गुजरात के चुनावी मॉडल को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में भी चुनावी बिसात बिछा दी है। गुरुवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने 9 बार के सांसद 71 वर्षीय कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी। कांग्रेस नेतृत्व की तीन पीढ़ियों के साथ काम का अनुभव उन्हें है। वहीं 47 साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा मिला। वे 2013 के विधानसभा चुनाव में भी चुनाव अभियान संभाल चुके हैं।
कमलनाथ दिल्ली में 29 अप्रेल को होने वाली जनाक्रोश रैली के बाद 1 मई को भोपाल आकर नई जिम्मेदारी संभालेंगे। गुजरात की ही तर्ज पर जातीय संतुलन के मकसद से प्रदेश में चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए गए हैं। ये हैं बाला बच्चन, रामनिवास रावत, सुरेन्द्र चौधरी और जीतू पटवारी। कमलनाथ ने तत्काल प्रभाव से प्रदेश कांग्रेस की पूरी कार्यकारिणी भंग कर दी है। कमलनाथ शुरू में चार कार्यकारी अध्यक्षों के लिए राजी नहीं थे। लेकिन बड़े नेताओं ने इस मसले पर उनसे बात की। इसके बाद वे सहमत हुए। सुरेन्द्र चौधरी राहुल गांधी के साथ काम कर रहे के. राजू से जुड़े हैं। जीतू पटवारी भी सीधे राहुल गांधी से जुड़े है। दिग्विजय सिंह की राय पर दोनों इस जिम्मेदारी में आए। रामनिवास रावत सिंधिया के करीबी है और बाला बच्चन कमलनाथ के।
गुजरात में कांग्रेस ने गुटबाजी रोकने के लिए मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट नहीं किया। क्षेत्रीय और जातीय संतुलन के लिए 4 कार्यकारी अध्यक्ष बनाए। चुनाव प्रबंधन के लिए प्रोफेशनल टीम पर भरोसा किया पूरा चुनाव राहुल गांधी पर केन्द्रित रखा। यही फाॅर्मूला वह अब मध्यप्रदेश में आजमाने जा रही है।दिग्विजय के नेतृत्व में सारे नेता कमलनाथ के पक्ष में जुट गए थे। भाजपा अध्यक्ष महाकौशल से बनने से दावा मजबूत हुआ। प्रचार के लिए पैसा जुटाने की ताकत बढ़ी। गुलाम नबी आजाद, पी. चिदंबरम और अहमद पटेल जैसे नेताओं ने साथ दिया। वे प्रदेश कांग्रेस के 37वें अध्यक्ष हैं।
गुजरात में मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं किया। नतीजतन प्रदर्शन काफी बेहतर रहा। राहुल गांधी को यही फाॅर्मूला ज्यादा बेहतर लगा। गत सप्ताह राहुल गांधी, अहमद पटेल और अशोक गहलोत ने कमलनाथ से कहा था कि अगर वे सिंधिया को बराबर का वजन देने के लिए तैयार हों तो उन्हें अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
नर्मदा यात्रा के बाद नए अवतार में आए दिग्विजय सिंह की भूमिका फिलहाल रणनीतिकार व कैम्पेनर की ही रहेगी, लेकिन वे कब, क्या कदम उठा लें इस पर पार्टी में असमंजस है। अरुण यादव को कंद्रिय नेतृत्व चुनाव लड़ाना चाहता था, लेकिन वे फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनके पास चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। विवेक तन्खा इलेक्शन मेनिफेस्टो कमेटी के प्रमुख हो सकते हैं। कांतिलाल भूरिया को भी एडजस्ट किया जाएगा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से विंध्य में बेहतर काम की उम्मीद है।
भाजपा ने महाकौशल के राकेश सिंह को इसलिए अध्यक्ष बनाया, क्योंकि उसे यहां की कुल 49 में से अपनी 34 सीटें बचानी हैं। कांग्रेस के पास महाकौशल में सिर्फ 14 सीटें हैं, इसलिए कमलनाथ के अध्यक्ष बनने से वह फायदा देख रही है। भाजपा ने नरेन्द्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का प्रमुख बनाया है। भाजपा के पास 20 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ 12 सीटें हैं। सिंधिया की भूमिका इन सीटों पर काफी महत्वपूर्ण होगी। हालांकि यहां बसपा की 2 सीटें और अच्छा खासा वोट बैंक है।