देव भूमि हिमाचल में वैसे तो वर्ष भर मेले, त्यौहार व जातरें होती रहती हैं मगर चम्बा मणिमहेश भरमौर जातर का विशेष महत्व है। हर वर्ष जन्माष्टमी से शुरू होने वाली इस यात्रा का राधाष्टमी के दिन पवित्र डलझील में स्नान के बाद समापन होता है। मणिमहेश यात्रा धाॢमक ही नहीं बल्कि सहासिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। करीब 13 किलोमीटर की दुर्गम पहाडिय़ों की चढ़ाई चढक़र कैलाश पर्वत के चरणों में रावी नदी की सहायक बुद्धिल घाटी में समुद्र तल से 4200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है पवित्र मणिमहेश झील। वैदिक काल से ही कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना गया है जबकि लोगों की धारणा है कि मणिमहेश की डल झील भोले शिव भगवान् की स्नान स्थली है। सदियों से मनाई जा रही इस यात्रा को तभी सफल माना जाता है जब यहां रात्रि व्यतीत कर भोर होते ही कैलाश पर्वत के दर्शन वहां कुदरती तौर पर उत्पन् न होने वाले दिव्य प्रकाश में करके झील में स्नान किया जाए। चंद ही क्षणों के लिए उत्पन्न होने वाला ये प्रकाश इतना तेजमय होता है कि रात होने के बावजूद भी सब कुछ साफ दिखाई देता है। विद्वानों ने इसकी तुलना मणी आभा से की है। इसी चमकदार मणि के नाम पर इसका नाम मणिमहेश पड़ा बताया जाता है। ये दिव्य प्रकाश कुछ ही क्षणें के लिए उत्पन्न होता है। तदोपरांत सूर्य की किरणों में विलीन हो जाता है जिसकी तुलना शिवजी के गले में लिपटे नाग की मणि से भी की जाती है। आम तौर पर इस मणि के दर्शन मुख्य स्नान को ही होते हैं। मगर गत वर्ष पूरी यात्रा के दौरान कुल चार बार इस मणि के दर्शन हुए थे। वहीं इस वर्ष भी अभी तक तीन बार यात्रियों को मणि दर्शन हो चुके हैं। पिछले कई वर्षों से यात्रियों की संख्या में बढ़ौतरी से ये यात्रा पूरी तरह से शिव मानचित्र पर उभरी है। देश विदेश से लाखों की संख्या में शिव भक्त मणि दशर््ान की आशा लेकर यहां पहुंचते हैं। इस वर्ष की मणिमहेश यात्रा में कुल मिलाकर श्रद्धालुओं का आंकड़ा दस लाख को पार कर गया है। आम तौर पर मणिमहेश यात्रा जन्माष्टी से लेकर राधाष्टमी यानि 15 दिनों की होती है। इससे पहले वर्ष 1955,1974 व 1993 में भी यह यात्रा 43 दिनों तक चली थी। वर्ष 2031 एवं वर्ष 2050 में भी यह यात्रा 43 दिनों तक चलेगी। शेष वर्षों में जन्माष्टमी एवं राधाष्टमी के बीच 15 दिनों का ही अंतर रहने के कारण 15 दिनों बाद ही मुख्य स्नान सम्पन्न होगा।