कोटखाई गुड़िया गैंगरेप हत्याकांड मामले में सीबीआई की टीम ने पुलिस जांच की एक बार फिर पोल खोलकर रख दी है। जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने गुड़िया के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद अस्पताल से फोरेंसिक लैब तक नमूने पहुंचाने में 4 दिन लगाए, जबकि आईजीएमसी शिमला से स्टेट फोरेंसिक साइंस लैब जुन्गा तक गाड़ी पर जाने का रास्ता एक घंटे का है। 2 दिन का अवकाश होने के चलते अधिकारी शायद छुट्टियां बीतने का इंतजार करते रहे। उसके बाद भी दूसरे वर्किंग डे को नमूने लैब पहुंचे। इससे फोरेंसिक लैब में इन नमूनों से सुराग ढूंढने में मुश्किल आई।
एक लापरवाही यह भी आई सामने
बताया जा रहा है कि 7 जुलाई को आईजीएमसी के फोरेंसिक विभाग के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने जब गुड़िया का पोस्टमार्टम किया, उस दौरान पुलिस के जांच अधिकारी मौके पर थे। जिस स्टेट फोरेंसिक लैब जुन्गा में आगामी जांच होनी थी, वहां से विशेषज्ञ मौके पर नहीं बुलाया गया। जो विशेषज्ञ छह जुलाई को दांदी जंगल में था, उसे बुलाने की भी जरूरत महसूस नहीं की गई। फोरेंसिक निदेशालय के विशेषज्ञ के हिसाब से गुड़िया के शरीर का विसरा और अन्य जरूरी हिस्सों को लैब में भेजा जाता तो जांच और आसान हो जाती। सीबीआई सूत्रों ने बताया 8 जुलाई को दूसरे शनिवार की छुट्टी थी और नौ को रविवार था। दस जुलाई को सोमवार वर्किंग डे था। बावजूद इसके गुड़िया के शरीर से निकाले गए तमाम नमूने 11 जुलाई को लैब में पहुंचाए गए। पुलिस चाहती तो अधिकांश नमूने शुक्रवार को नहीं तो शनिवार को तो प्रयोगशाला में पहुंचा सकती थी। विशेष परिस्थितियों में प्रयोगशाला में अवकाश वाले दिन भी जांच होती है। फोरेंसिक विशेषज्ञों की मानें तो इतने वक्त में नमूने अपने नेचर को बदल भी सकते हैं। इससे सही रिजल्ट नहीं आ सकता है। इसी से फोरेंसिक विशेषज्ञों को काफी मुश्किल आई।
घटना वाले दिन से ही रही तालमेल की कमी
दरअसल, 6 जुलाई 8 बजे के करीब गुड़िया की लाश उसके दोनों मामा ने दांदी जंगल में देखी। 11 बजे पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचने लगे थे। पुलिस के पहुंचने के बाद जुन्गा लैब से फोरेंसिक विशेषज्ञ के पहुंचने में 5 घंटे लग गए। वहीं दूसरी ओर दोपहर बाद और शाम के वक्त फोरेंसिक विशेषज्ञ ने स्पॉट से नमूने एकत्र करने शुरू किए। तब तक स्पॉट के आसपास की जगह काफी खुर्द-बुर्द हो चुकी थी। पुलिस के पहुंचने से पहले ही परिजनों और अन्य लोगों की मूवमेंट चल रही थी।
इस क्षेत्र की फोरेंसिक विशेषज्ञ के पहुंचने तक पुलिस ने घेराबंदी करने के बजाय अपने तरीके से छानबीन जारी रखी। छानबीन का कायदा यह था कि फोरेंसिक विशेषज्ञ के पहुंचने तक पुलिस इस पूरे घटनास्थल को सील किए रखती और उसी के मार्गदर्शन में तमाम नमूने एकत्र करती। दिन बीतने को कुछ ही घंटे बचे थे। ऐसे में फोरेंसिक विशेषज्ञ पड़ताल को बहुत वक्त भी नहीं दे पाया। दूसरे दिन भी पुलिस और फोरेंसिक विशेषज्ञ की छानबीन में तालमेल की कमी रही।