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सिंधिया के संपत्ति विवाद में कोर्ट ने समझौते के लिए दिया एक और अवसर….

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M.P. ग्वालियर:अपर सत्र न्यायालय ने सिंधिया परिवार को संपत्ति विवाद में समझौते के लिए एक और मौका दिया है। कोर्ट ने कहा है कि सभी पक्षकार आपस में बातचीत करें और समझौते की गुंजाइश दिख रही है तो उससे कोर्ट को अवगत कराएं। इसके अलावा कोर्ट कमिश्नर के लिए वादी व प्रतिवादी से नाम मांगा है। इस मामले की सुनवाई 6 अक्टूबर को होगी।

कोर्ट ने कहा है कि मामले से जुड़े सभी पक्षकार सिंधिया परिवार से हैं। जिसमें वादी ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद, प्रतिवादी यशोधरा राजे सिंधिया मंत्री आैर वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री हैं। ये सभी प्रथम दृष्टव्या शिक्षित और प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधि हैं, इसलिए आपसी सुलह समझौते से 26 वर्ष पुराने विवाद को सुलझाकर जन सामान्य के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।
सिंधिया परिवार की संपत्ति के विवाद को लेकर दायर मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट में अधिवक्ता ने तर्क रखा कि मामले में पूर्व में नियुक्त कमीशन का निधन हो चुका है। इसलिए नए कमीशन की नियुक्ति की जाए। वहीं प्रकरण की अगली सुनवाई दीपावली त्यौहार को देखते हुए 20 दिसंबर के बाद की दी जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उक्त पुराने मामलों को हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों के तहत निर्धारित अवधि में निराकृत किया जाना है। साथ ही कोर्ट ने संपत्ति विवाद में समझौता करने के लिए पक्षकारों को एक अवसर दिया। संपत्ति को लेकर दोनों पक्षों के मध्य पूरे देश में कई केस लंबित हैं। इसमें मूलत: उत्तराधिकार को लेकर ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विवाद है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 1990 में कोर्ट में उक्त मामला दायर करते हुए कहा कि सिंधिया राजवंश के युवराज होने के कारण सिंधिया राजवंश की संपत्ति पर उनका हक है। वहीं इसके खिलाफ उनकी बुआ यशोधरा राजे,वसुंधरा राजे आदि की ओर से कहा गया कि उत्तराधिकारी कानून के तहत उक्त संपत्ति में उनका भी हक है। इसलिए उनके हक की संपत्ति उन्हें दिलाई जाए।
कोर्ट दोनों पक्षों से यह अपेक्षा करती है धारा 89 सीपीसी की पवित्र मंशा को ध्यान में रखते हुए यदि विवाद का अंतिम निराकरण सुनिश्चित करना चाहते हैं तो एक साथ सुलह समझौते के संबंध में 6 अक्टूबर तक प्रस्ताव पेश कर सकते हैं। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने कोर्ट में कहा कि सुलह समझौते के परिप्रेक्ष्य में धारा 89 की कॉपी न्यायालय से नि:शुल्क दिलाई जाए। ताकि वे अपने पक्षकार से संपर्क कर सार्थकता सुनिश्चित कर सकें। कोर्ट ने आदेश की प्रतिलिपि नि:शुल्क देने के आदेश दिए।

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