Home फिल्म जगत Movie Review: कल्कि कोचलीन की ‘रिबन’….

Movie Review: कल्कि कोचलीन की ‘रिबन’….

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आंकड़ों की मानें तो गर्भावस्था अवकाश लेने के बाद सिर्फ 34 प्रतिशत महिलाएं ही वापस नौकरी जॉइन कर पाती हैं। जाहिर है, बाकी की 66 प्रतिशत महिलाएं नौकरी पर वापस नहीं आ पातीं, या आ भी गईं तो किसी न किसी बहाने से निकाल दी जाती हैं। कॉरपोरेट सेक्टर में यह समस्या सबसे ज्यादा है। शहरों में हर दिन बस/मेट्रो पकड़ कर ऑफिस जाने वाली महिलाओं की जिंदगी से जुड़ी इसी भयावह सच्चाई का सामना कराती है नवोदित निर्देशक राखी शांडिल्य की फिल्म रिबन। रूपहले परदे पर ड्रामा की जगह जिंदगी परोसने वाली कहानियां दिखाया जाना एक ऐसा बदलाव है जिसे दर्शक खुले दिल से स्वीकार रहे हैं। रिबन भी ऐसी ही फिल्म है जो शहर में रहने वाले युवा नौकरीपेशा दंपतियों से सीधे जुड़ती है।

कहानी…

एक कंपनी में स्ट्रैटेजिक मैनेजर के रूप में कार्यरत शहाना (काल्कि कोचलिन) अपने काम में माहिर और बॉस की चहेती हैं। एक दिन उन्हें डॉक्टर से अपनी प्रेग्नेंसी का पता लगता है, जो दरअसल अनचाही है। शहाना परेशान हो जाती हैं और तरह-तरह की आशंकाओं से भर उठती हैं। पति करन (सुमित व्यास) उन्हें शांत करते हैं और दोनों तय करते हैं कि शहाना इस बच्चे को जन्म देगी। शहाना इस बारे में अपने बॉस को बताती है तो उनका रवैया जरा अटपटा रहता है, जो शहाना को खटकता भी है। खैर, वह मैटरनिटी लीव पर चली जाती है। शहाना बेटी को जन्म देती है। और असली कहानी तो अब शुरू होती है, यानी डिलिवरी के ठीक बाद। जाहिर है, शहाना और सुमित की जिंदगी पहले जैसी नहीं रहती। शहाना को स्ट्रैटेजिक मैनेजर की पोस्ट से हटाकर एनालिस्ट बना दिया जाता है, यानी उनका डिमोशन कर दिया जाता है। कंपनी की स्टार परफॉर्मर अचानक जिस तरह लापरवाह घोषित कर दी जाती है, उसे देख कर हैरत नहीं होती बल्कि यार-दोस्तों से सुने हुए कॉरपोरेट नौकरियों के कई किस्से याद आते हैं।

मॉम-डैड बनने के बाद अपनी-अपनी नौकरियों को बचाए रखने की कवायद के दौरान सुमित-काल्कि किस तरह उत्साहित होते हैं, लड़खड़ाते हैं, गिरते हैं, संभलते हैं- यह देखना काफी दिलचस्प है। फिल्म में बच्चों से जुड़े ‘गुड टच, बैच’ वाले मुद्दे और नैनी व क्रेश की समस्याओं को भी संवेदनशीलता के साथ उठाया गया है।

नारीवाद से जुड़े मुद्दों पर काल्कि हमेशा से ही बात करती रही हैं। उनका आत्मविश्वास से भरा हुआ एक खास अंदाज है जो इस फिल्म के लिए उन्हें सबसे बेहतरीन चयन बनाता है। ‘परमानेंट रूममेट्स’ वेब सिरीज अगर आपने देखी है, तो आप सुमित व्यास को पहले से जानते होंगे और अगर नहीं देखा, तो यह फिल्म देखने के बाद आपका उसे देखना का मन जरूर करेगा। अपनी अदाकारी से करण के किरदार को हद विश्वसनीय बना देने वाले सुमित को देखकर पता चलता है कि इंटरनेट पर कितनी प्रतिभाएं सिर्फ एक क्लिक का इंतजार कर रही हैं।

अहम सामयिक मुद्दे उठाने वाली इस फिल्म की अपनी खामियां भी हैं। इसका इंटरवेल से पहला हिस्सा हद से ज्यादा धीमा है। फिल्म का संपादन कुछ और कसा हुआ हो सकता था। शहाना की प्रेग्नेंसी से पहले फिल्म तकरीबन 20 मिनट की है, जिसे कुछ छोटा किया जा सकता था। फिल्म का पार्श्व संगीत भी काफी अच्छा है।

यह फिल्म सबको देखनी चाहिए, खास तौर पर छोटे बच्चों के अभिभावकों को। मसाला मनोरंजन की तलाश है, तो इस फिल्म को देखने से परहेज करें क्योंकि यह मुख्यधारा से अलग है। बॉलीवुडिया तत्वों का इसमें सख्त अभाव है, जिसकी जरूरत भी नहीं थी।

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