वैसे तो हमारे देश में पितरों का श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए अनेकों तीर्थ हैं, लेकिन इनमें से कुछ तीर्थ ऐसे हैं जिनका विशेष ही महत्व है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों के बारे में बता रहे हैं। मान्यता है कि इन स्थानों पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्त होती है-
1. ब्रह्मकपाल, उत्तराखंड
ब्रह्मकपाल श्राद्ध कर्म के लिए पवित्र तीर्थ है। यहां पर तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास ही है। धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्ध कर्म करने के बाद पूर्वजों की आत्माएं तृप्त होती हैं और उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसके बाद कहीं भी पितृ श्राद्ध और पिंडदान करने की जरूरत नहीं होती। इस तीर्थ के पास ही अलकनंदा नदी बहती है। किवदंती यह भी है कि पांडवों ने भी यहां अपने परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।- ब्रह्मकपाल तीर्थ हिंदू धर्म के प्रमुख वैष्णव तीर्थ और चार धामों में से एक बद्रीनाथ के पास स्थित है। हरिद्वार, दिल्ली, बनारस, गोरखपुर आदि जगहों से बद्रीनाथ के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं।
2. मेघंकर, महाराष्ट्-
मेघंकर तीर्थ साक्षात भगवान जर्नादन का स्वरूप है। यह महाराष्ट्र के पास बसे खामगांव से लगभग 75 किमी दूरी पर है। यहां स्नान करने का बड़ा महत्व है। इस तीर्थ का वर्णन ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण आदि धर्म ग्रंथों में आता है। यह स्थान पैनगंगा नदी के तट पर है। मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी के यज्ञ में प्रणीता पात्र (यज्ञ के दौरान उपयोग में आने वाला बर्तन) से इस नदी की उत्पत्ति हुई थी। यह नदी यहां पश्चिम वाहिनी होने के कारण और भी पुण्यपद मानी जाती है। यहां श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं यहां पापियों को भी मुक्ति मिल जाती है। नदी के तट पर भगवान विष्णु का एक प्राचीन मंदिर है। इसका सभामंडप विशाल और कलापूर्ण है। भगवान की मूर्ति लगभघ 11 फुट की शिला की बनी हुई है। भगवान के पास ही श्रीदेवी, भूदेवी और जय-विजय की मूर्तियां हैं। कला की दृष्टि से ये बड़ी सुंदर मूर्तियां हैं। यहां मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से पूर्णिमा तक मेला लगता है। मेघंकर महाराष्ट्र के औद्योगिक शहर खामगांव से लगभग 75 किलोमीटर दूर है। खामगांव स्टेशन से यहां के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं।
3. लोहार्गल, राजस्थान
श्राद्ध कर्म करने के लिए यूं तो अनेक तीर्थ प्रसिद्ध हैं, उन्हीं में से एक तीर्थ ऐसा भी है जिसकी रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं। वह तीर्थ है- लोहार्गल। यह राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तीर्थ की रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं और जिस व्यक्ति का श्राद्ध यहां किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं। यहां के प्रधान देवता सूर्य हैं। लोहार्गल की परिक्रमा भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमीं तिथि से पूर्णिमा तक होती है। यहां के बारे में एक मान्यता यह भी है की यहां पानी में पांडवों के अस्त्र-शस्त्र गल गए थे इसलिए इस जगह का नाम लोहार्गल पड़ा।
पश्चिम रेलवे की एक लाइन राजस्थान में सवाई माधोपुर से लुहारू तक जाती है। इसी लाइन पर सीकर या नवलगढ़ स्टेशन पड़ता है। यही लोहागर का नजदीकी स्टेशन है। यहां से तीर्थ स्थल तक जाने के लिए आसानी से साधन मिल जाते हैं।
4. सिद्धनाथ, मध्य प्रदेश
सिद्धनाथ तीर्थ मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे है। सिद्धनाथ के समीप ही एक विशाल पवित्र वट वृक्ष है, इसे सिद्धवट कहते हैं। मान्यता है कि इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने अपने हाथों से लगाया था। श्राद्ध कर्म के लिए इस तीर्थ का विशेष महत्व है। हर मास की कृष्ण चतुर्दशी तथा श्राद्ध पक्ष में यहां दूर-दूर से लोग पिंडदान व तर्पण करने आते हैं। कहते हैं कि यहां हुआ श्राद्ध सिद्ध योगियों को ही नसीब होता है।
भोपाल-अहमदाबाद रेलवे लाइन पर स्थित उज्जैन एक पवित्र धार्मिक नगरी है। यहां हर गाड़ी रुकती है। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर से उज्जैन लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है। मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से उज्जैन के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं।
5. प्रयाग, उत्तर प्रदेश
