आज देश भर में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जा रहा है। इमाम हुसैन अल्लाह के रसूल (मैसेंजर) पैगंबर मोहम्मद के नाती थे। इस्लाम धर्म में चार पवित्र महीने होते हैं, उनमें से एक पवित्र महीना मुहर्रम का होता है। मुहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना कहलाता है। जिसे उर्दू में हिजरी कहा जाता है।
मुहर्रम के दौरान शिया मुस्लिम काले कपड़े पहनतें हैं और इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं। मुहर्रम के 10वें दिन सभी मुसलमान एकत्र होकर शोक मनाते हैं और जिन लोगों की मौत उस दिन हुई थी उन्हें शान्ति मिले इसकी दुआ करते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के 10 दिन तक रोजा रखते हैं।
शहीद हुए थे इमाम हुसैन
गौरतलब है की इराक में सन् 680 में यजीद नामक एक जालिम बादशाह हुआ करता था, जो इंसानियत का दुश्मन था। जिसकी वजह से हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था। इसी युद्ध में इमाम हुसैन को कर्बला नामक जगह पर उनके परिवार और उनके 72 साथियों को मर दिया था। तभी से मुहर्रम के दिन हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद किया जाता है।
ताजिया निकालने की प्रथा
मुहर्रम के 10 दिन तक बांस, लकड़ी का ढांचा बनाया जाता है, जिसे ‘ताजिया’ कहा जाता है। इसका वर्णन इस्लाम धर्म की धार्मिक पुस्तक हदीस में देखने को मिलता है। ग्यारहवें दिन इन्हें बाहर निकाला जाता है। लोग इन्हें सड़कों पर लेकर पूरे शहर में घूमाते हैं, इसके बाद इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है।