कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू अब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के एकदम आमने-सामने हो गए हैं। सुक्खू ने पूर्व सीएम पर जुबानी पलटवार करते हुए कहा कि वीरभद्र सिंह आदरणीय हैं, पर वे झूठ बोलते हैं। पूर्व सीएम ने हमेशा सत्ता में रहकर ही राजनीति की है और वे पावर ड्रिवन पॉलीटिशियन हैं।
युवा शक्ति को आगे लाए और अनुभव को तरजीह दी। इस कारण ही वीरभद्र सिंह उनका विरोध कर रहे हैं। बीते 35-40 साल से वह विरोध की ही राजनीति करते आ रहे हैं, चाहे वह विरोध ठाकुर रामलाल का हो, पंडित सुखराम का, विद्या स्टोक्स का, आनंद शर्मा, कौल सिंह ठाकुर, नारायण चंद पराशर का या फिर उनका ही हो।वीरभद्र सिंह छह बार सीएम रहे, लेकिन सत्ता में रहते हुए एक बार भी प्रदेश में कांग्रेस सरकार को रिपीट नहीं कर पाए। चुनावों में हार-जीत लोकतंत्र का हिस्सा है, यह सच्चाई है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र के हाथ में कमान दी थी, सीएम का चेहरा भी घोषित कर दिया था। फिर कांग्रेस दोबारा सरकार क्यों नहीं बना पाई।
यह भी प्रदेश का इतिहास बन गया है कि जब-जब वीरभद्र सिंह सीएम रहे और उनके नेतृत्व में दोबारा चुनाव हुआ। कांग्रेस को हार का ही मुंह देखना पड़ा। चूंकि बीते लोकसभा चुनाव में चारों उम्मीदवार उनकी मर्जी के थे, फिर भी सभी सीटें हारीं। सुजानपुर और भोरंज विधानसभा उपचुनाव में उनकी पसंद के उम्मीदवारों को हार मिली। यहां तक कि शिमला नगर निगम चुनाव में शिमला ग्रामीण के तीनों वार्ड में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। सुक्खू ने कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में 56 टिकट उनकी मर्जी से बांटी गईं, जबकि जीत मात्र 15 पर मिली। संगठन के कोटे में तो सिर्फ 12 टिकट ही मिले और उनमें से छह उम्मीदवार जीतकर विधायक बने।
इन सीटों पर कांग्रेस 30 साल से हार रही थी। सुक्खू ने कहा कि आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस चारों सीटों पर न केवल भाजपा को कड़ी टक्कर देगी, बल्कि जीत भी दर्ज करेगी। इसके लिए वीरभद्र सिंह को भी बयानबाजी से बचकर संगठन के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरना होगा। यह कहां का न्याय है, कांग्रेस के कार्यक्रमों में आप कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की आलोचना करते हैं, जबकि भाजपा के सीएम की तारीफ? हर चुनाव सीएम रहते आपकी अध्यक्षता में हुए, गवर्नेंस चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा है, सरकार के काम पर वोट पड़ता है, फिर संगठन को दोष क्यों?
किसी एक व्यक्ति पर हार का ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है। सरकार तो आपके नेतृत्व में पांच साल चली। क्या गुड़िया प्रकरण और होशियार सिंह हत्याकांड ने सरकार की साख पर बट्टा नहीं लगाया। क्या इसका नुकसान कांग्रेस को चुनाव में नहीं हुआ? राहुल गांधी की मंडी रैली में आया राम, गया राम कहकर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम की बेइज्जती की गई, जिससे वह और उनके मंत्री सपुत्र कांग्रेस छोड़कर गए? पूर्व मंत्री कौल सिंह को भी उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया, क्या इससे मंडी की सभी दस सीटें नहीं हारीं? आप कांग्रेस सरकार की छवि जनता के दिल में जनहितैषी बनाने में कामयाब क्यों नहीं हुए? भाजपा आपके पॉवर में और पार्टी अध्यक्ष रहते हिमाचल में सत्तासीन कैसे हुई?