Home धर्म/ज्योतिष गंगा दशहरा और क्या है इसका महत्व?….

गंगा दशहरा और क्या है इसका महत्व?….

3
0
SHARE

गंगा दशहरा के दिन माता गंगा को याद करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए. गंगाजी देवनदी हैं जो मनुष्यों को नित्य ही उनके भावनानुसार भक्ति और मुक्ति प्रदान करती हैं. वह मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई , धरती पर उनका अवतरण जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ. अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई . इस तिथि को यदि सोमवार और हस्त नक्षत्र हो तो यह सब पापों का हरण करने वाली होती है , लेकिन किसी भी दिन और किसी भी नक्षत्र में पड़ने वाली गंगा दशहरा का पर्व का विशेष महत्व होता है . जेष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है . इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से दस प्रकार के पापों का नाश होता है. इसीलिए इसे दशहरा कहा गया है. गंगा दशहरा पर पूजन विधि और व्रत कथा की विस्तृत जानकारी दे रहे हैं पंडित प्रसाद दीक्षित

इस दिन गंगा जी में अथवा सहमत ना हो तो समीप ही किसी पवित्र नदी या सरोवर के जल में स्नान कर अभय मुद्रायुक्त मकरवाहिनी गंगा जी का ध्यान करें. आज के दिन पांच पुष्पांजलि अर्पित करके गंगा की उत्पत्ति स्थान हिमालय एवं उन्हें पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए. पूजा में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, 10 दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल एवं 10 फल होने चाहिए . दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देनी चाहिए, किंतु उन्हें दान में दिए जाने वाले जौ और तिल  सोलह  मुट्ठी होने चाहिए. भगवती गंगा जी सर्वपापहरणी हैं . अतः 10 प्रकार के पापों की निवृत्ति के लिए सभी वस्तुएं 10 की संख्या में ही निवेदित की जाती हैं .  स्नान करते समय गोते भी 10 बार लगाए जाते हैं . इस दिन सत्तू का भी दान किया जाता है . इस दिन गंगा अवतरण की कथा सुनने का विधान है .यह कथा इस प्रकार है-

भगवान श्रीराम का जन्म अयोध्या के सूर्यवंश में हुआ था. उनके एक पूर्वज थे महाराज सगर. महाराज सगर चक्रवर्ती सम्राट थे. उनकी केशिनी और सुमति नाम की दो रानियां थीं. केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस था और सुमति के साठ हजार  पुत्र थे. असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था . राजा सगर के असमंजस सहित सभी पुत्र अत्यंत उद्दंड और दुष्ट प्रकृति के थे, परंतु अंशुमान धार्मिक और देव गुरुपूजक था. पुत्रों से दुखी होकर महाराज ने असमंजस को देश से निकाल दिया और अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया. सगर के साठ हजार पुत्रों से देवता भी दुखी रहते थे. एक बार महाराज सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और उसके लिए घोड़ा छोड़ा. इंद्र ने अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में ले जाकर कपिलमुनि के आश्रम में बांध दिया, परंतु ध्यानावस्था कपिल मुनि इस बात को जान न सके. सगर के साठ हजार अहंकारी पुत्रों ने  पृथ्वी का कोना कोना छान मारा. किंतु वे लोग घोड़े को न पा सके. अंत में उन लोगों ने पृथ्वी से पाताल तक मार्ग खोद डाला और कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे. वहां घोड़ा देखकर क्रोधित हो शस्त्र उठा कर कपिल मुनि को मारने दौड़े . तपस्या में बाधा पड़ने पर मुनि ने अपनी आंखें खोली सगर के साठ हजार उद्दंड पुत्र तत्काल भस्म हो गए.

गरुड़ के द्वारा इस  घटना की जानकारी मिलने पर अंशुमान कपिलमुनि के आश्रम में आए तथा उनकी स्तुति की. कपिलमुनि उनके विनय से प्रसन्न होकर बोले अंशुमान घोड़ा ले जाओ और अपने पितामह का यज्ञ पूरा कराओ. सागर पुत्र उद्दंड, अहंकारी और अधर्मी थे . इनकी मुक्ति तभी हो सकती है जब गंगाजल से इनकी राख का स्पर्श हो. अंशुमान ने घोड़ा ले जाकर अपने पिता पितामह राजा सगर का यज्ञ पूरा कराया. महाराज सगर के बाद अंशुमान राजा बने परंतु उन्हें अपने चाचाओं की मुक्ति की चिंता बनी रही. कुछ समय बाद अपने पुत्र दिलीप को राज्य का कार्यभार सौंप कर वन में चले गए तथा गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने लगे और तपस्या में ही उनका अंत भी हो गया. महाराज दिलीप ने भी अपने पुत्र भगीरथ को राज्य  सौप कर पिता के मार्ग का अनुसरण किया. उनका भी तपस्या में ही शरीर का अंत हुआ परंतु वह गंगा जी को पृथ्वी पर  ना ला सके. महाराज दिलीप के बाद भगीरथ ने ब्रम्हाजी तथा देवाधिदेव महादेव शंकर की घोर तपस्या की. जिसके परिणाम स्वरुप भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल हुए . भगीरथ की तपस्या से अवतरित होने के कारण गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है. गंगा जी इसके बाद पृथ्वी को हरा-भरा करते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची जहां महाराज भगीरथ के  साठ हजार पूर्वज भस्म की ढेरी बने हुए पड़े थे . गंगाजल के स्पर्श मात्र से सभी दिव्य रूपधारी हो दिव्य  लोक को चले गए.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here