हमारी परंपरा में पुनर्जन्म की अवधारणा है। ऐसे में हम सिर्फ इसी जन्म में अपने कर्म के प्रति जिम्मेदार नहीं है बल्कि पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों के लिए भी हमारा उत्तरदायित्व है। हमारे अपने कर्म हमारे दु:खों का कारण बनते हैं। जो लोग अपने पूर्वजों को, पितरों को तर्पण, दान आदि से प्रसन्न करते हैं और अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, धन, संपदा, संतान व सौभाग्य आदि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
सूर्यादि पितृकारक ग्रहों का योग सूर्य-राहु, सूर्य-शनि, सूर्य-केतु हो तो वह पितृदोष कहलाता है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य नीच राशिगत, शत्रु क्षेत्रीय एवं राहु-केतु के साथ हो तो पितृदोष का कारण बनता है। मातृ-पितृ दोष हमारे जीवन में कई तरह की मुश्किलों का कारण बनता है।
1. मातृदोष से ग्रस्त जातक चांदी लेकर बहते पानी में बहाएं तो इस ऋण से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन माता-पिता के चरण स्पर्श करने से भी मातृदोष से मुक्ति मिलती है।
2. हर अमावस्या और मंगलवार के दिन सवेरे शुद्ध होकर लोटे या कटोरे में पानी, गंगाजल और काले तिल डालकर दक्षिणमुखी होकर पितरों को जल का तर्पण करें और जल देते समय 3 बार ‘ऊं सर्वपितृदेवाय नम:” बोलें और पितरों से सुख-शांति व काम रोजगार की प्रार्थना करें।
3. हर अमावस्या खास तौर पर सोमवती, अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या और शनैश्चरी अमावस्या को सवेरे खीर-पूड़ी, आलू की सब्जी, बेसन का लड्डू, केला व दक्षिणा और सफेद वस्त्र किसी ब्राह्मण को दें और आशीर्वाद लें। इससे हमारे पितृगण प्रसन्ना होते हैं और सारे दोषों से मुक्ति दिलाते हैं।
4. श्राद्ध पक्ष में हर दिन सवेरे पितरों को पानी, गंगाजल व काले तिल मिलाकर जल अर्पित करें।
6. सोमवार के दिन आक (आंकड़े) के 21 पुष्पों व कच्ची लस्सी, बेलपत्र के साथ शिव पूजन करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
7. पितृदोष होने पर किसी गरीब कन्या के विवाह में सहायता करने से दोष से राहत मिलती है।
8. रविवार की संक्रांति या रवि वासरी अमावस्या को ब्राह्मणों को भोजन, लाल वस्तुओं का दान, दक्षिणा एवं पितरों का तर्पण करने से पितृदोष की शांति होती है।
9. हर अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर लस्सी, गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्प इत्यादि चढ़ाएं और ‘ऊं पितृभ्य: नम:’ का जाप करें।
10. 3 बार और पितरों से सुख संपत्ति की प्रार्थना करें। ऐसा करने से पितृ दोष शांत होता है। इसके अतिरिक्त सर्प पूजा, ब्राह्मणों को गोदान, कुआं खुदवाना, पीपल व बरगद के वृक्ष लगवाना, विष्णु मंत्रों का जाप करने से, श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करने से, माता-पिता का आदर करने से पितरों (पूर्वजों) के नाम से अस्पताल में दान करने से, मंदिर बनवाने, विद्यालय व धर्मशाला बनवाने से भी पितृदोषों की शांति होती है। इस तरह के उपायों से आप मातृ और पितृ दोष से मुक्ति पा सकते हैं।