डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक भारतीय शिक्षाविद, चिन्तक, राजनेता और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में जाना जाता है। वो पंडित जवाहर लाल नेहरु मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे पर नेहरु के साथ मतभेदों के कारण मंत्रिमंडल और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देकर एक नयी राजनैतिक पार्टी ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना की। केंद्र सरकार में मंत्री बनने से पहले वो पश्चिम बंगाल सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे। मात्र 33 वर्ष की आयु वो कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वह सबसे कम आयु के व्यक्ति थे।
जन्म: 06 जुलाई 1901, कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत
मृत्यु: 23 जून 1953, कश्मीर कारावास, स्वतन्त्र भारत
कार्य: शिक्षाविद, चिन्तक, राजनेता
प्रारंभिक जीवन
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के एक अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। उनकी माता का नाम जोगमाया देवी था। उमा प्रसाद मुखोपाध्याय उनके छोटे भाई थे। उन्होंने सन 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की परीक्षा प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने बंगाली विषय में एम.ए. भी प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण किया और सन 1924 में क़ानून की भी पढ़ाई पूरी की। इस प्रकार उन्होंने अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कीं, और शीघ्र ही उनकी ख्याति एक शिक्षाविद् और लोकप्रिय प्रशासक के रूप में फ़ैल गई। सन 1924 में पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत के लिए पंजीकरण कराया।
कैरियर
सन 1926 में वो इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन कर वापस भारत आ गए। सन 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनने वाले वे सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। डॉ मुख़र्जी इस पद पर सन 1938 तक बने रहे। सन 1937 में उन्होंने गुरु रविंद्रनाथ टैगोर को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण के लिए आमंत्रित किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी ने दीक्षांत समारोह का भाषण बांग्ला में दिया हो।
डॉ मुख़र्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत सन 1929 में हुई जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बंगाल विधान परिषद् में प्रवेश किया परन्तु जब कांग्रेस ने विधान परिषद् के बहिस्कार का निर्णय लिया तब उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके पश्चात उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और चुने गए। सन 1941-42 में वह बंगाल राज्य के वित्त मंत्री रहे। सन 1937 से 1941 के बीच जब कृषक प्रजा पार्टी और मुस्लिम लीग की साझा सरकार थी तब वो विपक्ष के नेता थे और जब फजलुल हक़ के नेतृत्व में एक प्रगतिशील सरकार बनी तब उन्होंने वित्त मंत्री के तौर पर कार्य किया पर 1 साल बाद ही इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद धीरे-धीरे वो हिन्दुओं के हित की बात करने लगे और हिन्दू महासभा में शामिल हो गए। सन 1944 में वो हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकतावादी राजनीति का विरोध किया था। उस समय जिन्ना मुसलमानों के लिए बहुत ज्यादा रियायत की मांग कर रहे थे और पाकिस्तान आन्दोलन को भी हवा दे रहे थे। उन्होंने मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिकतावादी दुष्प्रचार से हिन्दुओं की रक्षा के लिए कार्य किया और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का विरोध किया।
डॉ॰ मुखर्जी धर्म के आधार पर विभाजन के कट्टर विरोधी थे। उनके अनुसार विभाजन सम्बन्धी परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से उत्पन्न हुई थी। वो यह भी मानते थे कि सत्य यह है कि हम सब एक हैं और हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही भाषा और संस्कृति के हैं और एक ही हमारी विरासत है। इस मान्यता के साथ आरम्भ में उन्होंने देश के विभाजन का विरोध किया था पर 1946–47 के दंगों के बाद उनके इस सोच में परिवर्तन आया। उन्होंने महसूस किया कि मुस्लिम लीग के सरकार में मुस्लिम बाहुल्य राज्य में हिन्दुओं का रहना असुरक्षित होगा। इसी कारण सन 1946 में उन्होंने बंगाल विभाजन का समर्थन किया।
आजादी के बाद
स्वतंत्रता के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में सरकार बनी तब डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर भारत के पहले मंत्रिमण्डल में शामिल हुए और उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। भारत के संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के तौर पर उन्होंने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया परन्तु उनके राष्ट्रवादी सोच के चलते कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ मतभेद बराबर बने रहे। अंततः सन 1950 में नेहरु-लियाकत समझौते के विरोध में उन्होंने 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
इसके बाद उन्होंने एक नए राजनैतिक दल की स्थापना की जो उस समय सबसे बडा विरोधी दल था। इस प्रकार अक्टूबर, 1951 में ‘भारतीय जनसंघ’ का उद्भव हुआ। सन 1952 के चुनाव में भारतीय जन संघ ने कुल तीन सीटें जीती, जिसमे एक उनकी खुद की सीट शामिल थी।
जम्मू कश्मीर और धारा 370
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर राज्य को एक अलग दर्जा दिए जाने के घोर विरोधी थे और चाहते थे की जम्मू कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह माना जाये। वो जम्मू कश्मीर के अलग झंडे, अलग निशान और अलग संविधान के विरोधी थे। उनको ये बात भी नागवार लगती थी कि वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। उन्होंने देश की संसद में धारा-370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत की।
अगस्त 1952 में उन्होंने बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर में प्रवेश का एलान किया और इसे पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट के जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1901: श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का जन्म हुआ
1921: कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में स्नातक
1923: कलकत्ता विश्वविद्यालय से बांग्ला विषय में स्नातकोत्तर
1923: कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट का फैलो मनोनित
1924: लॉ की डिग्री हासिल की
1924: कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत की शुरुआत
1924: उनके पिता आशुतोष मुख़र्जी का देहांत
1926: पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए
1927: इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर वापस लौटे
1934: कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने
1938: कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल समाप्त हो गया
1941-42: बंगाल प्रदेश में वित्त मंत्री
1944: हिन्दू महासभा का अध्यक्ष बने
1946: बंगाल विभाजन का समर्थन किया
1947: केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए
1950: 6 अप्रैल को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया
1951: 21 अक्टूबर को भारतीय जनसंघ की स्थापना की
1953: 11 मई जो जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर गिरफ्तार कर लिया गया
1953: 23 जून को रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत