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MSME विभाग से औद्योगिक परिदृश्य में आया सकारात्मक बदलाव – संजय – सत्येन्द्र पाठक…..

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प्रदेश के आर्थिक और औद्योगिक विकास में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम का महती योगदान रहता है। इसी के मद्देनजर मध्यप्रदेश में आज से ठीक दो साल पहले 5 अप्रैल 2016 को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) विभाग का गठन किया गया था। इन दो वर्ष की अवधि में एमएसएमई के लिए ठोस नीतियाँ बनाकर उनके मुस्तैदी से क्रियान्वयन का ही प्रतिफल है कि प्रदेश के औद्योगिक परिदृश्य में भी तेजी से सकारात्मक बदलाव आया है।

उद्यमियों को उद्यम लगाने के लिए ऑनलाइन पंजीयन की सुविधा, उद्यमियों को शहरों के नजदीक रियायती दरों पर भूमि, एमएसएमई विकास नीति 2017 एवं एमएसएमई प्रोत्साहन योजना 2017 का एक अप्रैल 2018 से प्रभावशील होना, मुख्यमंत्री स्व-रोजगार और मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में उद्यमियों को ऋण की सीमा का विस्तार, विभिन्न अनुदान का एकीकरण कर एमएसएमई को निवेश का 40 फीसदी उद्योग विकास अनुदान के रूप में 5 वार्षिक किश्तों में दिए जाने का प्रावधान, निवेशकों को मध्यम श्रेणी के विनिर्माण उद्यम की स्थापना के उद्देश्य से निजी भूमि खरीदने पर अथवा अविकसित शासकीय भूमि शासन से प्राप्त करता है तो ऐसी इकाई को इकाई परिसर तक पानी, सड़क और बिजली व्यवस्था के लिए अधोसंरचना विकास में किये गये व्यय की 50 फीसदी अथवा अधिकतम 25 लाख रूपये की वित्तीय सहायता जैसे अनगिनत प्रावधानों की वजह से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की स्थापना के लिए उद्यमी आगे आए हैं। इन उद्योगों की स्थापना से युवा और शिक्षित बेरोजगारों को नई दिशा मिली है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम का वर्गीकरण

प्लांट एवं मशीनरी/ उपकरणों (भूमि और भवन को छोड़कर) में पूँजीवेष्ठन की अधिकतम सीमा के आधार पर मैन्युफेक्चरिंग और सर्विस उद्यम को वर्गीकृत किया गया है। सूक्ष्म उद्यम में मैन्यूफैक्चरिंग पूँजीवेष्ठन सीमा 25 लाख रूपये, सर्विस सेक्टर पूँजीवेष्ठन सीमा 10 लाख रूपये, लघु उद्यम में मैन्यूफैक्चरिंग पूँजीवेष्ठन सीमा 25 लाख से अधिक और 5 करोड़ रूपये तक, सर्विस सेक्टर में पूँजी वेष्ठन सीमा 10 लाख से अधिक और 2 करोड़ रूपये की सीमा तक और मध्यम उद्यम में मैन्यूफैक्चरिंग पूँजीवेष्ठन सीमा 5 करोड़ से अधिक और अधिकतम 10 करोड़ तक और सर्विस सेक्टर में पूँजी वैष्ठन सीमा 2 करोड़ से अधिक और अधिकतम 5 करोड़ तक के उद्यम आयेंगे।

ढाई लाख से ज्यादा उद्योग पंजीकृत

विभाग के गठन के बाद दो वर्ष में अब तक 2 लाख 56 हजार से ज्यादा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम पंजीकृत हुए। इनमें 1 लाख 24 हजार करोड़ से ज्यादा का पूँजी निवेश हुआ और प्रत्यक्ष रूप से 5 लाख 63 हजार व्यक्तियों को रोजगार मिला।

स्व-रोजगार योजना से रोजगार

मुख्यमंत्री स्व-रोजगार योजना में एमएसएमई विभाग द्वारा वित्त वर्ष 2017-18 में फरवरी 2018 अंत तक करीब 24 हजार प्रकरण में सवा 894 करोड़ की वित्तीय सहायता युवाओं को दी गई। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में इसी अवधि में 970 प्रकरण में करीब 136 करोड़ का ऋण एवं प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम में करीब 25 करोड़ रूपये की सहायता वितरित की गई।

