जीवन में जितना जल और भोजन का महत्व हैं उतना ही स्वच्छता का है। स्वच्छता के बिना हम निरोग नहीं रह सकते हैं। भारत को स्वच्छ बनाने के लक्ष्य के साथ 2 अक्दूबर 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की गई। अभियान का लक्ष्य 2 अक्दूबर 2019 तक हर परिवार को शौचालय सहित स्वच्छता-सुविधा उपलब्ध कराना है। साथ ही ठोस और द्रव अपशिष्ट निपटान व्यवस्था, गाँव में सफाई और सुरक्षित तथा पर्याप्त मात्रा में पीने के पानी की उपलब्धता अभियान के उद्देश्यों में शामिल है।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन के विभिन्न घटक के मध्यप्रदेश में प्रभावी क्रियान्वयन के प्रति कृत-संकल्पित है। श्री चौहान के नेतृत्व में प्रदेश सरकार मिशन के तहत प्रदेश को ‘खुले से शौच मुक्त’ तथा शहरी कचरे के प्रबंधन के लिए निरंतर प्रयासरत है। खुले में शौच को जन स्वास्थ्य के लिए व्यापक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। प्रदेश में खुले में शौच मुक्त अभियान ने एक जनांदोलन का रूप ले लिया है। लोग साफ़-सफाई का महत्व जानकर न केवल व्यक्तिगत पारिवारिक स्वच्छता के लिए जागरूक हुए बल्कि अपने परिवेश, शहर, प्रदेश और देश की स्वच्छता के लिए प्रदेश की जनता ने भी यह ठान लिया है कि अब हमें खुले में शौच से मुक्ति चाहिए। लोगों ने श्रम, समय और अर्थ दान कर मिशन में योगदान किया।
खुले में शौचमुक्त प्रदेश की ओर बढ़ते कदम
अनेक शहरों में स्थानीय महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की टोलियों ने खुले में शौच के लिए जा रहे लोगों को समझाइश देकर उन्हें शौचालय बनाने के लिए प्रेरित किया। निगरानी दलों ने सबेरे-सबेरे ‘रोको-टोको अभियान’ चला कर, लोटा गैंग बनाकर, सीटियाँ बजाकर खुले में शौच जा रहे लोगों को रोका और उन्हें शौचालय का रास्ता दिखलाया। ये छोटे परन्तु महत्वपूर्ण योगदान हैं, जो एक-एक ईंट कर स्वच्छ-स्वस्थ मध्य प्रदेश की बुनियाद रख रहे हैं। प्रदेश सरकार भी अपने सुधीजनों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलने को तत्पर है। पिछले तीन साल में लगभग 4 लाख 70 हजार व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण कराया है। चलित आबादी के लिए भी राज्य सरकार ने विभिन्न सार्वजनिक/सामुदायिक शौचालयों में करीब बारह हजार सीटों का निर्माण करवाकर इनका संचालन और साफ़-सफाई सुनिश्चित की गई हैं।
इसी का परिणाम है कि शहरी स्वच्छता के क्षेत्र में प्रदेश के सभी 378 निकाय खुले में शौच मुक्त घोषित किये जा चुके हैं। भारत सरकार की अधिकृत संस्था द्वारा इनमें से 285 शहरों को ‘खुले में शौच मुक्त’ प्रमाणित किया जा चुका है। जल्द ही यह संस्था अन्य निकायों में भ्रमण कर उन्हें भी यह प्रमाण-पत्र दे देगी। यह प्रक्रिया पूर्ण होते ही मध्यप्रदेश अधिकारिक रूप से खुले में शौच मुक्त प्रदेश बन जाएगा। स्वच्छता से स्वास्थ्य और स्वास्थ्य से आर्थिक विकास, सब आपस में जुड़े हुए हैं। प्रदेश एक लम्बा रास्ता तय कर यहाँ तक पहुँचा हैं। प्रदेश में जिस प्रकार से अभी तक आम लोग इस आन्दोलन की बागडोर संभाल रहे थे, वैसे ही आगे भी प्रदेश के नागरिकों की ही यह ज़िम्मेदारी होगी कि निर्मित शौचालयों का समुचित उपयोग और रख-रखाव कर खुले में शौच की प्रथा को प्रदेश से हमेशा के लिए समाप्त करे।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
प्रदेश ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा में पहले से ही सजग हो कर कार्य कर रहा हैं। स्वच्छ भारत मिशन में प्रदेश के सभी 378 नगरीय निकाय को 26 क्लस्टर में बाँट कर जन-निजी भागीदारी व्यवस्था से एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है। इसमें 6 क्लस्टर आधारित परियोजनाएँ कचरे से बिजली बनाने तथा 20 परियोजनाएँ कचरे से खाद बनाने की हैं। जबलपुर क्लस्टर में 10 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। रूपये 1555 करोड़ की लागत की कचरे से बिजली बनाने की सभी 6 परियोजना के कार्यशील होने के बाद प्रदेश के 78 निकाय में प्रतिदिन पैदा हो रहे लगभग 3500 टन कचरे से 72 मेगावाट बिजली का उत्पादन होने लगेगा।
