Home फिल्म जगत दिल्ली स्थित मैडम तुसाद में लगेगा अभिनेत्री मधुबाला का मोम का पुतला….

दिल्ली स्थित मैडम तुसाद में लगेगा अभिनेत्री मधुबाला का मोम का पुतला….

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मैडम तुसाद के बॉलीवुड ब्रिगेड में अब नया नाम गुजरे जमाने की अभिनेत्री मधुबाला का जुड़ गया है. दिल्ली स्थित मैडम तुसाद के इस साल के अंत तक खुलने की संभावना है. अभिनेत्री की मोम की अनुकृति क्लासिक फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में उनके प्रसिद्ध किरदार अनारकली पर आधारित होगी. मधुबाला हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर की एक प्रमुख अभिनेत्री थीं. अपने छोटे जीवनकाल में वह ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘काला पानी’ और ‘हावड़ा ब्रिज’ जैसी बहुत-सी फिल्मों में नजर आयीं और वे फिल्म उद्योग में बेहद सम्मानित शख्सियतों में से एक थीं .

मर्लिन एंटरटेनमेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के महाप्रबंधक एवं निदेशक अंशुल जैन ने कहा, “मैडम तुसाद दिल्ली में मुधबाला की अनुकृति होने से हमें खुशी है. वह अब भी देश के लाखों लोगों के दिलों पर राज करती हैं.” अंशुल जैन ने कहा, “हमें यकीन है कि उनकी दिलकश खूबसूरती प्रशंसकों को उनके साथ सेल्फी लेने और खास लम्हा बिताने के लिये आकर्षित करेगी और उन्हें सिनेमा के उस सुनहरे दौर में ले जायेगी.”

मैडम तुसाद दिल्ली में अमिताभ-शाहरुख
दिल्ली की प्रसिद्ध रीगल बिल्डिंग में स्थित इस संग्रहालय में बॉलीवुड के जिन सितारों की मोम की अनुकृति होगी उनमें अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, गायिका आशा भोसले और श्रेया घोषाल शामिल हैं.

मुमताज से बदलकर मधुबाला रखा नाम
मधुबाला हिन्दी सिनेमा की ऐसी हीरोइन हैं, जिसकी मुस्कान पर लाखों फिदा थे. बॉलीवुड में उनकी एंट्री बेबी मुमताज के नाम से हुई थी. उनकी पहली फिल्म ‘बसंत’ थी. देविका रानी उनके ‘बसंत’ में किए गए अभिनय से इतनी प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने उनका नाम मुमताज से बदलकर मधुबाला रख दिया था. उनकी सफल फिल्मों में ‘नीलकमल’, ‘महल’, ‘फागुन’, ‘हावरा ब्रिज’, ‘काला पानी’, ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘मुगल-ए-आजम’ उनकी चर्चित फिल्मों में से थीं.

9 साल बिस्तर में गुजारने के बाद हुआ निधन
‘मुगल-ए-आजम’ में उनका शानदार अभिनय देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह लंबे समय से बीमार थीं. खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने भारी जंजीरों के साथ अभिनय किया था. वह हृदय रोग (माना जाता है दिल में छेद) से पीड़ित थीं. जिसका पता उन्हें नियमित जांच के दौरान 1950 में ही चल गया था. उन्होंने दूसरे लोगों से अपनी बीमारी को छुपाया. जिंदगी के अंतिम 9 साल उन्हें बिस्तर पर ही गुजारने पड़े और 1969 में उनकी मौत हो गई.

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