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ऐसे पड़ा माता कूष्माण्डा का नाम, माता मंत्र से सबसे अधिक प्रसन्न होती है….

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कूष्माण्डा देवी की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। मारकंडेय पुराण में ऐसी कथा है कि जब सृष्टि पर चरों तरफ घनघोर अंधेरा था तब कूष्माण्डा देवी ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसलिए इन्हें आदि स्वरूपा कहा जाता है।

माता कूष्माण्डा का वाहन शेर है और इनकी आठ भुजाएं हैं। माता कूष्मांडा अपने सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा धारण की हैं। माता के आठवें हाथ में अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां देने वाली जप माला है।

संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलि के रूप में माता कूष्माण्डा को कुम्हड़ की बलि अति प्रिय है। इस कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और धन प्राप्त होता है। माता कूष्माण्डा को प्रसन्न करने के लिए भक्त को इस श्लोक का नवरात्रि के चौथे दिन करना चाहिए.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इस दिन यदि संभव ही तो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करें। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर माना गया है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। ऐसा करने से माता प्रसन्न होंगी और आपको सभी मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

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