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सुप्रीम कोर्ट ने दी पैसिव यूथेनेशिया की सशर्त इजाजत

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए लिविंग विल (इच्छा मृत्यु) को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक विधायिका की तरफ से इसपर कानून नहीं लाया जाता है, तब तक कोर्ट की गाइडलाइन ही मान्य होंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लेकिन सशर्त लिविंग विल से पहले मेडिकल बोर्ड और घरवालों की मंजूरी जरूरी है. ये सारी प्रक्रिया जिला मजिस्ट्रेट की देखरेख में होनी चाहिए. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति काफी बीमार है और वो बीमारी लाइलाज है, तो उसे ससम्मान मृत्यु का अधिकार है. यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि आखिर उसे कब लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाए. मेडिकल बोर्ड के आदेश के बाद ही उसे हटाया जाएगा. कोर्ट के अनुसार, ‘लिविंग विल’ के लिए व्यक्ति के परिवार या फिर करीबी व्यक्ति हाईकोर्ट में अपील कर सकता है. जिसपर हाईकोर्ट फैसला लेगा.

कोर्ट के आदेश के मुताबिक, हाईकोर्ट की निगरानी में ही मेडिकल बोर्ड तैयार किया जाएगा और उस आधार पर पूरी प्रक्रिया की जाएगी. आपको बता दें कि इससे पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया था कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए. इसके लिए इस प्रकार की प्रक्रिया को तैयार किया जाना चाहिए जिससे गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु हो सके.

केंद्र सरकार इस मुद्दे पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि इच्छा मृत्यु पर अभी सरकार सारे पहलुओं पर गौर कर रही है और इस मामले में आम जनता और इस क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक संगठनों से सुझाव भी मांगे गए हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में इच्छा मृत्यु यानी लिविंग विल का विरोध किया. लेकिन, पैसिव यूथेनेशिया को मंजूर करते हुए कहा कि इसके लिए कुछ सुरक्षा मानकों के साथ ड्राफ्ट बिल तैयार है.

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