तों में प्रमुख व्रत नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या तथा एकादशी के हैं. उसमें भी सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है.
चन्द्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति खराब और अच्छी होती है. ऐसी दशा में एकादशी व्रत से चन्द्रमा के हर ख़राब प्रभाव को रोका जा सकता है.
यहां तक कि ग्रहों के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है. क्योंकि एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर, दोनों पर पड़ता है.इसके अलावा एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है
पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं. इस एकादशी का महत्त्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था. इस एकादशी पर भगवान ‘पद्मनाभ’ की पूजा की जाती है. पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम ‘पापांकुशा एकादशी’ हुआ है. इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है. इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है.
पापांकुशा एकादशी का महत्व
वैसे तो हर एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण है. परन्तु पापांकुशा एकादशी स्वयं के साथ साथ दूसरों को भी लाभ पंहुचाती है.
इस एकादशी पर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरुप की उपासना होती है
– पापांकुशा एकादशी के व्रत से मन शुद्ध होता है
– व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है
– साथ ही माता, पिता और मित्र की पीढ़ियों को भी मुक्ति मिलती है
पापांकुशा एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा करें, पूजन विधि
– मस्तक पर सफ़ेद चन्दन या गोपी चन्दन लगाकर पूजन करें
– इनको पंचामृत , पुष्प और ऋतु फल अर्पित करें
– चाहें तो एक वेला उपवास रखकर , एक वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें
– शाम को आहार ग्रहण करने के पहले उपासना और आरती जरूर करें
– आज के दिन ऋतुफल और अन्न का दान करना भी विशेष शुभ होता है
पापांकुशा एकादशी पर इन बातों का ध्यान रखें
– अगर उपवास रखें तो बहुत उत्तम होगा. नहीं तो एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करें
– एकादशी के दिन चावल और भारी खाद्य का सेवन न करें
– रात्रि के समय पूजा उपासना का विशेष महत्व होता है
– क्रोध न करें, कम बोलें और आचरण पर नियंत्रण रखें