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इस वजह से मां दुर्गा के तीसरे रूप का नाम पड़ा ‘चंद्रघंटा’, करती हैं आसुरिक शक्तियों का विनाश….

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नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा का पूजा की जाती है।  मां चंद्रघंटा का रूप बहुत ही सौम्य है। मां को सुगंध प्रिय है। उनका वाहन सिंह है। उनके दस हाथ हैं। हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र हैं। वे आसुरी शक्तियों से रक्षा करती हैं। मां चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है और उनको सौभाग्य, शांति और वैभव की प्राप्ति होती है। क्या आपको ये पता है कि दुर्गा मां के तीसरे रूप का नाम चंद्रघंटा क्यों पड़ा।

इसलिए इनका इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा
ऐसा माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में अपितु परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। इन देवी मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है।

नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है और इससे न केवल इस लोक में बल्कि परलोक में भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है।

इनकी वंदना करने से मन को परम सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देती है जिससे मन को बहुत शांति मिलती है। चूंकि इनका वर्ण स्वर्ण जैसा चमकीला है और ये हमेशा आसुरिक शक्तियों के विनाश के लिये तत्पर रहती हैं, इसलिए इनकी आराधना करने वाले को भी अपूर्व शक्ति का अनुभव होता है। मां चंद्रघंटा की पूजा में दूध का इस्तेमाल कल्याणकारी माना गया है। मां चंद्रघंटा की पूजा करते समय यह मंत्र जरूर पढें।

पिंडजप्रवरारूढ़ा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

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