Home राष्ट्रीय UP के गवर्नर अखबार बेचने से राजनीति में आने तक…..

UP के गवर्नर अखबार बेचने से राजनीति में आने तक…..

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यूपी के गवर्नर राम नाइक ने कहा क‍ि योगी सरकार के इवैल्यूएशन (मूल्यांकन) के लिए कम से कम 6 महीने का समय मिलना चाहिए। उन्होंने कहा क‍ि किसी भी सरकार का मूल्यांकन जनता ही करती है और उसके मूल्यांकन के चलते ही अखिलेश सरकार गई और योगी सरकार आई। गवर्नर के मुताबिक, यूपी के लॉ एंड ऑर्डर को ठीक करने के ल‍िए पुलिस को संवेदनशील तरीके से काम करना होगा।
मैं 29 यूनिवर्सिटीज का चांसलर हूं, जिनमें 25 पुरानी और 4 नई यूनिवर्सिटीज हैं। जब मैंने कार्यभार संभाला, तब इन यूनिवर्सिटीज में टाइमली दीक्षांत समारोह तक नहीं होते थे। हमने एकेडमिक कैलेंडर को रेगुलराइज किया है। सितंबर तक गाड़ी पटरी पर आ जाए, इसकी व्यवस्था की है। 5 जुलाई को कुलपति सम्मेलन किया था, जिसमें उच्च शिक्षा मंत्री, चिकित्सा शिक्षा मंत्री भी आए थे। उनके सामने यूनिवर्सिटीज की समस्याओं को दूर करने के फैसले लिए गए। आश्चर्य की बात है कि अखिलेश सरकार में किसी शिक्षा मंत्री ने किसी तरह की मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
हमने तय किया है कि अब गोल्ड मेडलिस्ट स्टूडेंट्स की आंसरशीट सभी स्टूडेंट्स को दिखाई जाएंगी। कोई भी स्टूडेंट इन्हें देख सकेगा। इससे 2 फायदे होंगे, पहला- पढ़ाई में कॉम्प‍िटीशन बढ़ेगा। दूसरा- पढ़ाई में क्वालिटी के साथ ट्रांसपेरेंसी आएगी।
दूसरा फैसला ये है कि हमने रिसर्च पर जोर दिया है। केंद्र सरकार दीनदयाल शताब्दी वर्ष में कई योजनाएं ला रही है। उसी की तर्ज पर यूपी सरकार भी योजना बनाएगी। इस पर संबंधित मंत्रियों और सरकार से बात हुई है।
तीसरा बड़ा फैसला ये है कि एडमिशन मेथड को अब पूरी तरह से ऑनलाइन कर दिया जाएगा। सबसे अहम बात ये हुई है कि यूनिवर्सिटीज को करप्शन फ्री किया जाएगा। कानपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर मुन्ना सिंह और डॉ. कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रो. यूएस तोमर की बर्खास्तगी इसी दिशा में कदम है।
1.मीटिंग में वो 3 खामियां जो आपने प्वाइंट आउट की हों?
1- एफिलिएटेड कॉलेज के साथ ढेरों समस्याएं हैं। इनको मानकों के अनुरूप लाना पहली चुनौती है।
2-टीचर्स की कमी है, जिसे जल्द दूर करने पर जोर दिया जा रहा है।
3-यूनिवर्सिटीज में स्टार्टअप पर कैम्पस चर्चा का कैम्पेन शुरू किया जाएगा, ताकि स्टूडेंट पढ़ाई के समय ही अपने बिजनेस या फ्यूचर की प्लानिंग तय कर सके।
2.अखिलेश और योगी सरकार के कॉम्पैरिजन में किसे बेहतर पाते हैं?
 मेरे लेवल पर ये कॉम्पैरिजन करना ठीक नहीं है, क्योंकि दोनों सरकारें मेरी थीं। योगी सरकार के मूल्यांकन के लिए कम से कम 6 महीने का समय तो मिलना ही चाहिए। वैसे किसी भी सरकार का मूल्याकंन जनता ही करती है और उसके मूल्यांकन के चलते ही अखिलेश सरकार गई और योगी सरकार आई।
3.कहा जाने लगा है कि आप अखिलेश सरकार के खिलाफ काफी आक्रामक थे और योगी सरकार के प्रति आपका रुख लचीला है?
