में अपने कार्यकाल के शुरूआती दिनों में ही तय कर ली थी, जिसे तैयार होने में चार साल लगे और इसे 2016 में आम जनता के लिए खोला गया। इस म्यूजियम में देश के तमाम राष्ट्रपतियों को देश विदेश में मिले 11 हजार से ज्यादा उपहारों को रखा गया है। म्यूजियम में वर्चुअल रियलिटी एक्सिबिट्स की व्यवस्था है।