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हाईकोर्ट ने कहा आरोप सिद्ध हुए तो छात्रों के भविष्य के सामूहिक संहार का केस हो सकता है….

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जबलपुर: पीएमटी 2012 में की गई गड़बड़ी के मामले में सीबीआई द्वारा आरोपी बनाए गए चिरायु मेडिकल कॉलेज के डायरेक्टर डॉ. अजय गोयनका, एलएन मेडिकल कॉलेज के एडमिशन इंचार्ज डॉ. दिव्य किशोर सत्पथी, एलएनसीटी ग्रुप के चेयरमैन जयनारायण चौकसे, पीपुल्स यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. विजय कुमार पंड्या, डॉ. विजय के रमनानी, तत्कालीन डीएमई डॉ. एससी तिवारी और तत्कालीन ज्वाइंट डीएमई एनएम श्रीवास्तव की अग्रिम जमानत हाईकोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दी। इसी के साथ आरोपियों की गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया।

चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय शुक्ला की खंडपीठ ने अपने फैसले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मेडिकल कॉलेज के संचालकों के कृत्यों के चलते अनेक योग्य छात्र मेडिकल पाठ्यक्रमों में एडमिशन नहीं ले पाए और निराशा के शिकार हुए।

– कोर्ट ने कहा कि एडमिशन देने की पूरी प्रक्रिया नियमों के विपरीत थी, जिसके शिकार योग्य युवा छात्र बने। हाईकोर्ट ने अपने 25 पृष्ठीय फैसले में कहा कि आवेदकों पर भले ही किसी की जान लेने का आरोप नहीं है, लेकिन आरोप साबित हुए तो यह युवा छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करने का घृणित अपराध होगा। यह कई छात्रों के कॅरियर की सामूहिक हत्या का केस हो सकता है।

कोर्ट ने कहा यह अनेक युवाओं के भविष्य के संहार का मामला होगा। कोर्ट ने साफ कहा कि आरोपियों के खिलाफ बहुत ही संगीन आरोप हैं और इनकी गंभीरता को देखते हुए इन्हें गिरफ्तारी पूर्व जमानत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने आरोपियों की अधिक उम्र और गंभीर रोगों के एवज में जमानत मांगने की दलीलों को भी नकार दिया।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों की दलील आकर्षक थी कि घोटाले की जांच के दौरान उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया और यदि अब गिरफ्तार किया जाता हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा।

कोर्ट ने आगे कहा- इस घोटाले में 500 से अधिक आरोपी हैं। जांच बहुत लंबी चली। जांच के दौरान गिरफ्तारी नहीं होने का अर्थ यह नहीं है कि अब आरोपी अग्रिम जमानत के अधिकारी हो जाएंगे। वो भी तब जब आरोप इतने संगीन हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि तीनों आरोपियों को ट्रायल कोर्ट में हाजिर होने का पर्याप्त मौका दिया गया था। विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को 23 नवंबर को हाजिर होने के निर्देश दिए थे। जब कोई हाजिर नहीं हुआ तो अदालत ने मजबूर होकर गिरफ्तारी वारंट जारी किया। आरोपियों ने सरेंडर करने बजाए गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल कर दीं।

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