बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी,और जीएसटी लागू होने के बाद से उपजी समस्याओं के बाद से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चारो ओर से आलोचनाओं का सामना कर रही है. लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने जितने भी वादे किए उनमें से कोई भी पूरा नहीं किया जा सका है. हालांकि इस बीच नोटबंदी का फैसला लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ चुनाव जीती है. लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद अर्थव्यवस्था को झटका लगा है और विकास दर घट गई है. जीएसटी को लेकर भारी कन्फ्यून की वजह से छोटे और मध्यम कारोबारियों को काफी नुकसान हो रहा है. जो अभी तक बीजेपी के समर्थक रहे हैं. यूपी चुनाव के बाद अजेय मान लिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में जीएसटी के बाद से अच्छी खासी गिरावट देखी जा रही है. अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके गढ़ गुजरात में ही कांग्रेस बीजेपी को हराने का ख्वाब देखने लगी है. इधर राहुल गांधी का बदले अंदाज में सवाल पूछना भी बीजेपी नेताओं को असहज कर रहा है. हालांकि गुजरात में अभी कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं और उसका वहां जीत जाना बड़ी बात होगी.
बीजेपी और आरएसएस के अंदर भी लोकसभा चुनाव को लेकर चिंता है. आरएसएस भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से ज्यादा खुश नहीं है और बीजेपी के पास भी अब सिर्फ 2018 का ही साल ही बचा है. तो सवाल इस बात का है कि क्या मोदी सरकार पिछले 2 महीने में अचनाक बदल गए समीकरणों का साध पाएगी. इसको लेकर सरकार और पार्टी के भीतर शुरू हो चुका है. माना जा रहा है कि सरकार के पास जनता को एक बार फिर से लुभाने और खुद को मध्यम और गरीबों का हितैषी दिखाने के लिए पेट्रोल और डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला कर सकती है.
इस बात का संकेत पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंन्द्र प्रधान और जीएसटी के बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने संकेत दिए हैं. सुशील मोदी जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के तकनीकी मुद्दों को देख रहे मंत्रियों के समूह (जीओएम) के प्रमुख भी हैं. इसके अलावा मोदी जीएसटी परिषद के सदस्य भी हैं. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों का मानना है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाना चाहिए. वहीं कुछ अन्य राज्य ऐसा नहीं चाहते.
कुछ दिन पहले ही उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘मेरा मानना है कि आगामी दिनों में यह मुद्दा हल हो जाएगा. मुझे लगता है कि जल्द पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी का हिस्सा होंगे.’ एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी के तहत होने चाहिए. हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह उनकी निजी राय है. दुनिया भर में पेट्रोलियम उत्पाद जीएसटी के दायरे में ही आते हैं. इससे पहले सितंबर में ही पेट्रोलियम मंत्री अशोक प्रधान ने भी कहा था कि उम्मीद है कि पेट्रोल और डीजल ही जल्द ही जीएसटी के दायरे में आ जाएंगे जिससे ग्राहकों को काफी फायदा हो जाएगा.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां डीलर 30.45 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से पेट्रोल खरीदते हैं. इसमें कई तरह के टैक्स के लगने के बाद यह 68 से 70 प्रतिलीटर के आसपास पहुंच जाता है. अगर इसको जीएसटी के 12, 18 या 28 फीसदी वाले किसी भी स्लैब में रखा जाता है और बाकी टैक्स हटा दिए जाते हैं तो पेट्रोल की कीमत 50 रुपए से ज्यादा नहीं होगी. ऐसा ही कुछ डीजल की कीमतों के साथ भी होगा. अगर मोदी सरकार यह फैसला कर सकती है तो निश्चित तौर पर इससे ग्राहकों को काफी फायदा होगा और इसका असर ट्रांसपोर्टेशन लागत पर भी पड़ेगा और कई चीजों के दाम भी कम हो जाएंगे.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तीन साल पहले के मुकाबले आधी रह गई हैं, बावजूद इसके देश में पेट्रोल, डीजल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है. मुंबई में तो सितंबर में पेट्रोल के दाम बुधवार को करीब 80 रुपये प्रति लीटर पहुंच गए. मोदी सरकार के आने के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 53 फीसदी तक कम हो गए हैं, लेकिन पेट्रोल डीजल के दाम घटने की बजाय बेतहाशा बढ़ते चले गए हैं. इसके पीछे असली वजह यह है कि तीन सालों के दौरान सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कई गुना बढ़ा दी है. हालांकि केंद्र सरकार की अपील के बाद कई बीजेपी शासित राज्यों ने वैट घटा दिया है. जिससे इनके दामों में 2 से 5 रुपए की मामूली कमी दर्ज की गई है.