Home प्रादेशिक तीन तलाक पर SC का फैसला हमारी धार्मिक भावनाओं पर चोट…

तीन तलाक पर SC का फैसला हमारी धार्मिक भावनाओं पर चोट…

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तीन तलाक पर 22 अगस्त को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा के लिए हुई बैठक में आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वह शरीयत में दखल बर्दाश्त नहीं करेगा। बोर्ड ने माना कि तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) गुनाह और शर्मनाक है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हम खुश नहीं हैं। यह एक तरह से हमारी धार्मिक भावनाओं पर चोट है। रविवार को आठ घंटे तक चली इस बैठक में कोई ठोस फैसला नहीं हुआ। हालांकि, बोर्ड ने 10 मेंबर एक कमेटी गठित करने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दाखिल की जाएगी या नहीं इस सवाल का सीधा जवाब देने की बजाय वर्किंग कमेटी मेंबर असमा जोहरा ने कहा कि पहले कमेटी तो बन जाए।

असमा जोहरा ने कहा कि हम तीन तलाक के हिमायती नहीं हैं। इस्लाम भी इसे पसंद नहीं करता है। यह तरीका न बढ़े, इसके लिए देशभर में बोर्ड की महिला इकाइयां काम करेंगी। उन्होंने दावा किया कि 12 साल पहले बोर्ड की भोपाल में हुई बैठक में जो मॉडल निकाहनामा अपनाया गया था, उसके अच्छे नतीजे मिले हैं। ऐसे मामले हमारे सामने आने पर हम काउंसलिंग के जरिए उसका हल तलाशते हैं।

बोर्ड की बैठक के बाद शाम 4 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी थी। लेकिन यह तय वक्त से करीब चार घंटे देरी से शुरू हुई। वर्किंग कमेटी मेंबर कमाल फारुखी और जफरयाब जिलानी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो-तीन सवालों का जवाब देने के बाद यह कहते हुए चले गए कि उन्हें फ्लाइट से वापस जाना है। इनके पीछे-पीछे सांसद असदुद्दीन औवेसी, खालिद फिरंगी महली, फजलुरहीम मुजहद्दी भी उठ खड़े हुए। बाद में वर्किंग कमेटी मेंबर असमा जोहरा और मौलाना उमरैन मेहफूज रहमानी ने जानकारी दी।

तीन तलाक से जुड़े मसले और शरीयत के नियमों को लेकर बोर्ड ने पहली बार सोमवार का भोपाल के इकबाल मैदान पर महिलाओं का सम्मेलन भी बुलाया है। इसमें महिलाओं को पूरे पर्दे में आना होगा। इसके लिए इकबाल मैदान के चारों और पर्दे लगाए जाएंगे। इसमें बोर्ड चेयरमैन मोहम्मद राबे हसन नदवी, मोहम्मद वली रहमानी, डॉ. असमा जेहरा, शहर काजी सैयद मुश्ताक अली नदवी, ताजुल मसाजिद दारुल उलूम के मुखिया सिराज मियां अपने विचार रखेंगे।

1400 साल पुरानी तीन तलाक की रिवाज पर सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। 5 जजों की बेंच ने 3:2 की मेजॉरिटी से कहा था कि एक साथ तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत वॉइड (शून्य), अनकॉन्स्टिट्यूशनल (असंवैधानिक) और इलीगल (गैरकानूनी) है। बेंच में शामिल दो जजों ने कहा कि सरकार तीन तलाक पर 6 महीने में कानून बनाए। लेकिन, 22 अगस्त को देर शाम सरकार ने इस पर अपना स्टैंड साफ कर दिया। लॉ मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भले ही दो जजों ने कानून बनाने की राय दी है, लेकिन बेंच के मेजॉरिटी जजमेंट में तीन तलाक को असंवैधानिक बताया गया है। लिहाजा, इसके लिए कानून बनाने की जरूरत नहीं है।

जब तलाक-ए-बिद्दत खारिज हो चुका है लेकिन सुन्नी मुस्लिमों के पास दो ऑप्शन बरकरार हैं। पहला है- तलाक-ए-अहसन और दूसरा है- तलाक-ए-हसन।
– तलाक-ए-अहसन के तहत एक मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महीने में एक बार तलाक कहता है। अगर 90 दिन में सुलह की कोशिश नाकाम रहती है तो तीन महीने में तीन बार तलाक कहकर पति अपनी पत्नी से अलग हो जाता है। इस दौरान पत्नी इद्दत (सेपरेशन का वक्त) गुजारती है। इद्दत का वक्त पहले महीने में तलाक कहने से शुरू हो जाता है। तलाक-ए-हसन के तहत पति अपनी पत्नी को मेन्स्ट्रूएशन साइकिल के दौरान तलाक कहता है। तीन साइकिल में तलाक कहने पर डाइवोर्स पूरा हो जाता है। तीन तलाक मामले की पैरवी कर चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ एक साथ तीन तलाक कहने (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन में दखल नहीं दिया है।
सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर फैसला दिया है।
लखनऊ में ब्याही शाजदा खातून ने अपने पति जुबेर अली से खुला (तलाक) लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली। इसलिए उसने शनिवार को प्रेस कांफ्रेंस में खुला के नोटिस पर दस्तखत कर भेज दिया। शाजदा का कहना है कि वह पति से खुला लेने के लिए दो बार इस्लामी एजुकेशन इंस्टीट्यूट नदवा और एक बार फिरंगी महल भी गई, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली। कुरान और हदीस में इसे लेकर कोई रोक भी नहीं है। इस्लाम में पति को तलाक देने और महिला को खुला लेने का हक दिया गया है। खुला लेने के बाद औरत अपनी मर्जी से रह सकती है।

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