शुंग-सातवाहन काल में भी वैदिक और पौराणिक परम्पराओं के साथ-साथ शैव परम्परा खूब फली-फूली। नागवंशी राजा अनन्य शिवभक्त थे। उनके काल में शिव और नाग की पूजा का प्रचलन बहुत बढ़ा। उन्होंने भगवान शिव के अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों के भग्नावशेष आज भी पवाया, मथुरा और अन्य स्थानों पर पाए जाते हैं। नागवंश के सिक्कों पर भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा मिलती है, जिसमें नंदी को खड़ा हुआ दिखलाया गया है। इन सिक्कों पर शिवजी के प्रतीक त्रिशूल, मोर तथा चन्द्रमा भी उत्कीर्ण हैं। उज्जैन के पास प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल पिंगलेश्वर में शुंग-कुषाण काल का पंचमुखी शिवलिंग प्राप्त हुआ है। उज्जैन के प्राचीन सिक्कों पर शिव की दण्ड और कमण्डल हाथ में लिए प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। कुछ सिक्कों पर शिव की धर्मपत्नी देवी पार्वती को भी दर्शाया गया है।गुप्त काल में हुआ सुंदर शिव प्रतिमाओं का निर्माण
मध्यप्रदेश के उदयगिरि, भूमरा, नचना, खो, उचेहरा तथा नागौद के शिव मंदिरों का निर्माण गुप्त काल में हुआ था। गुप्त काल को भारतीय कला और वास्तु-कला का स्वर्ण काल कहा जाता है। इस दौरान शिव की अत्यधिक सुंदर और कलात्मक प्रतिमाओं का निर्माण किया गया। गुप्त काल में शिव के विभिन्न नए-नए स्वरूपों की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। विंध्य क्षेत्र में मुखलिंग प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। इनमें से कुछ प्रतिमाएं चतुमुर्खी हैं। जोसो, नचना, बैसनगर, खो तथा अन्य स्थानों से भी सदाशिव रूप में भगवान शिव की प्रतिमाएं मिली हैं। गुप्त काल में शिव-पार्वती, अर्धनारीश्वर और नटराज स्वरूपों का प्रचलन शुरू हुआ। धीरे-धीरे शिव के पुत्रों गणेश और कार्तिकेय तथा उनके गणों की प्रतिमाएं भी प्रचलन में आ गईं।
सतना, पन्ना, मंदसौर, एमपी में हर ओर शिव ही शिव…
सतना जिले के भूमरा में शिव मंदिर का निर्माण किया गया था, जिसमें भगवान शिव के साथ उनके गणों की प्रतिमाएं भी हैं। पन्ना जिले के नचना में शिव और पार्वती के पृथक मंदिर भी पाए गए हैं। यहां प्रतिष्ठित चतुमुर्खी शिव प्रतिमा गुप्त काल की श्रेष्ठतम कृतियों में शामिल है। पार्वती मंदिर की भव्यता और वास्तु-कला भी देखते ही बनती है। मंदसौर में भगवान शिव की अष्टमुखी प्रतिमा मूर्तिकला की श्रेष्ठता का अद्भुत उदाहरण है।
मध्यकाल में भी रही शिव पूजा की परंपरा
मध्य काल में भी शिव की पूजा का प्रचलन खूब रहा। विंध्य और मालवा ही नहीं, बल्कि महाकौशल क्षेत्र में भी भगवान शिव की पूजा बहुत लोकप्रिय रही। यहां 6वीं और 13वीं शताब्दी के बीच शिवभक्त राजवंशों द्वारा बड़ी संख्या में शिव मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इनमें गुप्त, प्रतिहार, चंदेल, कलचुरी, कच्छपघात और परमार राजवंश शामिल हैं। परमार वंश के यशस्वी राजा भोज द्वारा भोजपुर में प्रसिद्ध शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया, जहां 18 फीट ऊंचा शिवलिंग प्रतिष्ठित मंदिर हैं।
प्रसिद्ध है चौंसठ योगिनी मंदिर
खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए कंदरिया और विश्वनाथ मंदिर वास्तु-कला के अद्भुत नमूने हैं। कलचुरियों ने त्रिपुरी, बिल्हरी, नोहटा, गुरगी, अमरकंटक, जांजगीर, रतनपुर आदि में बहुत भव्य शिव मंदिरों का निर्माण करवाया। उन्होंने शैव परम्परा की विभिन्न शाखाओं को संरक्षण दिया। कलचुरि नरेश युवराज देव ने शिव का एक बहुत भव्य मंदिर बनवाया, जो अब विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में चौंसठ योगिनी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। प्रतिहारों ने ग्वालियर में एक बहुत भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो अब तेली का मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदसौर में मिलीं 10वी-12वीं शताब्दी की शिव प्रतिमाएं