अब वेद की ये ऋचाएं भी सुप्रीम कोर्ट में घसीट दी गई हैं. केंद्रीय विद्यालयों में हर रोज सुबह होने वाली हिंदी-संस्कृत की प्रार्थनाओं पर विवाद खड़ा हो गया है. पूरा विवाद केंद्रीय विद्यालयों में इन ऋचाओं को दैनिक प्रार्थना में शामिल करने को लेकर है. इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर पूछा है कि रोजाना सुबह स्कूल में होने वाली हिंदी और संस्कृत की प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है? इसकी जगह कोई सर्वमान्य प्रार्थना क्यों नहीं कराई जा सकती?
इन तमाम सवालों के जवाब कोर्ट ने 4 हफ्ते में तलब किये हैं. कोर्ट इस बात पर फैसला करेगा कि क्या इससे एक धर्म को बढ़ावा मिल रहा और संविधान का उल्लंघन हो रहा है? सुप्रीम कोर्ट में विनायक शाह ने याचिका लगाई है, जिनके बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़े हैं. याचिका के मुताबिक देश भर में पिछले 50 सालों से 1125 केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना में ये ऋचाएं शामिल हैं. इस प्रार्थना में और भी ऋचाएं शामिल हैं, जिनमें एकता और संगठित होने का संदेश है. जैसे, ओम् सहनाववतु, सहनौ भुनक्तु: सहवीर्यं करवावहै. तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै! उपर्युक्त मंत्र भोजन से संबंधित है, जिसका भोजन ग्रहण करने से पहले पाठ किया जाता है.केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दा है. इस याचिका एडवोकेट विनायक शाह ने दाखिल किया है, जिनके बच्चों ने केंद्रीय विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है.
बता दें कि केवल केंद्रीय विद्यालयों में ही नहीं अपितु कई सारे राज्यों के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में भी कक्षाओं से पहले हर सुबह प्रार्थना का आयोजन किया जाता है. कोर्ट इस याचिका पर अगली सुनवाई में केंद्र के जवाब पर विचार करेगा. याचिका में कहा गया है कि सभी धर्म और संप्रदाय के बच्चों को ये प्रार्थनाएं गानी होती हैं और सुबह की सभा में प्रार्थना में हिस्सा लेना अनिवार्य होता है. इसके साथ ही प्रार्थना में कई सारे संस्कृत के शब्द भी शामिल होते हैं.इन प्रार्थनाओं में शिक्षकों की सामूहिक जिम्मेदारी होती है कि वे हर बच्चे की उपस्थिति सुनिश्चित करे और इस बात का ध्यान रखे कि हर छात्र करबद्ध हो, ध्यान में हो और बिना रूके प्रार्थना पूरा करे. ऐसा न कर पाने वाले छात्र को दंडित किया जाता है विनायक शाह ने कहा कि ये स्कूली प्रार्थनाएं संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन हैं. संविधान हर नागरिक को इस बात की इजाजत देता है कि वे अपने धर्म का पालन करे. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य प्रायोजित कोई भी स्कूल एक धर्म को प्रोत्साहित नहीं कर सकता.