बजट सत्र का दूसरा हिस्सा पिछले 15 दिनों से हंगामे की भेंट चढ़ रहा है. आम जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे से चलने वाली संसद नीतियां और कानून बनाने का काम करती है लेकिन बीते 15 दिन में संसद का काम-काम लगभग ठप ही रहा है.
एक आंकड़े के मुताबिक एक मिनट तक संसद की कार्यवाही चलाने के लिए करीब 2.50 लाख रुपये का खर्च आता है. ऐसे में अगर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही पूरे 6 घंटे चलती है तो एक दिन में 9 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. लेकिन चालू सत्र में 15 दिन के भीतर लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही हंगामे के बीच सिर्फ 9 घंटे तक ही चल सकी है और इस पर 13.50 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.
अगर दोनों सदनों के काम-काज को प्रतिदिन 6-6 घंटे तक चलता तो 15 दिनों में संसद को 90 घंटे तक चलना चाहिए. इस हिसाब से 15 दिन में 81 घंटे तक काम-काज ठप ही रहा है और इसमें जनता के 120 करोड़ से ज्यादा रुपये बर्बाद हुए हैं.
संसद में काम भले ही ठप हो लेकिन माननीय सांसदों के सैलरी पूरी आनी तय है और इसमें कोई कटौती नहीं की जाएगी. सांसदों को अगर अपना वेतन बढ़ाना होता है तो कभी भी सदन का बहिष्कार या सदन में हंगामा नहीं होता. सरकार एक सांसद पर प्रतिमाह करीब 2.70 लाख रुपये खर्च करती है, लेकिन अप्रैल महीने से बढ़ोतरी के बाद यह खर्च करीब 50 हजार रुपये बढ़कर प्रति सांसद 3 लाख से अधिक हो जाएगा.
साल 2017 के बजट सत्र में लोकसभा ने काम-काज के मामले में रिकॉर्ड कायम किया था. इस दौरान बजट सत्र के पहले और दूसरे हिस्से को मिलाकर कुल 29 बैंठकें हुई थीं. लोकसभा में तय वक्त से 19 घंटे ज्यादा काम हुआ था और 113 फीसदी से ज्यादा काम-काज हुआ था. बीते सत्र में वित्त विधेयक के अलावा सदन से जीएसटी जैसा अहम विधेयक भी लंबी चर्चा के बाद पारित किया गया था.