बंगाल के उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने लगभग 100 साल पहले 1917 में रोमांस पर आधारित एक उपन्यास लिखा था जिसका नाम ‘देवदास’ था. बाद में इस उपन्यास पर आधारित अलग- अलग भाषाओं में लगभग 16 फिल्में बनाई गई. इनमें एल सहगल, दिलीप कुमार, शाहरुख खान और अभय देओल जैसे कलाकारों ने देवदास का किरदार निभाया. हर बार इस उपन्यास के 3 अहम किरदार होते ही हैं, जिनमें देवदास, पारो और चंद्रमुखी शामिल हैं. अबकी बार इस उपन्यास की रिवर्स गीयर में चलाते हुए निर्माता निर्देशक सुधीर मिश्रा ने दास देव फिल्म बनाई है , जिसमें देव की जर्नी दास से देव तक बनने की दर्शायी गई है. आइए जानते हैं, आखिर कैसी बनी है यह फिल्म ,समीक्षा करते हैं-
कहानी
फिल्म की कहानी 1997 में जहाना (उत्तर प्रदेश) से शुरू होती है, जहां मंत्री विशम्भर प्रताप (अनुराग कश्यप) एक राजनीतिक रैली को सम्बोधित करते हुए दिखाई देते हैं और उनका बेटा देव (राहुल भट्ट) काफी छोटा होता है और देव की पारो (ऋचा चड्ढा) के साथ अच्छी दोस्ती होती है. कुछ घटनाएं ऐसी घटती हैं जिसकी वजह से देव को पारो और पिता से बिछड़कर दिल्ली जाना पड़ता है, जहां उसको नशे की लत लग जाती है. साथ ही उसकी देखरेख श्रीकांत (दलीप ताहिल) की सेक्रेटरी चांदनी (अदिति राव हैदरी) करने लगती है. इधर गांव में पारो भी बड़ी हो जाती है, देव का पारो के प्रति प्रेम अलग है, वहीं इस बीच देव के चाचा अवधेश प्रताप (सौरभ शुक्ला) की मौजूदगी भी कहानी को अलग लाइन में ले जाती है. राजनीतिक गलियारों में होने वाले हलचल और देव के जीवन में चल रही घटनाओं का अंततः का निष्कर्ष निकलता है, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
कमजोर कड़ी
फिल्म और इसके साथ सुधीर मिश्रा का नाम जुड़ जाना, अपने आप में ही उत्सुकता का कारण बन जाता है, लेकिन फिल्म देखने के दौरान ऐसी कोई भी बात नजर नहीं आयी, जिसे देखकर कहा जा सके की फिल्म काफी दिलचस्प है. कहानी वही पुरानी है , दर्शाने का ढंग काफी कमजोर है, ख़ास तौर पर किरदारों की जर्नी और उनकी लेयरिंग काफी कमजोर है. एक ही समय पर राजनीति के साथ साथ प्रेम प्रसंग भी दिखाने की पुरजोर कोशिश की गयी है, लेकिन न ही राजनीति की बातें पूरी हो पाई हैं और न ही रोमांस का एंगल आया. फिल्म के दौरान कोई तो ऐसी बात है, जो इसे अधूरी बना रही थी. फिल्म में कई किरदार काफी लाउड हैं, जिन्हें संवादों के आदान-प्रदान के दौरान सुन पाना बहुत मुश्किल हो रहा था. स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है और एक सीन से दूसरे सीन के बीच में आपको सुपरफास्ट लोकल की याद आ जाती है. वैसे तो ये महज 2 घंटे 20 मिनट की फिल्म है लेकिन देखते वक्त लग रहा था कि ये कितनी बड़ी फिल्म है. दास देव में ‘देव’ की जर्नी है और इस किरदार को पहले भी दर्शक के एल सहगल, दिलीप कुमार या फिर शाहरुख खान और अभय देओल को निभाते हुए देख चुके हैं और अब राहुल भट्ट के द्वारा यह किरदार निभाया जाना काफी फीका फीका सा लगता है. फिल्म के गाने भी रिलीज से पहले हिट नहीं हो पाए हैं .फिल्म में सूत्रधार के रूप में अदिति राव हैदरी की आवाज को प्रयोग में लाया गया है, लेकिन वो आवाज पूरी फिल्म के दौरान काफी धीमी-धीमी सी है, जिसके पिच को और बेहतर किया जा सकता था. वैसे फिल्म देखते हुए बिल्कुल नहीं लगता की यह 3 बार नेशनल अवार्ड विनर सुधीर मिश्रा साहब की फिल्म है, जिन्होंने धारावी, चमेली, इस रात की सुबह नहीं, हजारों ख्वाहिशें ऐसी, ये साली जिंदगी जैसी बहुत ही उम्दा फिल्में बनाई हैं.
आखिर क्यों देखें?
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है, अदिति राव हैदरी ने चांदनी और ऋचा चड्ढा ने पारो का किरदार बढ़िया निभाया है, वहीँ विनीत सिंह , विपिन शर्मा, दीपराज राणा और बाकी किरदारों ने सहज अभिनय किया है. फिल्म के संवाद बढ़िया हैं और लोकेशंस भी कमाल की हैं. डायरेक्शन और सिनैमेटोग्राफी भी अच्छी है. सौरभ शुक्ला का लुक बहुत बढ़िया है, हालांकि किरदार और बेहतर हो सकता था .
बॉक्स ऑफिस
फिल्म का बजट लगभग 15 करोड़ बताया जा रहा है और लगभग 650 स्क्रीन्स में रिलीज भी की जाने वाली है , इसी हफ्ते अवेंजर्स इन्फिनिटी वॉर भी रिलीज की गयी है , अब देखना दिलचस्प होगा की यह फिल्म किस तरह से बॉक्स ऑफिस पर परफॉर्म करेगी.