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टाटा मोटर्स के सबसे बड़े दांव की टेस्ट ड्राइव : नई छोटी एसयूवी ‘नेक्सॉन’…

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मारुति सुज़ुकी जितना महसूस कराती है,  उतना आसान नहीं है. गाड़ियां उतनी आसानी से नहीं बिक सकती हैं और मार्केट शेयर लगातार इतना नहीं हो सकता है. बाक़ी कंपनियों के लिए ये बहुत लंबी मशक्कत का काम है, जिस लड़ाई में नए प्रोडक्ट, नई मार्केटिंग स्ट्रैटजी और आफ़्टर सेल्स सर्विस में पूरा बदलाव शामिल है. ये बात टाटा मोटर्स से बेहतर कौन समझा सकता है. कंपनी भारतीय बाजार में अपने पांव को मजबूत बनाने में लगातार लगी हुई है. कंपनी अपने पुराने प्रोडक्ट और इंजीनियरिंग के फ़िलॉस्फी से निकल कर नई गाड़ियों को बनाने और लांच करने में लगी हुई  है. अगर आप इंडिका और टियागो दोनों को एक ही फ़्रेम में रखकर सोचें तो मेरी बात समझ जाएंगे. वहीं, बदलाव देखने को मिला मुझे टाटा मोटर्स की इस आने वाली छोटी एसयूवी टाटा नेक्सॉन में.

नेक्सॉन को एक आकर्षक और यंग लुक के साथ लाया गया है. कार का आकार बहुत बड़ा नहीं है. ब्रेज़्ज़ा और इकोस्पोर्ट में ये इकोस्पोर्ट के ज़्यादा नज़दीक लगेगी. वहीं, आकार के हिसाब से इसमें लगा फ़्रंट ग्रिल लगभग उसी डिज़ाइन पर आधारित है जैसा आपने हाल की टाटा कारों में देखा है. यह हेक्सा, टियागो और टिगोर से मिलता जुलता है. ग्रिल के ठीक नीचे क्रोम का एक चौड़ा स्ट्रिप इसे अलग तेवर देता है. वहीं उभरी हुई आंखों की तरह इसके टियागो जैसे हेडलैंप, नेक्सॉन के चेहरे को आकर्षक बनाते हैं. नेक्सॉन का चेहरा आपको फ्रेश और यंग लगेगा. वहीं साइड प्रोफ़ाइल और पीछे के हिस्से का ज़िक्र एक साथ करना पड़ेगा. वहां सफ़ेद सेरामिक की एक पट्टी या पैनल गुज़र रहा है वो इसे काफ़ी अलग दिखाता है. दूर से यह कार काफ़ी अलग लगेगी. ये सफ़ेद पट्टी इसका सिग्नेचर पैटर्न कह सकते हैं. पसंद आए या ना आए ये अलग मुद्दा है. हां पिछले हिस्से में ये पट्टी थोड़ी ज़्यादा चौड़ी हो जाती है. कुल मिलाकर नेस्कॉन अपने सेगमेंट में बहुत अलग और आकर्षक दिखने वाली कार होगी.

नेक्सॉन में टाटा ने कई नए फ़ीचर्स डाले हैं, जो पहली बार में ही आपकी नज़र में अटक जाते हैं. इनमें से दो चीज़ें ख़ास हैं. एक तो बैठते ही आपकी नज़र जाएगी फ़्लोटिंग डिज़ाइन में इंफ़ोटेनमेंट डिस्प्ले पर, जो HD डिस्प्ले है. कार चलाते हुए आपको बहुत नीचे नहीं देखना पड़े, तो स्टाइलिश के साथ सेफ़ भी. वहीं सीट के बगल में एक नॉब भी दिखेगा, जिसे शफ़ल करके आपको सिटी, ईको या स्पोर्ट मोड में चला सकते हैं. इन दोनों फ़ीचर्स के साथ लग रहा है कि इस सेगमेंट में आकर्षक फ़ीचर के खेल में टाटा ने लीड ले ली है. वहीं सेफ़्टी के लिए ड्राइवर और फ्रंट पैसेंजर एयरबैग और एबीएस है. कार भीतर से बहुत प्रीमियम लगेगी. डैश का डिज़ाइन, स्विच, नॉब सभी आकर्षक और ठोस लगेंगे. पिछली सीट के लिए एसी वेंट भी दिया गया है. वहीं सामान रखने के लिए 350 लीटर का बूटस्पेस है. वहीं अगर पिछली सीटों को मोड़ दिया जाए तो फिर लगभग सात सौ लीटर की जगह बन जाती है. वहीं सीटों को 60:40 में बांट कर मोड़ा जा सकता है. सीटों की बात करें तो ये आरामदेह है.