जैसे ग्रहों में सूर्य है, वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सबसे अच्छा माना जाता है। यहां श्राद्ध कर्म कराने की बड़ी मान्यता है। प्रयाग का मुख्य कर्म है मुंडन और श्राद्ध। त्रिवेणी संगम के पास निश्चित स्थान पर मुंडन होता है। यहां विधवा स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं। प्रयाग में श्राद्धकर्म प्रमुख रूप से संपन्न कराए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस किसी भी पुण्यात्मा का तर्पण एवं अन्य श्राद्ध कर्म यहां विधि-विधान से संपन्न हो जाते हैं वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। यहां के घाटों पर हमेशा ही श्राद्ध कर्म होते दिख जाते हैं। त्रिवेणी तट पर पक्का घाट नहीं है। वहां पण्डे अपनी चौकियां तट पर और जल के भीतर भी लगाए रहते हैं। उन पर वस्त्र रखकर यात्री स्नान करते हैं। पण्डों के अलग-अलग चिह्न वाले झण्डे होते हैं, जिनसे मदद से अपने पण्डे का स्थान सुविधा पूर्वक ढूंढ़ सकते हैं।
प्रयाग जाने के लिए इलाहाबाद, नैनी, प्रयाग, झूसी स्टेशनों में से किसी भी एक पर अपनी सुविधानुसार उतरा जा सकता है। इनमें से इलाहाबाद स्टेशन जंक्शन है। इलाहाबाद में उत्तर रेलवे और मध्य रेलवे की लाइनें मिलती हैं। यहां से संगम ज्यादा दूर नहीं है। साथ ही प्रयाग अन्य शहरों से भी सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ हो, इसलिए सड़क मार्ग से भी प्रयाग आया जा सकता है।
6. पिण्डारक तीर्थ, गुजरात
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिण्डारक या पिण्डतारक है। यह जगह गुजरात में द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर है। यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं। वे पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरते रहते हैं। यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव और ब्रह्माजी के मंदिर हैं। साथ ही श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी है। कहा जाता है कि यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था। महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव सभी तीर्थों में अपने मृत बांधवों का श्राद्ध करने आए थे। यहां उन्होंने लोहे का एक पिण्ड बनाया और जब वह पिंड भी जल पर तैर गया तब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ कि उनके बंधु-बांधव मुक्त हो गये हैं। कहते हैं कि महर्षि दुर्वासा के वरदान से इस तीर्थ में पिंड तैरते रहते हैं।
– पिण्डारा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर भोपालका नाम का स्टेशन है। भोपालका से बसों और निजी गाड़ियों से पिण्डारा पहुंचा जा सकता है।
7. लक्ष्मणबाण, कर्नाटक
भगवान श्रीराम ने पुत्र धर्म का पालन करते हुए अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। जिस स्थान पर श्रीराम ने श्राद्ध किया, वह आज एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है। वह स्थान है- लक्ष्मणबाण। सीताहरण के बाद श्रीराम व लक्ष्मण माल्यवान पर्वत पर रुके थे। वर्षा ऋतु के चार महीने दोनों ने यहीं साथ में बिताए थे। इस पर्वत के एक भाग का नाम प्रवर्षणगिरि है। यहां के मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां हैं। यह मंदिर एक शिला में गुफा बनाकर बनाया गया है। इसमें सप्तर्षियों की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के पास ही रामकचहरी नामक एक सुंदर मण्डप है। मंदिर के पिछले भाग में ही लक्ष्मण कुंड नामक स्थान है, जो यहां का मुख्य स्थान है। इसे लक्ष्मणजी ने बाण मारकर प्रकट किया था और यहीं श्रीराम ने अपने पिता का श्राद्ध किया था। इसके पास ही बहुत सी शिल्प पिण्डियां हैं। मंदिर के पूर्व भाग में दो छोटे मंडप बने हुए हैं। एक को राम झरोखा और दूसरे को लक्ष्मण झरोखा कहते हैं। यहां पास ही सुग्रीव का मधुवन नामक बाग भी है, जिसका वर्णन रामायण में भी पाया जाता है।
विजयनगर राज्य की पुरानी राजधानी हम्पी काफी प्रसिद्ध शहर है। यहां का मुख्य मंदिर विरूपाक्ष है। माल्यवान पर्वत यहां से लगभग 6 किलोमीटर दूरी पर है। यहां आने के लिए सवारी गाडियां आसानी से मिल जाती हैं।
8. गया, बिहार
गया बिहार का दूसरा बड़ा शहर है। यह बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर बसा है। पितृ पक्ष के दौरान यहां रोज हजारों श्रद्धालु अपने पितरों के पिंडदान के लिये आते हैं। मान्यता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से पूर्वजों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। गया में पिंडदान से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है। इस तीर्थ का वर्णन रामायण में भी मिलता है। गया में पहले विविध नामों से 360 वेदियां थी, लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिण्डदान करना जरूरी समझा जाता है। इस जगह का नाम गया, गयासुर राक्षस के कारण पड़ा था। पूर्वी रेलवे पर गया मुख्य स्टेशन है। कोलकाता से गया होकर दिल्ली तक सीधी ट्रेनें जाती हैं। पटना से भी गया तक रेलवे लाइन है। गया सड़क मार्ग से भी आसपास के सभी बड़े नगरों से जुड़ा हुआ है।