हिन्दू मान्यता के अनुसार करवाचौथ, काफी महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इसे हिन्दू धर्म में हर पति-पत्नी के द्वारा मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है, कि इस पर्व को हिन्दू धर्म में क्यों मानाया जाता है? तो चलिए जानते हैं, कि हिन्दू धर्म में करवाचौथ कब से और क्यों मानाया जाता है? दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जो शायद आप नहीं जानते हैं तो चलिए देखते है, कि वह कथा कौन सी है?
यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा।
वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा। वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अतः पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएँ पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।