राज्य निर्वाचन आयोग ने सोमवार को अधिसूचना जारी करते हुए 20 नगरीय निकायों के चुनाव और 3 खाली कुर्सी के चुनाव का एलान कर दिया है। इन चुनावों के लिए 17 जनवरी को मतदान होगा और 20 जनवरी को मतगणना होगी। मप्र विधानसभा चुनाव के करीब 10 माह पहले होने जा रहे चुनाव प्रदेश का मिजाज बताने का काम करेंगे। वैसे तो फिलहाल पूरे प्रदेश की निगाहें मुंगावली और कोलारस विधानसभा के उपचुनाव पर हैं क्योंकि यहां चुनाव तारीख घोषित होने के पहले ही दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ने पूरी ताकत लगा दी है। इस बीच एक और चुनाव ने प्रदेश की जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचने का काम किया है।
17 जनवरी को होने जा रहे 23 नगरीय निकाय के चुनावों ने दोनों दलों के लिए एक मौका दिया है कि चुनावी साल में जनता का क्या मिजाज है, वो जान सकें। दोनों दल नगरीय निकाय चुनाव में अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ये चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग कर रही है क्योंकि उसका कहना है कि पूरे प्रदेश में माहौल कांग्रेस के पक्ष में बन चुका है, लेकिन प्रशासनिक मशीनरी का दुरूपयोग कर ईवीएम की मदद से सत्ताधारी दल बीजेपी चुनाव जीत सकती है।
वहीं सत्ताधारी दल बीजेपी का कहना है कि नगरों के विकास में जो बीजेपी सरकार ने काम किए हैं और प्रदेश के नगरीय निकायों का कायाकल्प किया है। उसका फायदा उसे चुनाव में मिलेगा। लेकिन दोनों दल ये मानकर चल रहे हैं कि निकाय चुनाव, उपचुनाव और आम चुनाव के पहले प्रदेश की जनता के मन और मिजाज का आंकलन होगा।नगरीय निकाय चुनाव को लेकर मप्र कांग्रेस के विचार विभाग के प्रमुख भूपेन्द्र गुप्ता कहते हैं कि नगरीय निकाय चुनाव उपचुनाव के पहले घोषित होने का अर्थ है कि भाजपा फिलहाल उपचुनावों के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उन्हें हार का डर सता रहा है। निकाय चुनाव के बहाने सरकार उपचुनाव टालना चाहती है। कांग्रेस ने मांग की है कि चुनाव ईवीएम की जगह मतपत्र से होना चाहिए क्योंकि एक विश्वसनीय जनमत जनता के सामने आए और प्रदेश की जनता की वास्तविक नब्ज को परिलक्षित करे।
वहीं भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर का कहना है कि भाजपा को चुनाव कब घोषित होता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। भाजपा का कार्यकर्ता हमेशा चुनावी मूड में रहता है। भाजपा की सरकार ने निरंतर सभी समाजों के विकास का काम किया है और विकास हमारी पूंजी है। विकास के दम पर हम चुनाव लड़ने वाले हैं। निकायों की बात करें तो कांग्रेस के राज में जहां नगरीय निकायों के लिए 35-40 लाख रुपए मिलते थे, अब 35-40 करोड़ रुपए विकास के लिए मिलते हैं। यही हमारी ताकत है कि हमने सभी नगरीय निकायों का सर्वांगीण विकास किया है।