पहला किडनी ट्रांसप्लांट करके देश में फादर ऑफ नेफ्रोलॉजी के नाम से पहचाने जाने वाले पद्मश्री प्रो. किरपाल सिंह चुघ का रविवार दोपहर 12 बजे पीजीआई में निधन हो गया। 84 साल के डॉ. चुघ पिछले ढाई साल से मल्टीपल माइलोमा (बोनमैरो कैंसर) से पीड़ित थे। पिछले कुछ दिनों से वह पीजीआई में एडमिट थे। रविवार दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ. चुघ के दो बेटे हैं। बड़े बेटे डॉ. सुमित चुघ यूएसए में कार्डियोलॉजिस्ट हैं। छोटे बेटे सुमंत भी यूएस में नेफ्रोलॉजिस्ट हैं। डॉ. चुघ की प|ी हरजीत कौर रिटायर्ड क्लासिकल वोकल प्रोफेसर हैं। सेक्टर-8 में रहने वाले डॉ. चुघ का जन्म अमृतसर के पट्टी में 12 दिसंबर 1932 काे हुआ था। वे 1960 में पट्टी से चंडीगढ़ गए थे।
डॉ. चुघ को मिले अवॉर्ड्स… पद्मश्री,बीसी रॉय अवॉर्ड, नेशनल किडनी फाउंडेशन अवॉर्ड, निहोन यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल गोल्ड मेडल, आईएमसीआर आउट स्टैंडिंग रिसर्च अवॉर्ड, मोटाशा मेमोरियल अवॉर्ड, एमडी आदित्य अवॉर्ड, इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजिस्ट अवॉर्ड, एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया अवॉर्ड, केबी कंवर मेमोरियल अवॉर्ड, धनवंतरी नेशनल अवॉर्ड, नेफ्रोलॉजी फाेरम अवॉर्ड।
रात करीब 8 बजे पीजीआई के डायरेक्टर डॉ. जगतराम उनके घर पहुंचे। डॉ. जगतराम ने बताया- फादर ऑफ नेफ्रोलॉजी डॉ. चुघ के निधन से सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया को क्षति हुई है। मैं रविवार सुबह उत्तराखंड में एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने गया था। दोपहर में पता चला कि डॉ. चुघ नहीं रहे, तो मैं उसी समय वहां से चंडीगढ़ के लिए निकल पड़ा। सीधे यहां पहुंचा हूं। चुघ साहब के साथ 25 साल का करीबी नाता रहा है। वे हंसमुख थे और मरीजों की सेवा में विश्वास करते थे।
पीजीआई के पास आज न्यूक्लियर मेडिसिन में मरीजों के हर अंग को बारीकी से जांचने वाली पेट स्कैनिंग जैसी सुविधा है। लेकिन डॉक्टरों ने वो दौर भी देखा है जब ऐसे टेस्ट के बगैर अपने क्लीनिकल सेंस से ही इलाज करना पड़ता था। 53 साल पहले जब पीजीआई बना तो ब्लड, यूरिया और क्रेटनाइन टेस्ट मैनुअल होते थे तब डॉ. चुघ अपने क्लिनिकल सेंस और दुनिया भर के रिसर्च लिट्रेचर के आधार पर ही मरीजों का इलाज करते थे।
डॉ. चुघ से जुड़ा बहुत कुछ पहली बार हुआ…
1.प्रो.केएस चुघ ने पीजीआई जॉइन किया तो यहां चुनौतियां कम नहीं थीं। एक्यूट किडनी प्रॉब्लम के पेशेंट आते रहते थे, लेकिन देश में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू नहीं हो पाया था। इंफेक्शन से खराब हुई किडनी का प्रो. चुघ ने पहली बार 1963 में डायलिसिस किया और मरीज को ठीक कर दिया।
2.पीजीआईके प्रोफेसर एमराइटिस प्रो. चुघ के नाम 1956 में देश की पहली किडनी बायप्सी करने का रिकॉर्ड है।
3.देशमें किडनी ट्रांसप्लांट के बाद सबसे ज्यादा 38 साल की उम्र तक जीने वाले आनंद प्रकाश की सफल सर्जरी भी प्रो. चुघ ने 1978 में की थी।
4.पीजीआईका पहला सफल किडनी ट्रांसप्लांट, 400 से ज्यादा रिसर्च पेपर।
5.ट्रॉपिकलकिडनी फेलियर के लिए अमेरिका ने गेस्ट लेक्चरर बनाया।
प्रोफेसर चुघ नेफ्रोलॉजी में सुपर स्पेशिएलिटी करना चाहते थे, लेकिन उस समय पंजाब यूनिवर्सिटी के डीन ने उन्हें एंडोक्राइनोलॉजी में एडमिशन लेने को कहा। प्रो. चुघ नहीं माने, वे नेफ्रोलॉजी में सुपर स्पेशिएलिटी की जिद पर अड़े रहे। 6 महीने बाद वे पीयू के डीन से मिले। डीन ने कहा- इस लड़के की जिद पूरी करो, नेफ्रोलॉजी की सुपर स्पेशिएलिटी में ही एडमिशन दो। तब देश में नेफ्रोलॉजी में सुपर स्पेशिएलिटी नहीं होती थी। प्रो. चुघ की जिद से देश में पहली बार राजेंद्र मेडिकल कॉलेज पटियाला में नेफ्रोलॉजी की सुपर स्पैशिएलिटी शुरू हो सकी।
हालही में उन्हें एक साथ दो इंटरनेशनल लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिले। कम्युनिटी अकर्ड किडनी फेलियर के कारणों का पता करके बिना ट्रांसप्लांट मरीजों को ठीक करने के लिए प्रो. चुघ को यह अवॉर्ड दिए गए। अमेरिका के सिएटल में हुई काॅन्फ्रेंस में प्रो. चुघ काे इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ हीमोडायलिसिस एंड ट्वारडोवस्की के प्रेसिडेंट प्रो. एंड्रयू डेवेनपोर्ट, सोसायटी के पूर्व प्रेसिडेंट प्रो. मधुकर मिश्रा ने ये लाइफटाइम अचीवमेंट अवाॅर्ड दिए थे। छोटेबेटे सुमंत ने बताया कि मेडिकल फील्ड में पिता और मेरी स्पेशियलिटी एक ही थी, इसलिए जब भी घर आते थे तो उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता था। पिता होने के साथ-साथ मेरे मेंटर भी थे। 55 साल तक रीजन ही नहीं पूरे देश की सेवा की है। उन्हें मैं एक महान टीचर मानता हूं। डॉ.सुमित चुघ ने बताया कि पिता का रिटायरमेंट के बाद भी पीजीआई से खासा लगाव रहा। उन्होंने 1 सितंबर तक अपने क्लीनिक में मरीजों को देखा था। ढाई साल से बीमार थे। उन्होंने सैकड़ों डॉक्टरों को पढ़ाया। जिन्हें पढ़ाया आज वे आगे पढ़ा रहे हैं।
ढाई साल से बोनमैरो कैंसर से जूझ रहे थे, रविवार दोपहर 12 बजे ली अंतिम सांस… सोमवार दोपहर 12 बजे सेक्टर-25 क्रीमेशन ग्राउंड में होगा अंतिम संस्कार