नौवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हर लिहाज से भारत के लिए कामयाब रहा. डोकलाम विवाद की पृष्ठभूमि में भारत के सख्त रुख के सामने समझौतावादी दृष्टिकोण को मजबूर हुए चीन ने आखिरकार द्विपक्षीय बातचीत के दौरान कहा कि वह भारत के साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है. चीनी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी से गर्मजोशी भरी मुलाकात के दौरान यह बात कही. ढाई महीने तक डोकलाम विवाद के बाद दोनों नेताओं की यह पहली द्विपक्षीय बातचीत रही. इसके पहले पहली बार ब्रिक्स घोषणापत्र में पाकिस्तान की सरजमीं से चलने वाले आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का स्पष्ट रूप से जिक्र करते हुए उनकी निंदा की गई. यह भी भारत के लिए बड़ी सफलता रही. आइए मामले से जुड़े 5 अहम बिंदुओं पर डालें एक नजर:
1. पिछले साल गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद के सफाये की बात कही गई थी. उसके बाद अबकी बार उससे एक कदम आगे बढ़ते हुए इसके लिए जिम्मेदार आतंकी संगठनों का जिक्र किया गया. ये ब्रिक्स के इतिहास में पहली बार हुआ. ये आतंकी संगठन पाकिस्तान की सरजमीं से संचालित होते हैं. चीन, पाकिस्तान का बेहद करीबी मित्र भी है. इसके बावजूद चीन में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में इन संगठनों पर लगाम की बात कहकर पाकिस्तान को परोक्ष रूप से संदेश दिया गया. हमेशा पाकिस्तान का पक्ष लेने वाले चीन का इस मामले में चुप रह जाना भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक कामयाबी माना जा रहा है. दरअसल इसके पीछे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि आतंकवाद के मसले पर चीन को छोड़कर पांच देशों के समूह वाले ब्रिक्स के सदस्य रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका, भारत के रुख से सहमत थे. भारत लगातार ब्रिक्स सम्मेलन में इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाता रहा है. इस बार जब भारत को अपेक्षित समर्थन मिल गया और अन्य देशों का दबाव बना तो चीन को मजबूरी में भारत की बात माननी पड़ी.
2. चीन की आर्थिक रफ्तार कमजोर हुई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी मुद्रा की पकड़ कमजोर हुई है. चीन में बेरोजगारी बढ़ी है. उसके विनिर्माण क्षेत्र पर बुरा असर पड़ा है. ऐसे में चीन को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपनी भागीदारी और रसूख बढ़ाने के लिए बड़े व्यापारिक साझेदारों के साथ संबंध मजबूत करने होंगे. लिहाजा चीन अपने रुख में उपयोगिता के साथ बदलाव कर रहा है.
3. चीन में सत्ता परिवर्तन के संबंध में अक्टूबर में बैठक होने जा रही है. चीनी राष्ट्रपति अगले पांच साल के लिए भी दावेदार हैं. ऐसे में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी किसी भी तरह के विवाद से बचने की रणनीति पर काम कर रही है ताकि जनमानस पर चिनपिंग की छवि पर असर नहीं पड़े.
4. चीन का पड़ोसी उत्तर कोरिया लगातार न्यूक्लियर टेस्ट कर अंतरराष्ट्रीय जगत विशेष रूप से अमेरिका को उकसा रहा है. करीबी मित्र चीन के लगातार नरम रुख अपनाने की बात को भी उसने मानने से इनकार कर दिया है. इससे पूर्वी एशिया के क्षेत्र में माना जा रहा है कि चीन का प्रभाव कमजोर हो रहा है. चीन के लिए यह समस्या बनता जा रहा है. इस क्रम में फिलहाल चीन कोई बड़ा जोखिम लेने के मूड में नहीं है लिहाजा ब्रिक्स में भी उसने खामोशी से भारत के समर्थन में हां में हां मिला दी.
5. दक्षिण चीन सागर में दावेदारी के मसले पर चीन का जापान, वियतनाम समेत कई पड़ोसियों के साथ विवाद है. अमेरिका भी इस क्षेत्र में अपने मित्रों की मदद की बात कहकर चीन को चेतावनी दे रहा है. लिहाजा चीन इस वक्त किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता.