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कैग रिपोर्ट में बड़ा खुलासा लापरवाही से राजस्व को लगा अरबों रुपये का चूना लगा…

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हिमाचल में करों की वसूली में बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है। सरकारी अमले की लापरवाही से राजस्व को अरबों रुपये का चूना लगा है। कहीं करोड़ों रुपये का प्रवेश कर नहीं वसूला गया तो कहीं स्टांप शुल्क वसूलने में ही कोताही बरती गई।

 आमदनी के नए साधन तलाशना तो दूर की बात रही, इसके विपरीत यहां स्थापित ढांचे में भी जायज कर नहीं वसूले जा सके। यह खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट से हुआ है।  31 मार्च 2017 को समाप्त वित्तीय वर्ष के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य से संबंधित भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वीरवार को विधानसभा में रखी। कैग रिपोर्ट के मुताबिक आबकारी एवं कराधान विभाग ने प्रवेश कर पांच प्रतिशत की दर से वसूलना था, जो 2.41 करोड़ रुपये बनता था। विभाग ने इसे तीन प्रतिशत की दर से मात्र 1.03 करोड़ रुपये ही वसूला। पॉवर मीटरों के मुताबिक इस दर से 1.38 करोड़ रुपये वसूले ही नहीं गए।

पांच जिलों में 36 केबल आपरेटर पंजीकृत थे, जिनसे 10 फीसदी की दर से 9.93 करोड़ रुपये मनोरंजन शुल्क के रूप में वसूले जाने थे, जो 2012 से भुगतान नहीं कर रहे थे, लेकिन इसकी भी वसूली नहीं की गई।जिला ऊना की एक फर्म आसवनी ने स्पिरिट के निर्माण में गड़बड़ी की। 66,168 क्विंटल शीरा का इस्तेमाल करते हुए 2,06,395 बल्क लीटर का कम उत्पादन किया गया। इससे 21.23 लाख रुपये कम आबकारी शुल्क वसूला जा सका। सिरमौर और सोलन में बीयर बनाने वाली दो फर्मों को 14.88 लाख बल्क लीटर की क्षति को सहायक आबकारी एवं कराधान आयुक्तों ने बगैर प्रावधान के डैमेज रिपोर्ट के तहत मंजूरी दी। इससे विभाग को 2.44 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। शराब के बिक्री कोटे के गलत निर्धारण के कारण 4.12 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस की कम वसूली से नुकसान हुआ। नौ लाइसेंस धारकों से 10.01 करोड़ रुपये की कम वसूली हुई। एक्स्ट्रा न्यूट्रल अलकोहल पर भी तीन फर्मोें से 18.29 करोड़ रुपये के राजस्व की वसूली नहीं हो पाई।

डीलरों ने देशी शराब और भारत में निर्मित विदेशी शराब पर बोतलीकरण फीस का कम भुगतान किया, जिससे राजस्व को 2.60 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। 2012-13 से 2015-16 की अवधि में जिला सिरमौर की एक निर्माणशाला में उत्पादित बीयर से बहुउद्देश्यीय बैरियरों पर 21.70 लाख रुपये के आबकारी शुल्क की वसूली नहीं की गई। विभागों ने भी एक-दूसरे की देनदारियों का भुगतान नहीं किया। लोक निर्माण विभाग से निर्मित अद्योसंरचना की एवज मेे प्लींथ क्षेत्रों की ठीक से जांच न किए जाने से 25.48 करोड़ रुपये की जगह 13.09 करोड़ रुपये का गलत मूल्यांकन किया गया। इससे 92.03 लाख रुपये के स्टांप शुल्क और पंजीकरण की कम वसूली की गई। यह गड़बड़ी राजस्व महकमे में हुई। परिवहन महकमे में भी वर्ष 2013 से 2015-16 केे लिए 2.66 करोड़ रुपये के सांकेतिक कर का न तो 12,365 वाहन मालिकों ने भुगतान किया और न ही विभाग ने इसकी मांग की।

22.39 करोड़ रुपये का विशेष पथ कर हिमाचल पथ परिवहन निगम और निजी स्टेज कैरियरों से वसूल नहीं किया गया। हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड ने विद्युत प्रभारों की गलत माफी की, जिससे 5.06 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। बिजली बोर्ड ने कनेक्शन देरी से काटे। इससे विद्युत प्रभार 1.62 करोड़ रुपये तक बढ़ गए।   स्वच्छ भारत मिशन के तहत हिमाचल में शौचालय बनाने के नाम पर घोटाला हुआ है। यह कैग रिपोर्ट में सामने आया है। बैजनाथ और देहरा के खंड विकास अधिकारियों ने गांवों में शौचालयों को जमीन स्तर पर देखे बगैर ही 7.90 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि का भुगतान कर डाला।

यह कारनामा 2015 से 2017 के दौरान हुआ। कैग रिपोर्ट के मुताबिक अफसरों की लापरवाही से शौचालयों के फोटो को ऑनलाइन अपलोड किए बगैर ही 6587 लोगों को यह राशि बांट दी गई। ग्रामीण विकास विभाग की ओर से ग्रामीण क्षेत्रों में 2012 के बेसलाइन सर्वे को आधार बनाकर यह लाभ दिया गया। इसे 2012-13 में अपडेट नहीं किया गया। स्वच्छ भारत अभियान के तहत सामुदायिक परिसरों के निर्माण में भी विलंब हुआ।

शिमला। लोक निर्माण विभाग ने 12 से 15 साल से किन्नौर और लाहौल-स्पीति दो जिलों के करीब 12 गांवों को सड़कों और पुलों की सेवा से वंचित रखा। इससे अनावश्यक रूप से 27.88 करोड़ रुपये खर्च किए गए और 1.38 करोड़ रुपये खर्च नहीं कर पाए।विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट में प्रदेश में खोले गए निजी विश्वविद्यालयों पर बड़े सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 15 निजी विश्वविद्यालयों में न्यूनतम योग्यता नहीं रखने वाले 22 फीसदी प्रोफेसर और 28 फीसदी सह प्रोफेसर नियुक्त किए गए हैं।

निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी का भी रिपोर्ट में उल्लेख है। बताया गया है कि निजी विश्वविद्यालयों में 38 फीसदी प्रोफेसरों और 61 फीसदी सह प्रोफेसरों की कमी है। कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में निजी विश्वविद्यालयों में से केवल तीन ने मार्च 2017 तक राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रमाणन परिषद से मान्यता प्राप्त की है। राज्य में निजी विश्वविद्यालयों की आवश्यकता का मूल्यांकन भी नहीं किया गया।प्रदेश में खोले गए 17 निजी विश्वविद्यालयों में से दस मात्र एक जिले में स्थित हैं। एक ग्राम पंचायत में तो चार निजी विश्वविद्यालय खोले गए। रिपोर्ट के अनुसार क्षेत्रीय आवश्यकताओं/ प्राथमिकताओं को भी ध्यान में नहीं रखा गया।

2011 से 2017 के दौरान निजी विश्वविद्यालयों में 1394 पाठ्यक्रम विनियामक आयोग द्वारा अवसंरचना तथा कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बिना निरीक्षणों के के स्वीकृत कर दिए गए। निजी विश्वविद्यालयों ने विद्यार्थियों की प्रतिभूति राशि की वापसी नहीं की। निजी विश्वविद्यालयों ने 4.58 करोड़ राशि का अनाधिकृत विकास शुल्क एकत्र किया था। इसके अलावा 2012 से 2016 के दौरान पास हुए 2906 विद्यार्थियों को 2.89 करोड़ की प्रतिभूति राशि वापस नहीं की गई। शिमला। रिपोर्ट के अनुसार निजी विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तावित फीस राज्य सरकार द्वारा लागत तत्वों पर विचार किए बिना स्वीकृत कर दी गई। निजी विश्वविद्यालयों ने 2016-17 के तुलना में 2017-18 के शैक्षणिक सत्र के लिए बिना औचित्य के 21, 23 और 58 फीसदी तक फीस बढ़ा दी।

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