रूपये 1326 करोड़ की लागत से स्थापित होने वाली 20 कचरे से खाद बनाने वाली परियोजनाओं से प्रदेश के 300 निकायों में रोज़ के लगभग 3000 टन कूड़े को घर-घर से संग्रहीत और उपचारित कर लगभग 450 टन जैविक खाद भी बनायी जायेगी। कचरे के उचित प्रबंधन द्वारा जैविक खाद बनने और इसके कृषि कार्यों में उपयोग से प्रदेश के किसान की आमदनी में वृद्धि होने के साथ ही भूमि भी अधिक उर्वरा होगी और खेती को लाभ का धंधा बनाने के संकल्प को बल मिलेगा। प्रदेश के इन स्वच्छता प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर भी पर्याप्त पहचान और प्रशंसा मिल रही है। इसी वर्ष 20 -21 अप्रैल को सिविल सर्विस डे पर भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा लोक प्रशासन के क्षेत्र में किये गए प्रयासों को प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरुस्कार दिए गए। इसमें मध्यप्रदेश की क्लस्टर आधारित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना को तकनीकी नवाचारों की श्रेणी में प्रथम 10 प्रयास में स्थान मिला है।
कचरे से बिजली बनाने वाली 6 में से 5 परियोजनाओं में तथा कचरे से खाद बनाने की 20 में से 5 परियोजनाओं पर काम शुरू हो चुका है। दो अक्टूबर 2019 तक सभी परियोजनाएँ मूर्तरूप लेकर
अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ ही प्रदेश के शहरों को स्वच्छ और सुन्दर कर जनता के जीवन को और गुणवत्तापूर्ण करने में योगदान दे रही होंगी। भारत सरकार का राष्ट्र स्तरीय स्वच्छ सर्वेक्षण एक अच्छी पहल है। इसने न केवल राज्यों के मध्य स्वच्छता को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू हुई है, अपितु राज्यों को शहरीकरण की एक सकारात्मक पहल का रास्ता भी मिला है। मध्य प्रदेश ने इस स्पर्धा में पिछले 2 वर्ष में उल्लेखनीय प्रगति की है। पहले साल के 4 शहरों और 20वें पायेदान से शुरुआत के साथ प्रदेश इस साल देश में पहले और दूसरे स्थान पर पहुँचने में सफल रहा है। साथ ही प्रदेश के 22 शहर ने देश के पहले 100 सबसे साफ़ शहरों में अपनी जगह बनाई।
स्वच्छ सर्वेक्षण-2018
भारत सरकार द्वारा 31 जुलाई को स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 की घोषणा की गई है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2017 की प्रतिस्पर्धा देश के 434 शहर के बीच थी। सर्वेक्षण 2018 में देश के समस्त 4041 शहर के मध्य यह प्रतिस्पर्धा प्रस्तावित है, जिसमें 4000 अंकों के आधार पर शहरों का मूल्यांकन किया जायेगा। सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य वृहद् स्तर पर नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए स्वच्छता सेवाओं को बेहतर बनाना है।
कुल मिलाकर स्वच्छ भारत मिशन किसी एक व्यक्ति या संस्थान या किसी एक दिन का मुद्दा नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी और कर्त्तव्य है। इसके लिए सबको कदम से कदम मिलाकर खुले में शौच से मुक्ति के लक्ष्य को पाना है और उसे बनाये रखना है। सर्वव्यापी स्वच्छता प्राप्त करने के लिए सतत जागरूकता एवं व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है तभी स्वच्छ और निर्मल मध्यप्रदेश तथा देश की संकल्पना पूरी होगी। यही संकल्पना पूर्ति राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं वर्षगाँठ पर प्रदेश और देश की उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
क्या है ओ डी एफ
खुले में शौच की समस्या समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रभावित करती है। जहाँ एक तरफ यह जन स्वास्थ्य – विशेष रूप से बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के लिए बड़ा खतरा है, वहीँ दूसरी तरफ यह वृद्धों और निशक्तजनों के लिए असुविधा का कारण है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य, निजता, गरिमा और सुरक्षा पर पड़ता है। स्वास्थ्य, कुपोषण जैसी समस्याओं के बचाव और रोकथाम के लिए आवश्यक है कि वातावरण को खुले में शौच से पूर्णता मुक्त बनाया जाये तथा प्रत्येक स्तर पर इसकी संवहनीयता सुनिश्चित करने के प्रयास किये जाये। खुले में शौच से मुक्त का मतलब खुले में कहीं भी मानव मल का दिखाई न देना,सभी प्रकार के निजी, सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालयों से निकलने वाले मल का सुरक्षित निपटान हो जिससे कि वातावरण दूषित न हो। साथ ही निजी साफ-सफाई के लिए अपेक्षित व्यवहारों पर बल देना शामिल है।