गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में अलग-अलग शहरों में देशभर के पत्रकार उमड़ पड़े. पत्रकारों का साथ देने के लिए सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के नेता भी आए. सबने माना ये लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है. बेंगलुरु से भोपाल तक और पटना से तिरुवनंतपुरम तक, गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में अलग-अलग शहरों में पत्रकार सड़कों पर उतर आए. दिल्ली के प्रेस क्लब में दोपहर से पत्रकार, अलग-अलग संगठनों के लोग और नेता जुटने लगे. महाराष्ट्र के कोल्हापुर से आईं गोविंद पनसारे की बहू ने बताया कि कैसे उस पनसारे हत्याकांड की जांच ठहरी हुई है. मेधा पनसारे ने कहा कि हाईकोर्ट की पहल के बाद ही हत्याकांड की जांच कुछ आगे बढ़ पाई. अब इस मामले में गिरफ्तार किये गए दो आरोपियों में एक को जमानत मिल गई है और दूसरे ने भी जमानत की अर्जी दी है. मेधा ने कहा कि जिस तरह से जांच चल रही है, उससे कानून की पकड़ कमजोर पड़ती नजर आ रही है.
यहां सीताराम येचुरी, डी राजा और मोहम्मद सलीम दिखे. गौरी लंकेश की हत्या के साथ एक आजाद आवाज थम गई है. ये एहसास सबको है कि कहीं न कहीं ये दूसरों को भी डराने की कोशिश है, लेकिन देश भर में पत्रकारों का जुटा ये हुजूम बताता है कि हमारे यहां लोकतंत्र की जड़ें भी गहरी हैं और इसे बचाए रखने के लिए लड़ने का जज्बा भी पूरा है.
जाने-माने पत्रकार और ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि विरोध चाहे जितना हो, हम डर के पीछे न हटें. हिंद स्वराज के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा, ये व्यक्ति की नहीं, विचार की हत्या है.