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मुख्य चुनाव आयुक्त की तरह नहीं मिल सकती अन्य चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक सुरक्षा…

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केंद्र ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद को संवैधानिक संरक्षण हासिल है। बाकी दो चुनाव आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर हटाया जा सकता है। केंद्र की इस दलील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अगस्त में सुनवाई करने का फैसला किया।
केंद्र सरकार ने पिछले 25 अप्रैल को हलफनामा दायर कर निर्वाचन आयोग को और अधिक अधिकार देने की मांग का विरोध किया। केंद्र सरकार ने कहा है कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाए।

पिछले 12 अप्रैल को निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि चुनाव संबंधी नियम बनाने के अधिकार आयोग को मिलें। अभी ये नियम सरकार तय करती है। आयोग ने कहा कि ज्यादा स्वायत्तता की मांग वे 2010 से कर रहे हैं।

इसका मतलब ये है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अधिकार बाकी दोनों को भी हों। जरुरत पड़ने पर आयुक्तों को भी हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाए और उनका स्वतंत्र सचिवालय हो। निर्वाचन आयोग ने चुनाव सुधार और आयोग के अधिकारों में इजाफे को लेकर विधि आयोग की 1999 से लेकर अब तक की सिफारिशों का भी हवाला हलफनामे में दिया है।

याचिका वकील और भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल की है। अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग को ज्यादा ताकतवर और स्वतंत्र बनाने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों को भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त की तरह ही सुरक्षा प्रदान की जाए।

याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग को भी ये अधिकार मिले कि वो सुप्रीम कोर्ट की तरह चुनाव संबंधी कानून और आचार संहिता खुद बना सकें। याचिका में कहा गया है कि राज्यसभा और लोकसभा की तरह निर्वाचन आयोग के लिए एक स्वतंत्र सचिवालय हो। याचिका में संविधान की धारा 324(5) को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मुख्य निर्वाचन आयुक्त को तो महाभियोग के जरिए हटाने का प्रावधान है, जब कि निर्वाचन आयुक्तों को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अनुशंसा पर हटाया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयुक्तों को भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त की तरह ही सुरक्षा मिलनी चाहिए, ताकि आयोग की स्वतंत्रता बरकरार रह सके।

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