ये बात तो अब तक अपोजिशन ने भी नहीं कही है। अभी कल ही कांग्रेस और सपा के लोग मिले थे। उन्होंने भी ये बात नहीं कही। मैं संविधान के अनुरूप काम करता हूं। बातचीत भी करता हूं। मुझे हर महीने राष्ट्रपति को रिपोर्ट देनी होती है। ये करते समय कोऑर्डिनेशन की जरूरत होती है। ये काम अखिलेश के समय में भी करता था और अब भी करता हूं। फर्क इतना है कि उस समय राज्य और केंद्र में अलग-अलग सरकारें थीं।
4.लॉ एंड ऑर्डर को लेकर योगी सरकार को कितने नंबर देंगे?
मैंने पहले ही कहा कि आकलन के लिए 6 महीने तो देने ही चाहिए। हालांकि, पुलिस को काफी सतर्कता से काम करना चाहिए। चोरी, डकैती और रेप जैसे क्राइम पर कंट्रोल के लिए पुलिस को संवेदनशील तरीके से काम करना होगा। साथ ही अवेयरनेस कैम्पेन भी चलाना होगा, तभी इस पर कंट्रोल होगा।
5. गोरखपुर में इतने बच्चों की मौत हो गई, लेकिन आप चुप क्यों हैं?
सरकार ने जांच कराई है। दोषियों पर कार्रवाई हो रही है, ऐसा दिखता है। सही दिशा में कदम दिख रहे हैं। अगर कुछ संशय होगा तो बात करूंगा।
6.प्राइवेट यूनिवर्सिटीज तेजी से बढ़ रही हैं। इससे सरकार कैसे मुकाबला करेगी?
प्राइवेट यूनिवर्सिटीज का बढ़ना ठीक है। इससे कॉम्प‍िटीशन बढ़ेगा। हां, ये है कि इन यूनिर्विटीज की फीस इतनी ज्यादा होगी कि गरीब उसे पूरा नहीं कर पाएंगे। इनसे मुकाबले के लिए ही सरकारी यूनिवर्सिटीज की क्वालिटी पर जोर दिया है। सरकार, चांसलर और वाइस चांसलर तीनों मिलकर एक दिशा में काम करें।
7.आप मेडिकल यूनिवर्सिटीज के भी चांसलर हैं, फिर बेहतर क्वालिटी के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठा रहे हैं?
इसमें कई टेक्न‍िकल दिक्कते हैं। सैफई-नोएडा के एक मेडिकल इंस्टीट्यूट का जिम्मा सीएम और चीफ सेक्रेटरी के पास है। पीजीआई में भी कई टेक्निकल पेंच है। सिर्फ एक यूनिवर्सिटी केजीएमयू है। मैं मानता हूं कि चीफ सेक्रेटरी और सीएम के पास काम ज्यादा होता है। ऐसे में इन संस्थाओं के मुखिया में बदलाव होना चाहिए। सरकार से इस पर बात हो रही है। जल्द ही निर्णय होगा।
गवर्नर ने पं. दीनदयाल का वो किस्सा सुनाया, जिसने उन्हें प्रेरणा दी…
मुंबई में पॉलिटिक्स करते हुए मैंने झोपड़पट्टी जनता परिषद गठित की। उस समय कई लोगों ने कहा कि ये ठीक नहीं है, क्योंकि ये लोग सरकारी जमीनों पर कब्जा करके रहते हैं। बिजली-पानी भी लेते हैं। एक बार जब पं. दीनदयाल उपाध्याय मुंबई आए तो उनसे चर्चा के दौरान उन्होंने एक मार्मिक कहानी सुनाई। पं. दीनदयाल ने बताया कि मैं बचपन में पढ़ाई में होशियार था। सुबह उठकर पढ़ाई करता था। उस दौरान घर के एक कोने में गौरैया ने घोंसला लगा दिया और अंडे भी दे दिए। बच्चे हो गए और वे सुबह ही चीं..चीं..