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निकाय चुनावों के नतीजों दोनों दलों को 9-9 स्थानों पर जीत जरूर मिली….

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ये नतीजे कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन जरूर हैं क्योंकि एंटी इंकम्बेंसी जैसे माहौल के बावजूद, गुटबाजी घटी नहीं, अलबत्ता बिल्ली के भाग से छीका जरूर टूट गया। इस नाखुशी या भाजपा के गिरते ग्राफ को कांग्रेस, साल के आखीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में कितना भुना पाएगी यह तो वही जाने, लेकिन इन चुनावों ने ईवीएम की साख पर सवाल नहीं उठने दिए, जो चुनाव आयोग के लिए सुकूनों से भरी सौगात होगी।सबसे मजेदार वोटिंग का प्रतिशत रहा, जिसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों को 43-43 फीसदी मत मिले।
प्राप्त मतों का हिसाब और भी मजेदार है जिसमें 131470 भाजपा को तो 131389 कांग्रेस को मिले, यानी कांग्रेस केवल 81 मतों से पीछे। नतीजों में कांग्रेस को 2 का फायदा तो भाजपा को 3 का नुकसान हुआ।धार की मनावर नगर पालिका 45 वर्षों तथा धार नगर पालिका 23 वर्षों के बाद कांग्रेस जीत सकी, वहीं दिग्गजों की अग्निपरीक्षा भी हुई, जिसमें कई मुंह की खा गए। मुख्यमंत्री का रोड शो भी कुछ खास नहीं कर सका क्योंकि विधायक बेल सिंह भूरिया के सरदारपुर, रंजना बघेल के मनावर, कालू सिंह ठाकुर के धरमपुरी, कुंवर हजारी लाल दांगी के खिचलीपुर में मिली हार धार की पहचान विक्रम वर्मा और विधायक नीना वर्मा के प्रत्याशी का हारना भाजपा के घटते प्रभाव का संकेत है। पहले दोनों ही स्थानों पर भाजपा काबिज थी, जबकि भिंड की अकोड़ा नगर परिषद में बसपा की संगीता कुर्सी बचाने में कामियाब रहीं।
2012 के इन 19 निकाय चुनावों में जहां भाजपा के पास 12 तो कांग्रेस के पास 7 थीं जो अब बराबर यानी 9-9 हो गईं हैं। अभी अगले दो विधानसभा उपचुनाव सेमीफाइनल जैसे होंगे। कोलारस और मुंगावली में मतदान 24 फरवरी और मतगणना 28 को होगी। इनमें उत्तरप्रदेश से आई इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों तथा हैदराबाद से आए वीवीपैट का इस्तेमाल होगा।दोनों सीटें कांग्रेस विधायक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और राम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई हैं। जाहिर है कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को जोर होगा, लेकिन महीने भर से माथापच्ची के बाद भी अभी प्रत्याशियों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। मध्यप्रदेश के ये चुनाव हैरान-परेशान करने वाले तो नहीं हैं, लेकिन किसी को बागियों की कीमत तो कहीं गुटबाजी का अहसास जरूर कराते हैं।
कांग्रेस इन नतीजों से कितना सीख ले पाएगी या भाजपा फिर से अंर्तमंथन करेगी, निश्चित रूप से दोनों का अंदरूनी मामला है।फिलहाल तो निगाहें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर है, जिसे पहले से पता था कि आदिवासी और दलित क्षेत्रों में उसका जनाधार घट रहा है। शायद इसीलिए समरसता का कार्यक्रम भी चल रहा है और 23 जनवरी को पातालकोट महोत्सव मनाया जाएगा, जिसमें सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी आएंगे जो अति पिछड़े आदिवासियों और दलितों के बीच होंगे। हां, इस नतीजे का 2019 के आम चुनाव में भी असर दिखेगा। संभलने के लिए दोनों दलों को दलदल से निकलना होगा।

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