केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से संरक्षण देने के लिए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 लोकसभा में पेश किया और इसे बिना संशोधन के पास भी करवा लिया. अब इस बिल पर राज्यसभा में बहस होनी है. लोकसभा में इस बिल के विभिन्न पहलुओं पर बहस हुई. लोकसभा में सरकार और विपक्षी नेताओं के बीच हुए 8 सवालों-जवाबों के जरिए जानते हैं कि यह बिल किनके लिए राहत लेकर आ रहा है और किन्हें इस बिल से मुश्किल हो सकती है. एक समय में तीन तलाक देने को सुप्रीम कोर्ट अवैध ठहरा चुका है. यानी जब तीन तलाक अमान्य है तो उसके लिए किस बात की सजा?
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसके जवाब में कहा कि साल 2017 में 300 ट्रिपल तलाक हुए, जिसमें 100 तो सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक को गैर कानूनी ठहराने के बाद हुए. गुरुवार सुबह ही रामपुर में एक महिला को देर से उठने पर तलाक दे दिया गया. तीन तलाक अब भी जारी है और इसमें सजा का प्रावधान मुस्लिम महिलाओं की हिफाजत के लिए है. तलाक के बाद पति जेल चला गया तो पत्नी को पैसा कौन देगा? तीन तलाक के केस में मजिस्ट्रेट ही दोषी की सजा की अवधि या पति की आय के आधार पर पत्नी का मुआवजा तय करेगा. यानी पति के जेल जाने या जमानत पर रिहा होने पर भी उसे पत्नी को भत्ता देना होगा.
दंगा करने और तीन तलाक दोनों मामलों में तीन साल की सजा का प्रावधान है, क्या दोनों मामले समान रूप से गंभीर हैं? तीन तलाक के मामले में अधिकतम सजा तीन साल की है. तीन तलाक देना गैरजमानती अपराध है. इस आरोप में थाने से जमानत नहीं मिल सकती है, लेकिन आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल सकती है. मजिस्ट्रेट के पास CRPC की धारा 125 के तहत आरोपी को जमानत देने का अधिकार है. इस कानून के कारण लोगों के परिवार टूटेंगे? देश में दहेज और महिलाओं के खिलाफ प्रताड़ना करने पर भी सजा का प्रावधान है. लेकिन ऐसा कोई तथ्य नहीं है कि इसकी वजह से परिवार टूटा या तीन तलाक बिल की वजह से ऐसा होगा. क्या यह बिल पर्सनल लॉ या शरीयत में दखल दे रहा है?
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस बिल के जरिए केवल तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को गैरकानूनी बनाया गया है. इसका असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा था. जहां महिलाएं फुटपाथ पर आने के लिए विवश हो रही थीं, वहीं बच्चों की परवरिश के लिए मां की प्रासंगिकता खत्म हो रही थी. इसलिए यह दखलअंदाजी के बजाए हिफाजत का बिल है. क्या यह बिल इस्लाम के लिए खतरा है? विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने कहा कि तीन तलाक बिल से इस्लाम खतरे में नहीं हैं, बल्कि मुसलमान मर्दों की जबरदस्ती खतरे में हैं. उन्होंने कहा कि शरीया का मतलब कानून नहीं होता, बल्कि इसका मतलब रास्ता दिखाना होता है. तीन तलाक पारिवारिक विवाद है और इसे आपराधिक श्रेणी में क्यों लाया जाना चाहिए?
कानून मंत्री ने बताया कि दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में ट्रिपल तलाक को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाया गया है. इसमें बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया और पाकिस्तान शामिल है, जहां ट्रिपल तलाक को रोकने के लिए कानून बना है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर इस्लामिक देशों में तलाक देने के लिए पहले आर्बिट्रेशन काउंसिल को तलाक देने की वजह बतानी होती है. इसके उलट मुस्लिम समाज में सुधार के लिहाज से भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य पीछे रह गया है. सरकार ने इस बिल को लाने से पहले मुस्लिमों मुस्लिम संगठनों या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से मशविरा नहीं किया. बिना मुस्लिमों से विचार विमर्श के सरकार कैसे उनके लिए कानून बना सकती है? विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने कहा कि आखिर मु्स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की विश्वसनीयता क्या है? इसको किसने बनाया है? क्या इस बोर्ड के सदस्य चुन के आते हैं? अगर वो चुनकर नहीं आते हैं तो वे कैसे अपने समाज के प्रतिनिधि हुए और उनको मामले में शामिल क्यों किया जाए