चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी का व्रत करने का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत रखने से प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल सकती है। हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। महीने में दो बार एकादशी आती है। जिसमें एक होती है शुक्लपक्ष की और एक होती है कृष्ण पक्ष। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं। इस बार 27 मार्च को कामदा एकादशी है। यहां पढ़ें इस व्रत की कथा और और व्रत विधि।
कामदा एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत, तिल आदि से पूजन करें। रात में सोना में सोने के बजाय भजन- कीर्तन करें और अगले दिन पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
कामदा एकादशी की कथा
प्राचीन काल में भोगीपुर नामक नगर था। वहां पुण्डरीक नामक राजा राज्य करते थे। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ।
वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी। श्रृंगी ऋषि बोले कि हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा। ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ।