Home धर्म/ज्योतिष भगवान श्रीकृष्ण को ‘छप्पन भोग’ क्यों चढ़ाया जाता है….

भगवान श्रीकृष्ण को ‘छप्पन भोग’ क्यों चढ़ाया जाता है….

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जन्माष्टमी का त्योहार नजदीक है और भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों ने इस पर्व की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। कृष्णा, कन्हैया, गोविंद, गोपाल, नंदलाल, ब्रिजेश, मनमोहन, बालगोपाल, मुरली मनोहर भगवान श्रीकृष्ण को उनके भक्त अनेक नामों से बुलाते हैं। श्रीकृष्ण ने संघर्ष और अराजकता की परिस्थितियों के बीच भी हमेशा प्रेम और सद्भाव के संदेश को फैलाया। बाल कृष्ण के बचपन और उनकी शररातों से जुड़ी ढेरों कहानी हैं, जिन्हें आज भी सुनाया जाता है। श्रीकृष्ण को सफेद मक्खन बेहद ही पंसद था जिस कारण उन्हें ‘माखन चोर’ नाम से भी जाना जाता है।

जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में माना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हर साल इस दिन को बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं। भारतीय कैलेंडर के अनुसार यह बहुत बड़ा त्योहार होता है और हिन्दू इस दिन को बेहद ही शुभ मानते हैं। हर साल लोग जन्माष्टमी का बेसब्री से इंतजार करते हैं और कई रीति-रिवाजों के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। हालांकि कई क्षेत्रों में जन्माष्टमी का उत्सव अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है, ज्यादातर लोग जन्माष्टमी के दिन पूरे दिन का उपवास रखते हैं। सूर्यास्त के बाद मंदिरों में भजन-कीर्तन किया जाता है। वहीं जिन लोगों ने उपवास रखा होता है वह इस दिन अपना व्रत पूरा करने के लिए आधी रात तक जागते हैं क्योंकि माना जाता है भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। जन्माष्टमी के अगले दिन को नंद उत्सव के रूप में मनाया जाता है, इस दिन लोग अपने प्रियजनों को मिठाईयां और उपहार आदि देते हैं।

क्यों चढ़ता है कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान को छप्पन भोग

भगवान को भोग लगाने के लिए उनके भक्त 56 तरह के पकवान भोग में चढ़ाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। छप्पन का अर्थ 56 से है और भोग का मतलब भोजन है। आप में से कई लोगों के मन में यह प्रश्न होगा कि श्रीकृष्ण को भोग में 56 तरह के पकवान क्यों चढ़ाए जाते हैं? इसके पीछे एक कहानी है, कहा जाता है कि एक बार अपने गांव और वहां रहने वाले लोगों को भारी बारिश (भगवान इंद्र) के प्रकोप से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठा लिया और सभी गांव वालों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। श्रीकृष्ण लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाए खड़े रहें, अंत में भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। भगवान श्रीकृष्ण हर रोज भोजन में आठ तरह की चीजें खाते थे, लेकिन सात दिनों से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। इसलिए सात दिनों के बाद गांव का हर निवासी अभार प्रकट करने के लिए उनके लिए 56 तरह (आठ गुणा सात) के पकवान बनाकर लेकर आया।
ऐसा कहा जाता है कि छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो भगवान श्रीकृष्ण को पंसद थे। आमतौर पर इसमें अनाज, फल, ड्राई फ्रूट्स, मिठाई, पेय पदार्थ, नमकीन और अचार जैसी चीजें शामिल होती हैं। इसमें भी भिन्नता होती हैं कई लोग 16 प्रकार की नमकीन, 20 प्रकार की मिठाईयां और 20 प्रकार ड्राई फ्रूट्स चढ़ाते हैं। सामन्य तौर पर छप्पन भोग में माखन मिश्री, खीर और रसगुल्ला, जलेबी, जीरा लड्डू, रबड़ी, मठरी, मालपुआ, मोहनभोग, चटनी, मुरब्बा, साग, दही, चावल, दाल, कढ़ी, घेवर, चिला, पापड़, मूंग दाल का हलवा, पकोड़ा, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, लौकी की सब्जी, पूरी, बादाम का दूध, टिक्की, काजू, बादाम, पिस्ता और इलाइची।
भोग को पारंपरिक ढ़ंग से अनुक्रम में लगाया जाता है, सबसे पहले दूध से शुरूआत की जाती है फिर बेसन आधारित और नमकीन खाना और अंत में मिठाई, ड्राई फ्रूट्स और इलाइची रखी जाती है। सबसे पहले भगवान को यह भोग चढ़ाया जाता है और बाद में इसे सभी भक्तों और पुजारियों में बांटा जाता है।

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