टाटा नेक्सॉन में डीज़ल और पेट्रोल दोनों इंजनों का विकल्प है. दोनों नए इंजन. एक तो है रेवोटॉर्क 1.5 L, टर्बोचार्ज्‍ड इंजिन, जिससे ताक़त मिल रही है 108 bhp की. इसका टॉर्क है 260 nm का. वहीं, पेट्रोल अवतार में रेवोट्रॉन 1.2 L वाला टर्बोचार्ज्‍ड इंजिन है. इससे भी ताक़त निकल रही है 108 bhp की और 170 nm का टॉर्क. साथ में नया 6 स्पीड मैन्युअल ट्रांसमिशन भी दिया गया है.

प्रदर्शन की बात करें तो हैंडलिंग और सस्पेंशन के हिसाब से नेक्सॉन बहुत अच्छा प्रदर्शन करती है. सस्पेंशन बहुत ठोस नहीं पर बहुत मुलायम भी नहीं है. गाड़ी ने गड्ढों पर परेशान नहीं किया. तेज़ रफ़्तार मोड़ पर थोड़ा बॉडी रोल तो है पर कुल मिलाकर सटीक हैंडलिंग लगी और इसकी राइड भी. वहीं स्पोर्ट, सिटी और ईको मोड में चलाने के वक़्त आप फ़र्क महसूस भी करते हैं. वैसे आपको बता दें कि कार अनाउंस करके बता भी देती है कि आप सिटी से स्पोर्ट मोड में आ गए हैं. इसके अलावा गियरशिफ़्ट और स्टीयरिंग का प्रदर्शन स्मूथ लगेगा. जापानी गाड़ियों जैसा. इन सबके साथ 209 mm का ग्राउंड क्लियरेंस आपको काफ़ी कांफ़िडेंट बनाता है. जैसा मैं महसूस कर रहा था जब इसे लेकर मैं कोच्चि की सड़कों पर निकलता हुआ, हाईवे से भटक कर गांवों के रास्तों में चला गया. जहां पर सड़कें बारिश के बाद टूटी भी हुई थीं. वहां पर भी इसने अच्छी हैंडलिंग दिखाई, पकड़ और ब्रेकिंग दिखाई. इसकी ड्राइव ने मुझे ख़ुश किया. हालांकि ये डीज़ल वर्ज़न की बात कर रहा हूं मैं. पेट्रोल वर्ज़न से मुझे जितनी उम्मीद थी, उतना रोमांच नहीं मिला. दरअसल मैंने ड्राइव की शुरुआत तो पेट्रोल वर्ज़न के साथ ही की थी, पर वह शहरी रास्तों और माहौल में की जाने वाली ड्राइव थी और उस माहौल में, यानि निचले आरपीएम पर, पंद्रह सौ आरपीएम के आसपास ताक़त की कमी महसूस होती है. ये मेरे लिए निराशा वाली बात इसलिए भी थी क्योंकि मुझे लग रहा है कि आने वाले वक़्त में ये एक अहम सेगमेंट होने वाला है. डीज़ल की लोकप्रियता घटी है, क़ीमत बढ़ी है और छोटी एसयूवी में कम टॉर्क वाले पेट्रोल इंजिन भी चल जाते हैं. तो भले ही मुझे उम्मीद पेट्रोल वर्ज़न से ज़्यादा हो पर डीज़ल वर्ज़न मुझे ज़्यादा मज़ेदार लगा.

टाटा मोटर्स ने प्रोडक्ट के मामले में बहुत अच्छा पैकेज निकाला है. लुक में ये अलग दिखने वाली, यंग और आकर्षक प्रोडक्ट है. फ़ीचर्स के मामले में अपने सेगमेंट से ऊपर की कारों को टक्कर देने वाली है. राइड और हैंडलिंग भी अच्छी कही जाएगी. ऐसे में अब देखना होगा कि कंपनी इसे उतना किफ़ायती बना पाती है या नहीं जितने का वह दावा कर रही थी. इसकी क़ीमत ऐसी रख पाती है कि नहीं जो टाटा के ब्रांड से हिचकने वालों को हिचक तोड़ कर नेक्सॉन के बारे में सोचने पर मजबूर कर दे.

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