भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। वे 27 अगस्त, 2017 को पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे. एस. खेहर के सेवानिवृत्ति के बाद भारत के 45वें मुख्य न्यायाधीश बने हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें देश के 45वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ दिलाई। दीपक मिश्रा का कार्यकाल 28 अगस्त, 2017 से 2 अक्टूबर, 2018 तक रहेगा। पूर्व में वे पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं, जिन्हें 24 दिसम्बर, 2009 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल देवानंद कुंवर ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी थी। दीपक मिश्रा भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले ओडिशा से तीसरे न्यायाधीश होंगे। वे अपने कई फैसलों के चलते चर्चा में रहे, लेकिन सबसे अधिक चर्चा उनकी उस फैसले से हुई, जिसमें उन्होंने सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया था।
परिचय
दीपक मिश्रा का जन्म 3 अक्टूबर, 1953 को हुआ था। 14 फ़रवरी, 1977 में उन्होंने उड़ीसा उच्च न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी। 1996 में उन्हें उड़ीसा उच्च न्यायालय का अडिशनल जज बनाया गया और बाद में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में उनका स्थानांतरण किया गया। उन्हें 2009 के दिसंबर में पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था। इसके बाद फिर 24 मई, 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय में बतौर मुख्य न्यायाधीश उनका स्थानांतरण किया गया। 10 अक्टूबर, 2011 को उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया।
अंग्रेज़ी साहित्य प्रेमी
उड़ीसा उच्च न्यायालय बार असोसिएशन के प्रेजिडेंट व सीनियर ऐडवोकेट अशोक परीजा के अनुसार- “जस्टिस दीपक मिश्रा को उन्होंने उड़ीसा उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस के दौरान नजदीक से देखा और उन्हें उनके साथ प्रैक्टिस का मौका भी मिला।” उनके बारे में परीजा जी का कहना था कि- “जब उन्हें जज बनाया गया था, तब उड़ीसा उच्च न्यायालय के व्यस्ततम वकीलों में उनका नाम शुमार था। सिविल, क्रिमिनल, सर्विस और संवैधानिक आदि मामलों पर उनकी पकड़ है। उन्हें अंग्रेज़ी में कविता पढ़ने और लिखने का शौक रहा है।
बड़े निर्णय: न्यायाधीश दीपक मिश्रा कई आदेशों को लेकर चर्चा में रहे। इनमें से कुछ फ़ैसले उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए सुनाए तो कुछ उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रहते हुए सुनाए।
सिनेमा घरों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता
वर्ष 2016 में 30 नवंबर को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आदेश दिया था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए। इस आदेश के बाद हालांकि इस पर कई लोगों के विचार उनके फैसले से अलग थे, लेकिन अंतत: इसे लोगों ने दोनों बाहें खोलकर स्वीकार किया। आज की तारीख में सिनेमा घरों में जब राष्ट्रगान बजता है, तब सिनेमा घर में मौजूद तमाम लोग खड़े होते हैं।[2]
पुलिस एफ़.आई.आर. की कॉपी 24 घंटों के भीतर वेबसाइट पर डालें
7 सितंबर, 2016 को न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश सी. नगाप्पन की बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया था कि पुलिस एफ़.आई.आर. की कॉपी 24 घंटों के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दें। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि दीपक मिश्रा जब दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, तब 6 दिसंबर, 2010 को उन्होंने दिल्ली पुलिस को भी ऐसे ही आदेश दिए थे।
आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता बरकरार
मई, 2016 में उच्चतम न्यायालय की बेंच ने आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखने का आदेश सुनाया था। इस बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा भी थे। यह निर्णय सुब्रमण्यन स्वामी, राहुल गाँधी, अरविंद केजरीवाल और अन्य बनाम यूनियन के केस में सुनाया गया था। बेंच का कहना था कि- “अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है।”
याकूब मेमन की फ़ाँसी
याकूब मेमन ने फ़ाँसी से ठीक पहले अपनी सज़ा पर रोक लगाने की याचिका डाली थी। साल 1993 के मुंबई धमाकों में याकूब मेमन को दोषी ठहराया गया था। जुलाई, 2013 की उस रात को अदालत खुली थी। सुबह 5 बजे दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाया- “फ़ाँसी के आदेश पर रोक लगाना न्याय की खिल्ली उड़ाना होगा। याचिका रद्द की जाती है।”
प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर रोक
उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार द्वारा लागू की गई प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी। इसे लेकर मामला जब उच्चतम न्यायालय आया तो उच्चतम न्यायालय ने इस रोक को कायम रखा। अप्रैल, 2012 में उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया था। दो न्यायाधीशों की इस बेंच में दीपक मिश्रा भी शामिल थे।