बालक शिवराज जब मजदूरों की भीड़ के साथ गांव में गुजरते थे। तब गांव की हर गली में मजदूरों का शोषण बंद करो.., ढाई पाई नहीं-पांच पाई दो… के नारे से गांव की हर गली गूंज उठती थी। हड़ताल कराकर जब 9 साल के नेता जी घर पर पहुंचे तो चाचा ने उनकी जोरदार आवभगत की और फिर शिवराज को घर के वो पूरे काम करने पडे़, जो उनके घर मजदूर करते थे। इसके बावजूद कभी शिवराज ने हार नहीं मानी।
शिवराज सिंह ने 1976-1977 मेंं आपात काल का विरोध किया और उसी दौरान भोपाल जेल में रहे। वहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। 1977-78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री
बने। 1980 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश महासचिव और 1982-83 में परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य रहे। इसके बाद 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा मप्र के संयुक्त सचिव बने और 1985 से 1988 तक महासचिव फिर 1988 से 1991 तक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
शिवराज सिहं चौहान का राजनीतिक सफल एक निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता की तरह है। सन 1990 में शिवराज सिंह को भाजपा ने बुधनी से चुनाव मैदान में उतारा। अपने पहले ही चुनाव में सीएम शिवराज सिंह ने मतदाताओं को प्रभावित किया। प्रचार के दौरान जहां आज खाने पीने के सामान के अलावा वाहनों की फौज रहती है। वहीं शिवराज सिंह साधारण तरीके से प्रचार करते थे। शिवराज गांवों में वोट मांगने के साथ-साथ रोटी और प्याज मांग लेते थे और उसी खाना को खाकर दिन रात मेहनत करते थे। यहीं उन्होंने एक नोट और एक वोट का प्रयोग किया और ये तरीका इतना कारगर रहा कि जनता से मिले एक-एक नोट से पूरा चुनाव खर्च हो गया।
संगठन शिवराज सिंह की प्रतिभा से वाकिफ हो चुका था। 1991 में लोकसभा चुनाव आए, शिवराज सिंह को विदिशा संसदीय सीट से चुनाव लड़ाया गया, शिवराज सिंह पहली बार सांसद चुने गए और यहीं से उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश का मौका मिला। शिवराज सिंह 1991-1992 मे अखिल भारतीय केसरिया वाहिनी के संयोजक तथा 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने। सन 1992 से 1994 तक भाजपा के प्रदेश महासचिव नियुक्त हुए। सन 1992 से 1996 तक संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक ‘श्रम और कल्याण समिति तथा 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे।
11 वीं लोक सभा में 1996 में शिवराज सिंह विदिशा संसदीय क्षेत्र से फिर सांसद बने। 1998 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से तीसरी बार सांसद चुने गए। वह 1998-1999 में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे। 1999 में विदिशा से ही चौथी बार सांसद निर्वाचित हुए। वे 1999-2000 में कृषि समिति के सदस्य तथा वर्ष 1999-2001 में सार्वजनिक उपक्रम समिति के सदस्य भी रहे।
1991 से लेकर 1999 तक शिवराज सिंह विदिशा से चार बार सांसद बन चुके थे। पार्टी को उनकी प्रतिभा पर भरोसा हो गया था। आकर्षित करने वाली भाषण शैली और लोगों को अपने साथ जोड़ने की कला के चलते पार्टी ने उन्हें 2000 से 2003 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा। इसी समय वे सदन समिति (लोक सभा) के अध्यक्ष तथा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रहे। शिवराज सिंह 2000 से 2004 तक संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे।
शिवराज सिंह पॉचवी बार विदिशा से चौदहवीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वह वर्ष 2004 में कृषि समिति, लाभ के पदों के विषय में गठित संयुक्त समिति के सदस्य, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा संसदीय बोर्ड के सचिव, केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव तथा नैतिकता विषय पर गठित समिति के सदस्य और लोक सभा की आवास समिति के अध्यक्ष रहे।
1993 से लेकर 2003 तक मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सत्ता रहने के बाद दिसम्बर 2003 में सत्ता परिवर्तन हुआ और उमाभारती मप्र की मुख्यमंत्री बनी। लेकिन हुगली मामले के कारण उमाभारती को इस्तीफा देना पड़ा और इसके बाद मध्यप्रदेश की सियासत में घमासान शुरू हो गया। उमाभारती अपनी वापसी के लिए प्रयासरत थी, तो संगठन उन्हें मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहता था। बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसी बीच वर्ष 2005 में शिवराज सिंह को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला और शिवराज सिंह चौहान को 29 नवंबर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।फिर शिवराजसिंह ने पीछे मुडकर नहीं देखा और अब तक मप्र के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। ताजा राजनीतिक घटनाक्रम से उन पर सवाल खडे़ हो रहे हैं, लेकिन पार्टी के एक निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर शिवराज सिंह आज भी किसी भी जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार रहते हैं।