रेटिंगः 3 स्टार
कलाकारः कृति सैनन, राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, पंकज त्रिपाठी और सीमा पाहवा
डायरेक्टरः अश्विनी अय्यर तिवारी
बॉलीवुड का फोकस इन दिनों देसी कहानियों की ओर ज्यादा है, और ‘बरेली की बर्फी’ भी उसी कड़ी में एक फिल्म है. ‘बरेली की बर्फी’ जैसी फिल्मों को देखकर ही लगता है कि बॉलीवुड का असली भारत से कनेक्शन कायम है. फिल्म की डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी ने इसमें लोकल जायका रखने की भरपूर कोशिश की है. उनका फिल्ममेकिंग का स्टाइल ऐसा है कि वे बहुत ही मजेदार ढंग से गहरी बात कह जाती हैं. जैसा उन्हें ‘निल बटे सन्नाटा’ में भी दिखाया था.
वे हमारे आस-पास की बहुत ही छोटी-सी बातों को सामने लाती हैं. ‘बरेली की बर्फी’ बहुत ही सिंपल फिल्म है जो मनोरंजन के लिए बनाई गई है. इस फिल्म की खासियत यह है कि जहां आजकल फिल्मों का दूसरा हाफ थका हुआ होता है, वहीं इस फिल्म ने दूसरे हाफ के मामले में बाजी मारी है. फिल्म की कहानी फ्रांसीसी उपन्यास ‘इनग्रिडिएंट्स ऑफ लव’ पर आधारित है, लेकिन इसे पूरी तरह उत्तर प्रदेश के रंग में रंग दिया गया है
फिल्म की शुरुआत जावेद अख्तर की आवाज के साथ होती है जो फिल्म से हमें रू-ब-रू कराते हैं. कहानी बरेली की बिट्टी (कृति) की है जो एक आजाद ख्याल लड़की है और उसके माता-पिता ने उसे बेटों की तरह पाला है. लेकिन यहां एक बात चुभती है कि लड़की को आजाद ख्याल दिखाने के लिए उसका सिगरेट और शराब पीना कितना जायज है? चलिए कोई बात नहीं एक दिन उसके हाथ लगती है ‘बरेली की बर्फी.’ उसके बाद उसकी दीवानगी इसके लेखक के प्रति शुरू हो जाती है.
प्रिंटर चिराग दुबे (आयुष्मान) को पता चलता है कि बिट्टी को किताब के लेखक से इश्क हो गया है और यहां एंट्री होती है प्रीतम विद्रोही (राजकुमार) की. प्रीतम की एंट्री की बाद से फिल्म मजेदार हो जाती है, और इस सिंपल से लव ट्राएंगल में ट्विस्ट आ जाता है. फिल्म की एडिटिंग कई जगह तंग करती है. पहला हाफ थोड़ा ढीला है, जबकि सेकंड हाफ में मेलोड्रामा और कमजोर निष्कर्ष है. फिल्म की अवधि 2 घंटे है तो इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं होती है
राजकुमार राव हमेशा से डार्क हॉर्स रहे हैं. वे जिस भी फिल्म में आते हैं बहुत ही खामोशी के साथ महफिल लूटकर ले जाते हैं. उन्हें एक्टिंग का हुनर इतने जबरदस्त ढंग से आता है कि मजा आ जाता है. प्रीतम विद्रोही का जो उन्होंने कैरेक्टर किया है उसे लंबे समय तक याद रखा जा सकेगा. बिट्टी के किरदार में कृति सैनन ठीक लगी हैं, लेकिन उनका कैरेक्टर कहीं न कहीं हमें ‘तनु वेड्स मनु’ की तनु की याद दिलाता है. आयुष्मान खुराना ठीक हैं. अच्छी एक्टिंग की है, देसी लौंडे का किरदार करना वे भी बखूबी जानते हैं. कुल मिलाकर जहां फिल्म बर्फी को लेकर है, लेकिन बाजी प्रीतम रूपी गुलाब जामुन मार जाता है.
फिल्म के गाने एवरेज हैं और कहानी के फ्लो को तोड़ते हैं. यह एक मीठी और प्यारी-सी फैमली फिल्म है. लेकिन इस हफ्ते इसे बॉक्स ऑफिस पर अक्षय की टॉयलेट…से जूझना पड़ेगा तो अगले हफ्ते ‘ए जेंटलमैन’ और ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ रिलीज होने वाली हैं. फिल्म की कामयाबी के लिए वर्ड ऑफ माउथ काफी मायने रखेगा.