चीं.. करने लगते थे, जिससे मेरी पढ़ाई बाधित होती थी। मैंने सीढ़ी लगाकर उन घोंसलों को हटाने का निर्णय लिया। जैसे ही सीढ़ी लगाई, नानी ने कहा कि क्या कर रहे हो? मैंने कहा कि मैं ये घोंसला हटाने जा रहा हूं। तब नानी ने कहा कि जब वह महीनों से घास इकट्ठा करके घोंसला बना रही थी, तब तुम्हारी बुद्धि कहां गई थी। अब उसने बच्चे दे दिए हैं तो उसके घोंसले उजाड़ोगे। जब बच्चों के पंख आएंगे तो वे खुद उड़ जाएंगे। किसी का घर उजाड़ने से बुरा पाप कुछ नहीं होता है। इसी प्रेरणादायक किस्से के जरिए उन्होंने मेरी परिषद को सही ठहराया। पं. दीनदयाल ने कहा कि अगर वे वहां बस गए हैं तो उन्हें बिजली-पानी भी उपलब्ध करानी चाहिए। इसके बाद से ही मैंने झुग्गी-झोपड़ी वालों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई शुरू की, जबकि उस दौर में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट और कांग्रेसियों का उस क्षेत्र में बड़ा दबदबा था। उस समय मैंने एक नारा दिया था- मैं भी इंसान हूं, मुझे भी घर चाहिए और अगर घर नहीं दे सकते, तो जो जहां रह रहा है, उसे वहां रहने दो।
8.आप पॉलिटिक्स में किसकी प्रेरणा से आए?
मैं 1969 में मुंबई की चार मशहूर कंपनियों का कंपनी सेक्रेटरी था। उस समय ढाई हजार रु. सैलरी मिलती थी, लेकिन गुरु गोलवरकर के विचारों से प्रभावित होकर जनता की सेवा का फैसला लिया। फिर दीनदयाल जी के अंत्योदय और एकात्म मानववाद के भाव से प्रेरित होकर काम करता रहा, लेकिन पॉलिटिक्स में मेरी प्रेरणा अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ही रहे।
9. पॉलिटिक्स में आने के बाद कैसा संघर्ष रहा?
जब मैंने सामाजिक सेवा का फैसला किया, तब मेरी पत्नी ने सपोर्ट करते हुए कहा कि आप सेवा कीजिए, लेकिन मुझे नौकरी करने की इजाजत दीजिए। दो बेटियां हैं, उनके पालन-पोषण के लिए इसकी जरूरत है। मेरी सहमति से उन्होंने बीएड किया और फिर एक स्कूल में नौकरी शुरू की। परिवार को उन्होंने ही संभाला। इससे मुझे पॉलिटिक्स में आगे बढ़ने में मदद मिली।
10.आज के पॉलिटिशियन्स के काम को किस तरह से देखते हैं?
पॉलिटिक्स में सेवा का लक्ष्य रखकर काम करना चाहिए। जवाबदेही की भूमिका में काम करना चाहिए और जीवन पारदर्शी होना चाहिए। दूसरों की नहीं जानता, लेकिन मैं 1978 से लगातार इसी दिशा में काम कर रहा हूं। हर साल अपने काम की डिटेल भी जनता के सामने रखता हूं।
11.आगे बढ़ने के लिए आज के युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं तो ये कहूंगा कि युवा वर्ग को कष्ट की आदत डालनी चाहिए। इससे संवेदना काफी बढ़ती है। मैं आपको अपना किस्सा बताता हूं- मेरे पिता जी हेडमास्टर थे। मैं जब बीकॉम की पढ़ाई करने पुणे गया तो उन्होंने कहा कि अब आपको अपना खर्च खुद उठाना चाहिए, लेकिन इससे कष्ट जरूर होगा। मैंने इसे प्रेरणा मानते हुए ट्यूशन पढ़ाया और अखबार बेचा। इससे मुझे जो कष्ट हुआ, उससे संवेदनशील होने में मदद मिली। 3 बार विधायक और 5 बार सांसद रहा तो ये मैं बार-बार कहता हूं कि युवाओं को कष्ट की आदत डालनी चाहिए।

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