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स्कंद षष्ठी : राजनीति और तकनीकी शिक्षा में सफलता पाने के लिए करते हैं ये व्रत, पढ़ें कथा और महत्व…

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मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। यह इस वर्ष 24 नवंबर को है। इसी दिन मंगल ग्रह के स्वामी और देवताओं के सेनापति कार्तिकेय का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कार्तिकेय को अपना स्वरूप ही माना है- ‘सेनानीनामहं स्कन्द:।’

कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं। ये दक्षिण दिशा में निवास करते हैं। इन्हें ही षडानन, षड्मुख, गुह, आग्नेय, स्वामिकुमार, मुरुगन, सुब्रह्ममणयम, षरजन्मा और सेनानी भी कहा जाता है। ये अपने माता-पिता मां पार्वती व भगवान शिव और भाई गणोश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़ शिव जी के दूसरे ज्योतिर्लिग मल्लिकार्जुन आ गए थे। माता पार्वती हर पूर्णिमा और पिता शिव हर प्रतिपदा को दूसरे ज्योतिर्लिग मल्लिकाजरुन के रूप में इनसे मिलने जाते हैं। इसी तिथि को कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। इन्हें शिव, अग्नि और गंगा का पुत्र माना जाता है। कालिदास के ‘कुमारसंभव’ महाकाव्य में इनका ही वर्णन है। ये हमेशा युवावस्था में ही रहते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि जिनका मंगल जन्मकुंडली में अपनी ही राशियों- मेष, वृश्चिक या अपनी उच्चराशि मंगल में रहता है, वे युवावस्था में दिखाई पड़ते हैं। इसके विपरीत नीच राशि कर्क का मंगल गलत कार्यो में लिप्त कराकर शारीरिक चोट व पुलिस द्वारा सजा दिलवाता है।

ऐसा माना जाता है कि जिस नेता का राजयोग भंग हो गया हो, वह इनका व्रत करे तो उसे पुन: राजनीति में सफलता प्राप्त हो सकती है। सांसद, विधायक, उच्च सरकारी पद, तकनीकी शिक्षा, खिलाड़ी, सैन्यकर्मी, पुलिसकर्मी आदि बनने की इच्छा रखने वाले लोगों को यह व्रत जरूर करना चाहिए। इससे विजय श्री, बली शरीर और सुंदरता मिलती है। व्रत करने वाले को दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके कार्तिकेय भगवान को घी, दही, पुष्पों और जल के द्वारा अघ्र्य प्रदान करना चाहिए। चम्पा के फूल इन्हें बेहद पसंद हैं। ये रात्रि में जमीन पर ही शयन करते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार इस दिन दक्षिण में भगवान कार्तिकेय के मंदिरों के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन तेल का सेवन नहीं करना चाहिए। इनका मंत्र इस प्रकार है-‘देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥’ देवसेना और वल्यिम्मा से कार्तिकेय जी के विवाह का वर्णन मिलता है। मोर इनका वाहन है। वैदिक ज्योतिष में केवल मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न वाले अगर इनकी पूजा करें तो उन्हें निश्चित ही लाभ होगा। स्कन्दपुराण में ऋषि विश्वामित्र रचित इनके 108 नाम भी मिलते हैं। दक्षिण भारत में स्थित कपालेश्वर, चिदम्बरम, मदुरई और चेन्नई में इनके मंदिर हैं।

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