Home पर्यटन पद्मनाभपुरम महल का इतिहास….

पद्मनाभपुरम महल का इतिहास….

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पद्मनाभपुरम, त्रवनकोर के हिन्दू राज्य की राजधानी का शहर था। ये नागरकोइल से लगभग 20 किमी दुरी पर है और तिरुवनंतपुरम से 50 किमी की दुरी पर है। वल्ली नामक नदी यहाँ से होकर गुजरती है।

इस महल का निर्माण 1601 में इरवि वर्मा कुलासेखारा पेरूमल ने करवाया। इसने 1592 से 1609 तक वेनाद पर राज्य किया था। आधुनिक त्रवनकोर के संस्थापक अनिझाम थिरुमल मर्थंदा वर्मा (1706-1758) जिन्होंने 1729 से 1758 तक त्रवनकोर पर राज्य किया, इन्होने ही 1750 के करीब महल का पुनर्निर्माण किया।

मर्थंदा वर्मा राजा ने अपने परिवार की देवता पद्मनाभ (भगवान विष्णु का अवतार) को राज्य समर्पित किया था और राज्य को पद्मनाभ के दास के रूप में चलाया था। इसलिए इसका नाम पद्मनाभपुरम पड़ा। 1795 में त्रवनकोर की राजधानी यहाँ से थिरुवनंतपुरम को स्थानांतरित कर दी गयी।फिर भी महल परिसर पारंपरिक केरल वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरनो में से एक है। और विशाल परिसर के कुछ हिस्सों को पारंपरिक केरल की शैली के वास्तुकला की पहचान है। ये महल तमिलनाडु राज्य से घेरा हुआ है फिर भी ये केरल का हिस्सा है और इसकी जमीन केरल सरकार की है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग ने बनाए रखा है।

दक्षिणी महल – Southern Palace

दक्षिणी महल “थाई कोत्तराम” के इतना ही 400 साल पुराना है। अभी ये एक विरासत संग्रहालय के रूप में सभी एंटीक घरेलु लेख करिओस को दर्शाता है। इन सब का संग्रह उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक लोकाचार के बारे में जानकारी देता है।

क्वीन मदर पैलेस – Queen Mother Palace

पारंपरिक केरल शैली में बनाया हुआ मदर पैलेस इस महल परिसर में सबसे पुराना है जिसे माना जाता है की 16 वि शताब्दी के मध्य में बनाया गया। यहाँ के अंदरूनी आंगन में “नालुकेट्टू” नामक पारंपरिक केरल शैली में एक आंगन है। अन्दर के आंगन में चारो तरफ़ से उतरते हुए छत है। चार कोनो के चार चार स्तंभ छत को आधार देते है।

मदर पैलेस के दक्षिण पश्चिम के कोने में एक छोटा सा कमरा है, इसे “एकांत मंडपम” कहते है। इस एकांत मंडप के चारो ओर सुन्दर और जटिल लकड़ी की नक्काशी है।

विशेष रूप से जैतून की लकड़ी का स्तंभ जिसके ऊपर बहुत ही सुन्दर और विस्तृत पुष्प डिजाईन है।

कौंसिल चैम्बर – Council Chamber

पुरे महल के परिसर का सबसे सुन्दर हिस्सा राजा का कौंसिल चैम्बर है। इसकी अभ्रक की खिडकिया धुप और धुल को दूर रखती है और कौंसिल चैम्बर का अंदरूनी हिस्सा शीतल और अँधेरे में रहता है। लैटिस का नाजुक और सुन्दर काम पुरे कौंसिल चैम्बर में दिखाई देता है।

फर्श को भी सुन्दरता से बनाया जाता है। फर्श अँधेरा होती है और ये अलग अलग वस्तुवो से बनी हो ती है जिसमे जले नारियल के टुकड़े, सफ़ेद अंडे और कई सारी चीजे होती है। इसकी विशेष बात ये है की एक तरह के फर्श की अन्य कोई नक़ल बनाई नहीं जाती।

प्रदर्शन हॉल – Exhibition Hall

ये एक तुलनात्मक नजर से देखे तो नयी इमारत है जिसे महाराजा स्वाथि थिरूनल के कहने पर बनाया गया जिन्होंने 1829 से 1846 तक त्रवनकोर में राज्य किया। वो कला के एक महान पारखी थे विशेषरूप से संगीत और नृत्य के। वो ख़ुद संगीत बनाते थे और इन्होने अपने पीछे शास्त्रीय कार्नाटिक संगीत की समृद्ध विरासत छोड़ी थी।

नाटकशाला को ग्रेनाइट के स्तंभ थे और चमचमाती काली फर्श थी। वहा पर एक लकड़ी का बाड़ा था जहापर शाही घर की महिलाये बैठा करती थी और प्रदर्शन देखा करती थी।
चार मंजिली इमारत महल परिसर के मध्य में थी। जमीन के ताल में शाही खजाना रहता था।

पहली मंजिल पर राजा का शयनकक्ष होता था। अलंकृत चारपाई 64 तरह के वनौषधि के लकड़ी से बनी होती थी और ये सब डच व्यापारियों से भेट के रूप में मिलता था।

यहाँ के कमरे और महल परिसर के अन्य भाग में ज्यादातर अन्तर्निहित रिक्त स्थान थे जहा पर तलवार और खंजर जैसे हतियार रखे जाते थे। दुसरे मंजिल पर राजा की आराम करने का और अध्ययन करने का कमरा रहता था।

इनकी दीवारों पर 18 वे शताब्दी के चित्र रहते थे जो पुरानो के कुछ दृश्य होते थे और उस समय के त्रवनकोर के सामाजिक जीवन के कुछ दृश भी रहते थे। सबसे उपरी मंजिल पद्मनाभ स्वामी के लिए रहती थी। ये इमारत मार्थंद वर्मा के समय बनाई गयी। वो पद्मनाभ दास नाम से जाने जाते थे और त्रवनकोर का राज्य श्री पद्मनाभ स्वामी के दास के रूप में चलाते थे।

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