प्रदेश हाईकोर्ट ने वर्ष 2014 में पशु बलि पर प्रतिबंध लगा दिया था जिसके बाद से दशहरा में पशु बलि नहीं दी गई है। फैसले के खिलाफ भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। प्रशासन ने भी पशु बलि के स्थल पर अस्थाई शैड बनाए हैं। यहां पशु बलि दी जाएगी। यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि आदेशों की अवहेलना न हो। कुल्लू दशहरे में इस बार फिर से पशु बलि दी जा सकेगी। इस मामले में देव समाज को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हालांकि सार्वजनिक तौर पर पशु बलि देने पर कोर्ट ने प्रतिबंध बरकरार रखा है लेकिन परंपरा निभाने के लिए पर्दे में बलि प्रथा को छूट दे दी है।
दशहरा उत्सव पूरी परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि न्यायालय से उन्हें पशु बलि प्रथा को लेकर राहत मिली है और नियमों के अनुसार देव कार्य को निभाया जाएगा। महेश्वर सिंह, भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार कुल्लू में 1660 ईस्वी में पहला दशहरा उत्सव मनाया गया था। उस समय कुल्लू में राजा जगत सिंह का राज था। राजा को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने पर इस मेले के आयोजन का एलान किया किया। राजा जगत सिंह की रियासत के साथ लगती अन्य रियासतों के देवी देवताओं को भी निमंत्रण दिया गया था। उत्सव में 365 देवी देवताओं ने शिरकत की थी। उसके बाद यह उत्सव हर साल मनाया जाने लगा। 21वीं सदी में भी दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है।