स्व-रोजगार योजनाओं में ऋण सीमा बढ़ी

विभाग की स्व-रोजगार योजना में मुख्यमंत्री युवा उद्यमी, मुख्यमंत्री स्व-रोजगार, मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना एवं प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम शामिल हैं। इनमें मुख्यमंत्री युवा उद्यमी, मुख्यमंत्री स्व-रोजगार और मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना में सहायता प्राप्त करने की पात्रता में नवम्बर 2017 से संशोधन किया गया है। योजनाओं में आवेदक का परिवार पहले से उद्योग/ व्यापार क्षेत्र में स्थापित न होने एवं आवेदक के आयकरदाता न होने की शर्त जोड़ी गई है। साथ ही बीपीएल आवेदकों को अतिरिक्त सहायता का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में भी अब परियोजना लागत न्यूनतम 10 लाख और अधिकतम 2 करोड़ की गई है। मुख्यमंत्री स्व-रोजगार योजना में परियोजना लागत न्यूनतम 50 हजार और अधिकतम 10 लाख रूपये तक का ऋण दिया जाता है।

मुख्यमंत्री कृषक उद्यमी योजना

किसानों के पुत्र/ पुत्री उद्योग और सेवा क्षेत्र से सम्बन्धित कम से कम 10 लाख से और अधिकतम 2 करोड़ रूपये तक की कृषि परियोजनाओं पर आधारित अपना उद्यम स्थापित कर सकेंगे। इस उद्देश्य से ‘मुख्यमंत्री कृषक उद्यमी योजना‘ प्रारंभ की गई है। योजना में मार्जिन-मनी, सहायता, ब्याज अनुदान एवं ऋण गारंटी का लाभ विभाग द्वारा दिया जाएगा।

‘ प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम’ राष्ट्रीय कार्यक्रम है। नोडल एजेन्सी खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग है। प्रदेश में योजना का संचालन खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र द्वारा किया जा रहा है। कार्यक्रम में शिक्षित बेरोजगारों को उद्योग के लिए अधिकतम परियोजना लागत 25 लाख तथा सेवा/ व्यवसाय के लिए अधिकतम परियोजना लागत 10 लाख का ऋण बैंक के माध्यम से उपलब्ध करवाया जाता है। कार्यक्रम में हितग्राहियों को शहरी और ग्रामीण के आधार पर मार्जिन-मनी सहायता का लाभ दिया जाता है।

एमएसएमई विकास- नीति- और प्रोत्साहन योजना लागू

प्रदेश के समग्र औद्योगिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मध्यप्रदेश एमएसएमई विकास नीति 2017 और एमएसएमई प्रोत्साहन योजना 2017 बनाकर 1 अप्रैल 2018 से लागू की गईं हैं। विकास नीति में प्रमुख रूप से औद्योगिक इकाइयों को अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों, जिनमें ईटीपी, एसटीपी आदि शामिल हैं, की स्थापना में निवेश के लिए 50 प्रतिशत पूँजी अनुदान अधिकतम 25 लाख रूपये मिलेंगे। निजी औद्योगिक क्षेत्रों और बहु-मंजिला औद्योगिक परिसर की स्थापना/ विकास के लिए व्यय की गई राशि का 20 प्रतिशत अधिकतम 2 करोड़ की सहायता, विकसित औद्योगिक क्षेत्र का क्षेत्रफल न्यूनतम पाँच एकड़ या बहु-मंजिला औद्योगिक परिसर का कारपेट क्षेत्र कम से कम 10 हजार वर्ग फीट और इनमें पाँच औद्योगिक इकाइयाँ कार्यरत होना जरूरी होगा। नई औद्योगिक इकाइयाँ जिनमें दस से अधिक नियमित कर्मचारियों के सीपीएफ में प्रति कर्मचारी एक हजार रूपये नियोक्ता के अंश के रूप में जमा किए जा रहे हों, ऐसे कर्मचारियों को नियोक्ता के अंश की शत-प्रतिशत राशि की प्रतिपूर्ति पाँच साल तक की अवधि के लिए या अधिकतम 5 लाख रूपये (इनमें जो भी कम हो) विभाग द्वारा की जाएगी। गुणवत्ता प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए व्यय का 50 प्रतिशत अधिकतम 3 लाख रूपये की प्रतिपूर्ति विभाग द्वारा की जाएगी। राष्ट्रीय/ अन्तर्राष्ट्रीय नियम/ कानून के अंतर्गत शोध एवं अनुसंधान के आधार पर विकसित किए गए उत्पादों/ उत्पादन प्रक्रियाओं का पेटेंट/ आईपीआर कराने पर हुए व्यय का शत-प्रतिशत, अधिकतम 5 लाख रूपये की प्रतिपूर्ति उद्यमियों विभाग द्वारा की जाएगी। भारत सरकार की आईएनएसआईटीयू अपग्रेडेशन योजना में पावरलूम के उन्नयन के वास्ते किये गये व्यय में से, भारत सरकार से प्राप्त वित्तीय सहायता के समायोजन के बाद, शेष राशि का शत- प्रतिशत या उन्नयन लागत का 25 प्रतिशत, जो भी कम हो अधिकतम 8 पॉवरलूम प्रति इकाई सहायता उद्यमियों के लिए मिलेगी।

