नवरात्रि में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरु हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। कन्याओं को धरती पर देवी का रुप माना गया है। अष्टमी के दिन छोटी कन्यायों को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं। नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। वैसे तो कई लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
कन्या पूजन की पौराणिक कथा-
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी ना सिर्फ लाज बचाई बल्कि पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दिया। आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से 2 कि. मी. की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान होने के कारण बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलवाया। माता वैष्णो कन्या के रुप में उन्हीं के बीच आकर बैठ गई। पूजन के बाद सभी कन्याएं लौट गयीं लेकिन माता नहीं गयीं। बालरुप में आई मां दुर्गा पंडित श्रीधर से बोली- सबको भंडारे का आमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश भिजवा दिया। भंडारे में तमाम लोग आए। कई कन्याएं भी आई। इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई। तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं।
दुर्गा अष्टमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन 12 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन करवाना और उनका पूजन करना शुभ माना जाता है। पृथ्वी पर छोटी कन्याएं मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस दिन 5,7, 9 और 11 के लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनके आने पर उनकी सेवा में उनके पांव धोए जाते हैं। फिर उनका पूजन किया जाता है। इसके पश्चात उनके लिए बनाया हुआ भोजन जैसे हलवा, पूड़ी, मिठाई, खीर आदि और उपहार दिए जाते हैं। इसके बाद सभी देवियों का आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा किया जाता है।