अठारह करडू की सौह ढालपुर में एक सप्ताह के लिए स्वर्गलोक से समस्त देवी-देवताओं ने आकर डेरा डाल दिया है। वाद्य यंत्रों की मधुर स्वर लहरियों से सारा वातावरण देवमय हो उठा है। 200 से अधिक देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में दर्शनों को रोजाना हजारों की भीड़ उमड़ेगी। वर्ष भर बाद एक ही स्थान पर जिला के तमाम देवताओं की उपस्थिति और उनके यहां दर्शन को लेकर आए श्रद्धालु हर कोई इस पल को किसी भी सूरत में गवाना नहीं चाहते।
कुल्लू की संस्कृति ने जहां विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर अभिभूत कर रखा है वहीं यहां की बेजोड़ देव संस्कृति अपने आप में अद्वितीय है। कुल्लू की संस्कृति प्रमुखत: देवताओं की संस्कृति पर आधारित है। यहां हर मेले, त्योहारों की पृष्ठभूमि में देव संस्कृति का पहलू झलकता है। दशहरा भी इसी देव संस्कृति की झलक पेशकर विश्व मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान बना चुका है। हालांकि इसका व्यापारिक एवं सांस्कृतिक पक्ष तब तक अधूरा है जब तक देव समागम का पहलू इसमें समाहित न हो। दशहरे की शोभा यहां पर पधारने वाले देवी-देवताओं और उनके साथ आए हुए देवलुओं और बंजतरियों के साथ होती है।
दशहरे में अस्थायी शिविरों के पास प्रतिदिन देवताओं का आपसी मिलन हजारों आंखों को प्रत्यक्ष रूप में रोमांचित कर रहा है। देश के कोने-कोने से आए हुए श्रद्धालु सबसे पहले अधिष्ठाता रघुनाथ के दर्शन कर रहे हैं। ढालपुर में शुरू हुए दशहरा उत्सव के लिए जिला भी के सैकड़ों देवी देवता अपने अपने हारियानों सहित पूरे लाव लश्कर के साथ ढालपुर मैदान पहुंच गए हैं। इसके चलते ढालपुर मैदान देवलोक में बदल गया है, जबकि देवालय सूने पड़ गए हैं। ढालपुर में सात दिनों तक अपने अस्थाई शिविरों में अपने हारियानों के साथ रहेंगे और उसके बाद यहां से अपने अपने देवालयों की ओर रुख करेंगे।
इस बार दशहरा समिति ने जिला भर के 292 से अधिक देवी-देवताओं को उत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए आमंत्रित किया है। जिला के दूर दराज क्षेत्रों निरमंड, आनी, बंजार और सैंज के देवी देवता इस महाकुंभ के लिए पांच दिन पहले से ही रवाना हो गए थे और एक दिन पूर्व ही ढालपुर मैदान में पहुंचे। मुख्यालय के साथ लगते क्षेत्रों के देवी देवता अपने अपने देवालयों शनिवार सुबह ही निकला और भगवान रघुनाथ के मंदिर में हाजिरी भरी।
जिला भर से 200 से अधिक देवताओं के साथ आए देवलू सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर तपस्वी जीवन जीने के लिए ढालपुर में बैठे हैं। डेढ़-दो सप्ताह तक देवलू अपने-अपने देवताओं के साथ तपस्वी जैसा जीवन व्यतीत कर देव परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं। इस बार भी हजारों देवलू तपस्वी बनकर अपने देवताओं की सेवा चाकरी में जुट गए हैं। दशहरा उत्सव में शरीक होने के लिए जिले के अधिकतर देवी-देवता कुल्लू के ऐतिहासिक मैदान में पहुंच गए हैं।