इसी तरह एमएसएमई प्रोत्साहन योजना 2017 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को सहायता/ सुविधा को और अधिक सुगम तथा सरल बनाया गया है।

लैण्ड बैंक एवं औद्योगिक क्षेत्रों का विकास

प्रदेश में औद्योगिक प्रयोजन के लिए उपलब्ध उपयुक्त शासकीय भूमियों का लैण्ड बैंक बनाया गया है। इससे उद्यमियों को उद्योग लगाने के लिए भूमि उपलब्ध करवायी जा रही है। वर्तमान में प्रदेश में 186 औद्योगिक क्षेत्र स्थापित हैं। साथ अनेक अवविकसित भूमियों को चिन्हित किया जाकर उन्हें भी विकसित कराया जा रहा है। पिछले वित्त वर्ष में औद्योगिक विहीन जिला अनूपपुर, उमरिया एवं अशोक नगर में नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित किये जाकर भू-खण्डों का आवंटन किया गया है। इसी तरह शिवपुरी जिले में करेरा, उज्जैन में फर्नाखेड़ी, डिन्डौरी में कोहका और अलीराजपुर जिले के सेजवाड़ा में नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करवाए जा रहे हैं। उद्यमियों को शहरों के नजदीक उद्योग लगाने के लिए रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध करवाई जा रही है।

लघु उद्योग संवर्धन बोर्ड

एमएसएमई के संवर्धन के लिए परामर्श एवं सुझाव, एमएसएमई नीति पर सुझाव तथा उद्योगों में आने वाली कठिनाइयों के निराकरण के लिए विभागीय मंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय लघु उद्योग संवर्धन बोर्ड गठित किया गया है। बोर्ड की बैठकों में विभिन्न औद्योगिक संघों के प्रतिनिधियों से सीधे संवाद के बाद उनके सुझावों को ध्यान में रखकर ही एमएसएमई विकास नीति बनाई गई है। स्थानीय स्तर की समस्याओं के निराकरण के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित की गई हैं।

नई प्राथमिकताएँ

एमएसएमई विभाग की स्थापना के दो वर्ष पूर्ण होने अब विजन- 2018 के अंतर्गत प्रदेश को पूर्ण विकसित एवं औद्योगिक प्रदेश बनाने की प्राथमिकता तय की गई है। एमएसएमई सेक्टर को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए उन्हें वृहद उद्योगों से जोड़े जाने के लिए ‘वेण्डर विकास कार्यक्रम’ का क्रियान्वयन किया जायेगा। अभी तक एक हजार से अधिक एमएसएमई इकाइयों को पंजीकृत किया जाकर 100 से अधिक एंकर इकाइयों से सम्पर्क कराया गया है। शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए उद्यमी विकास प्रशिक्षण को ऑनलाइन किया जाएगा। इससे उद्यमी अपने घर बैठे नि:शुल्क प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने उद्यम लगाने में सफल होंगे।

विभाग को चालू माली साल के लिए 852 करोड़ 42 लाख 65 हजार रूपये का बजट मंजूर हुआ है। मिले बजट से एमएसएमई विभाग शिक्षित बेरोजगारों को अधिक रोजगार सृजित कराने में सफल हो सकेगा।

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